अनचाही परिस्थितियों को नकारना ही बेहतर रास्ता है

हकलाना- सच कहें तो यह एक व्यक्तिगत मामला है। जब कोई व्यक्ति बोलने के लिए लगातार संघर्ष करने के बाद ही ठीक तरह से समझने लायक न बोल पाए तो ऐसी स्थिति में सुनने वाले लोगों की प्रतिक्रिया हकलाहट को एक सामाजिक मुद्दा बना देती है।

अक्सर हकलाने वाले व्यक्ति की पीड़ा होती है कि लोग उसके हकलाने पर तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं व्यक्त करते हैं। कोई हंसने लगता है, कोई बड़े आश्चर्य से देखता है, तो कोई धीरे से, आराम से बोलने की सलाह देता है। ऐसे व्यवहार से हकलाने वाला व्यक्ति अंदर से टूट जाता है, उसे अपने आप पर गुस्सा आता है। अरे! सभी लोग अच्छी तरह से बोल पाते हैं, और एक मैं ही ऐसा अभागा हूं तो हकलाता हूं।

जब हम हकलाहट पर काम करना शुरू करते हैं तो अनचाही परिस्थितियों, अनचाहे व्यवहार को नकारना एक बेहतर विकल्प है। आपकी हकलाहट पर लोग क्या कहेंगे, लोग क्या सोचेंगे- अगर यह सब हम ही सोच लेंगे तो फिर लोगों के सोचने और करने के लिए बचेगा क्या? मतलब साफ है लोगों को जो सोचना हैं, जैसा करना हैं करने दीजिए। आप अपना दिमाग मत खराब करिए। दुनिया में बड़े-बड़े महापुरूषों तक को भी भला-बुरा कहा जाता है। रोज खिंचाई की जाती है। जितने मुंह उतनी ही बातें।

एक बड़ा सवाल यह है कि आखिर हम कैसे भूल जाए तो हमारे हकलाने पर लोग हंसते है? सच तो यह है कि आपको अगर खुद को मजबूत बनाना है तो भूलना ही होगा, ऐसी बातों के बारे में सोचना बंद करना पड़ेगा। अतीत की बुरी यादों पर मंथन करके सिर्फ तकलीफ के अलावा और कुछ मिलने वाला नहीं है।

कई बार होता यह है कि हम सालों पुरानी बातों या घटनाओं को अपने मन में बसाए रखते हैं। अरे! आज से 20 साल पहले स्कूल के एक टीचर ने हकलाने पर मुझे सजा दी थी? मैं कैसे भूल जाउं वह दर्दनाक घटना!

दूसरे हमारे साथ या हमारे हकलाने पर कैसा बर्ताव करें यह हम नहीं तय कर सकते। दूसरों के साथ मिलने पर हमेशा सुखद अनुभव ही हो यह अपेक्षा करना उचित नहीं है।

हकलाहट को नियंत्रित कर संचार कौशल को बेहतर बनाने के लिए हमें सिर्फ 2 मूल मंत्रों को ध्यान में रखना चाहिए- पहला स्वीकार्यता और दूसरा नकारना। स्वीकार्यता यानी अपनी हकलाहट को खुलकर स्वीकार करना। हम जैसे हैं, उसी रूप में, उसी भूमिका में खुद को स्वीकार करना। और नकारना यानी सभी दुखद और तकलीफदेह बातों, व्यवहारों और घटनाओं पर ध्यान न देना, भूल जाना।

फिर देखिए कमाल, हकलाहट के साथ जीवन बहुत ही सहज और आनन्दमय बन जाएगा।

– अमित सिंह कुशवाह
09300939758

Post Author: Amitsingh Kushwaha

3 thoughts on “अनचाही परिस्थितियों को नकारना ही बेहतर रास्ता है

    Sachin

    (September 23, 2017 - 5:39 pm)

    धन्यवाद् अमित… भूलने की क्षमता हमें प्रक्रिति ने इसी लिए दी है कि हम अनचाही बातो को भूल सकें और आगे बढ़ सकें.. मुश्किल तब होती है जब हम ऐसी अनचाही बातो को भूलने के बजाय बार बार याद करते हैं.. जाने अन्जाने..!

    Bhupendra Singh Rathore

    (September 29, 2017 - 12:37 pm)

    बिल्कुल सही है स्वीकार्यता से ही हम बेहतर संचारकर्ता बन सकते है , हकलाना हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग है और लोगो की बातों को नकारना भी बहुत आवश्यक हैं ।

    rohit kumar

    (November 30, 2017 - 8:57 pm)

    Hi sir aap bilkul sahi keh rahe hai Kyunki Main Bhi experiment kiya tha college mein attendance bolte Samay

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