बोलने के अवसर सृजित (Create) करें . . . !

एक बार हकलाने वाले एक दोस्त से बातचीत हो रही थी। उन्होंने बताया कि टीसा की वर्कशाप में शामिल होने पर हम बहुत कुछ सीख जाते हैं, लेकिन हकलाने के बारे में अपने शहर के लोगों से बातचीत करना थोड़ा अजीब लगता है, हिम्मत ही नहीं होती। अपने मित्र की इस बात पर मैंने भी […]

रविवार २० अक्टूबर का हिंदी स्काइप कॉल

  कल सुबह हिंदी स्काइप कॉल 9 बजे से थी . 9.30  तक मै इंतज़ार करता रहा मुझे लगा की आज कोई नहीं आएगा  और प्रैक्टिस नहीं होगी!तब जाके प्रीतम बर्मन( जबलपुर) स्काइप में लॉग इन हुए. हम दोनो ने बौंसिंग के बारे में बातें  की और अभ्यास किया।  हमने इस बात पर  भी चर्चा […]

रविवार दिनांक 20-10 -13 को सुबह 9 बजे से 10 बजे तक हिंदी में स्काइप कॉल

प्रिय मित्रों, कल सुबह ( दिनांक 20-10 -13) 9 बजे से 10 बजे तक हिंदी में स्काइप कॉल में आपका स्वागत है। इस कॉल के दौरान हम prolongation , bouncing  आदि का अभ्यास करेंगे।  इसके साथ-साथ हम हकलाहट  के विषय में अपने अनुभव भी शेयर करेंगे। जो लोग इस कॉल में भाग लेना चाहते हैं […]

Fluency के पीछे मत भागिए . . . !

कुछ समय पहले एक हकलाने वाले मित्र से बातचीत हो रही थी। उन्होंने कहा कि बस, एक साल बाद वे Fluency पाने के बाद टीसा को छोड़ देंगे। मित्र की यह बात सुनकर मुझे आश्चर्य तो हुआ, लेकिन उनका उत्तर गौर करने लायक है। हर हकलाने वाला यही चाहता है कि वह धाराप्रवाह बोलने लगे। […]

पत्रिका न्यजपेपर – विदेशी यात्रियों का मौन . . .

आज 13 अक्टूबर, 2013 के पत्रिका न्यूजपेपर पर मेरा एक संस्मरण प्रकाशित हुआ है। ‘‘विदेशी यात्रियों का मौन’’ शीर्षक से प्रकाशित इस संस्मरण में इस बात की चर्चा की गई है कि मितभाषी होना क्यों जरूरी है? पश्चिमी देशों के लोगों से हम क्या अच्छी बातें सीख सकते हैं? और अधिक जानने के लिए इस […]

NC : प्रतिभागियों की प्रतिक्रिया

टीसा की तीसरी नेशनल कांफ्रेन्स (एनसी) नईदिल्ली में 4 से 6 अक्टूबर, 2013 तक आयोजित की गई। इस कार्यक्रम में भारत के 100 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया। वहीं 4 महिलाओं ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर एक नए अध्याय की शुरूआत की है। पेश है कुछ प्रतिभागियों की प्रतिक्रिया- 1. एनसी में आकर मैं […]

फेसबुक में सवाल पूछा गया था की २०१४ नॅशनल कांफ्रेंस कब होनी चाहिए ?

Anil Guhar फेसबुक में सवाल पूछा गया था की २०१४ नॅशनल कांफ्रेंस कब होनी चाहिए ? मेरी ओपिनियन है की अगर साल के शुरुआत में हो तो बेस्ट है, जैसे फरवरी में इसमें बसंत का मौसम भी होता है, जिसमे मौसम बहुत सुहाना होता है साथ साथ सुविधाजनक भी होता है, इसमें न तो गर्मी […]

NC : खुद को पहचानें, खुद को सार्थक करें – डा. सत्येन्द्र श्रीवास्तव

नई दिल्ली में आयोजित टीसा की तीसरी नेशनल कांफे्रन्स के अंतिम दिन 6 अक्टूबर, 2013 को टीसा के संस्थापक, डा. सत्येन्द्र श्रीवास्तव (सचिन सर) ने अपना प्रेरणादायी उदबोधन दिया। प्रस्तुत है उनकी स्पीच के सम्पादित अंश – एक साथ 100 से अधिक हकलाने वाले व्यक्तियों से मिलकर मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है। मैं आपके […]

3rd नेशनल टीसा कोंफ्रेंस, दिल्ली

हेलो फ्रेंड्स मैं अनिल,      वैसे बोस के तरफ से छुट्टी मिल नहीं रही थी, फिर भी बहुत रिकवेस्ट की तो मान गए | पर वर्क लोड ज्यादा था तो ५ दिन की छुट्टी की जगह २ दिन की ही मिल पाई, चलो ठीक है, कहते है न-   नहीं मामा से काना मामा […]

