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2 thoughts on “एक और अनुभव सार्वजनिक जगह पर बोलने का…”
Sachin
(January 24, 2017 - 2:48 pm)वाह वाह – बहुत सुन्दर अनुभव – और बयान भी बड़ी ईमानदारी से किया आपने..
ये लाइन पढ़ कर
“लेकिन कोई तैयार ही नहीं हुआ बोलने के लिए। ..”
हैरानी भी हुई और समझ आया की ना हकलाने वाले भी कितने डरे सहमे से रहते हैं.. उनसे बेहतर तो वह हकलाने वाला है जो हिम्मत करता है, कम्यूनिकेट करता है.. आशा है आप के साथी आप से सबक लेंगे – और दिव्यांग बच्चो की जिंदगी बेहतर बनाने की दिशा में मेहनत करेंगे..
शुभ कामनाएं, हम सबकी ओर से…
Raman Maan
(February 1, 2017 - 2:37 pm)bahut hi achhe paryaas hai aapke sir….good work