टीसा ब्लॉग पोस्ट का हिंदी रूपांतरण

        हेलो  मैं अनिल गुहार हु,मैं भी आप लोगो की तरह कभी कभी बहुत हकलाता, अटकता हूँ। टीसा का मंच बहुत अच्छा लगा, पर इसमें इंग्लिश में ही पोस्ट होती है, लेकिन  मेरे जैसे कई लोग जो कम पढ़े लिखे है जिन्हें इंग्लिश अच्छे से  नहीं आती है,  इस इंग्लिश की वजह […]

पत्रिका न्यजपेपर – कहानी – हिम्मत

आज 22 सितम्बर 2013 के पत्रिका न्यूजपेपर पर अमितसिंह कुशवाह की एक कहानी प्रकाशित हुई है। “हिम्मत” शीर्षक से प्रकाशित इस कहानी में हकलाहट से निराश युवक राहुल क्या-क्या कोशिशें करता है? और क्या सफलता मिलती है? जानने के लिए पढि़ए यह कहानी।http://epaper.patrika.com/162926/Patrika-Satna/22-09-2013#page/14/1

अमित की एक और कहानी

पत्रिका न्यूजपेपर – नई दिशा (कहानी)आज 8 सितम्बर 2013 के पत्रिका न्यूजपेपर पर मेरे द्वारा लिखी गई एक कहानी “नई दिशा” शीर्षक से प्रकाशित हुई है। इस कहानी में एक युवक हकलाहट और बेरोजगारी के कारण आत्महत्या करने का फैसला करता है। क्या वह ऐसा करने में सफल होता है या जीवन की नई राह […]

क्यों है मन में ऊबाऊपन

संसार में जितनी चीजें हैं, उनको पाने की चेष्टा में आदमी कभी नहीं ऊबता, पाकर ऊब जाता है। पाने की चेष्टा में कभी नहीं ऊबता, पाकर ऊब जाता है। इंतजार में कभी नहीं ऊबता, मिलन में ऊब जाता है। इंतजार जिंदगीभर चल सकता है; मिलन घड़ीभर चलाना मुश्किल पड़ जाता है… संसार के संयोग से […]

कुछ किए बिना ही जयजयकार नहीं होती

मेरे एक हकलाने वाले मित्र हैं। हकलाहट पर कई वर्कशाप में शामिल हो चुके हैं। ब्लाग और फेसबुक पर भी हकलाहट के बारे में काफी कुछ अच्छा लिखते हैं। इस दोस्त की एक समस्या है। वे जब भी फोन पर या आमने-सामने बातचीत करते हैं, तो अधिकतर समय कोई स्पीच तकनीक का इस्तेमाल नही करते। […]

पत्रिका न्यूजपेपर – फैसला (कहानी)

आज 25 अगस्त 2013 के पत्रिका अखबार में मेरी द्वारा लिखी गई एक कहानी प्रकाशित हुई है। “फैसला” शीर्षक से प्रकाशित इस कहानी में एक युवती टीचर है। वह एक हकलाने वाले युवक से शादी करने का प्रस्ताव स्वीकार कैसे करती है या नहीं करती? जानने के लिए पढि़ए यह कहानी . . . !http://epaper.patrika.com/151691/Patrika-Satna/25-08-2013#page/14/1

टीसा ने दी नई जिन्दगी . . . !

– विनयकुमार त्रिपाठी (इलाहाबाद, उत्तरप्रदेश) मैं अपनी पुरानी यादों को आप सबसे शेयर करना चाहता हूं। जब छोटा था तो यह अहसास ही नहीं था कि हकलाहट के कारण मेरी जिन्दगी नर्क होने वाली है। बचपन में मेरी आवाज सभी को बहुत प्यारी लगती थी। उम्र बढ़ने के साथ मुझे महसूस हुआ कि ठीक तरह […]

हकलाहट और पैसा …!

एक हकलाने वाले दोस्त से कल फोन पर बातचीत हो रही थी। वह बहुत निराश और दुःखी है। 5 माह से सेलेरी नहीं मिली। वह उदास रहता है। हकलाहट को नियंत्रित नहीं रख पाता। स्पीच तकनीक का इस्तेमाल नहीं कर पाता। माता, पिता, पत्नी, भाई, बहन सारे रिश्ते बेमानी लगते हैं। पैसा खुदा नहीं पर […]

भ्रम का चश्मा!

कई साल पहले टीवी पर एक सीरियल देखा था। एक सीनियर सिटीजन को संयोग से एक अद्भुत चश्मा मिलता है। इस चश्मे को पहनने के बाद वह लोगों के मन की बात को सुन पाता है। सामने वाले उसके बारे में क्या-क्या सोच रहा है, यह सबकुछ वह जादुई चश्मा पहनने वाले बजुर्ग को बता […]

आज मैं आजाद हूं!

हर साल स्वाधीनता दिवस पर स्कूल में कई इवेन्ट्स होते थे। मेरे पास विचार तो थे, पर अभिव्यक्त करने की क्षमता नहीं। भाषण प्रतियोगिता, वाद-विवाद प्रतियोगिता में मुझे ज्यादा रूचि रहती। पर अफसोस हकलाहट के कारण कभी इनमें भाग नहीं ले सका। जब इस तरह के आयोजन होते तो मन में बहुत निराशा उत्पन्न होती। […]