पहले दिन कार्यशाला की जिम्मेदारी पूरी करने के बाद मैं अनजान लोगों से बातचीत करने की गतिविधि के लिए बाहर आया। आसमान में बादल थे और बीच-बीच में हल्की हवा चल रही थी। मेरे समूह के सभी लोग पहले ही जा चुके थे, मैं अकेला था। गतिविधि के अनुसार पर्ची पर लिखा हुआ पता खोजना था। ये सारी पर्चियां मैंने ही बनाई थी, इसलिए मुझे सारी जगहों के बारे में पहले से ही पता था। लेकिन मुझे रास्ता पूछने का नाटक तो करना ही था। मेरा पता था भागवती मार्केट, सरस्वती मार्ग। मैं जानता था कि सरस्वती मार्ग सबको पता होगा, लेकिन भागवती मार्केट जैसे क्षेत्र करोल बाग में सैकड़ों हैं। तो मैंने भागवती मार्केट का पता पूछना शुरू किया। यह मेेरा कठिन कार्य भी था। उस वक्त अनजान लोगों के सामने कठिन शब्द बोलना मेरे लिए एक चुनौती बन गया। मैं चाहकर भी भागवती मार्केट नहीं बोल पा रहा था। मैंने खूब हकलाकर 10-15 लोगों से भागवती मार्केट का पता पूछा। फिर एक व्यक्ति मिला, वह मेरी परेशानी को समझ गया। उन्होंने अपने एक नौकर को बुलाकर भागवती मार्केट के बारे में पूछा, उसे नहीं पता था। इस प्रकार उसने 4 नौकरों से पूछा, लेकिन कोई नहीं बता पाया। फिर उसने अपने सुरक्षाकर्मी को पास बुलाकर पूछा। सुरक्षाकर्मी ने बताया- स्वीटमार्ट के बगल वाली गली में है। फिर वह व्यक्ति खुद मेरे साथ गया और एक पेन भी उपहार में दिया। भागवती मार्केट में पहुंचकर मैंने एक सेल्फी ली। वहां से वापस शास्त्री पार्क पहुंचना था। मैं शास्त्री पार्क जाने का रास्ता जानता था। मैंने फिर से लागों से शास्त्री पार्क का पता पूछना शुरू किया। पूछते-पूछते मैं वहां तक पहुंच गया।
दूसरे दिन हमारे पास 2 गतिविधियां थीं। एक तो पहले दिन की तरह पता खोजना और दूसरी आसपास के होटल पर जाकर एक प्रस्तावित कार्यक्रम के खर्च का ब्यौरा लेना था। पहला पता था- पेन्टालूम। यह हमाने खोज लिया। दूसरा था एमकेएमजी माॅल – यह पता हम लोग नहीं ढूंढ पाए। अब होटल से कोटेशन लेने की बारी आई। हमारे समूह में 4 सदस्य थे। मैंने सभी लोगों को बारी-बारी से होटल में आगे करके बातचीत करने का मौका दिया। हम लोगों ने लगभग 15 होटल पर जाकर बातचीत की। 20 लोगों के लिए कार्यशाला आयोजित करने का खर्च एवं उपलब्ध सुविधाओं की जानकारी लिया। 20 लोगों के ठहरने के लिए कहीं 1000 प्रति कमरा, कहीं 1600, तो कहीं 1800 और कहीं 2000 तक का प्रस्ताव होटल से मिला। कान्फ्रेन्स हाॅल के लिए एक होटल में 10000 का खर्च बताया गया। तो कहीं 995 रूपए प्रति व्यक्ति के हिसाब से खर्च आने की बात सामने आई।
इसके बाद हम लोग एक मोबाइल एसेसरीज की थोक दुकान पर गए। वहां 230 रू. में 4 जीबी का मेमोरी कार्ड और 370 रू. में 16 जीबी का मेमौरी कार्ड मिल रहा था। हम सभी एक ट्रेवल एजेन्सी के कार्यालय भी गए। वहां पर बैठा व्यक्ति सो रहा था। हमने उसे उठाया। उसने कहा- आप अपना मोबाइल नम्बर दे दो, मैं आपको फोन करके बता दूंगा। इस तरह सभी सदस्यों ने अनजान लोगों से बातचीत करने का एक सुन्दर अनुभव पाया।
शैलेन्द्र विनायक, नईदिल्ली।
1 thought on “दिल्ली संचार कार्यशाला: अनजान लोगों से बातचीत का अनुभव”
Sachin
(May 1, 2017 - 10:56 am)बहुत ही क्रिएटिव गतिविधि थी यह ..
सभी ने ये बात समझ ली होगी की हकलाना किसी भी काम में कभी भी रूकावट न था , न है –
अगर कोई रूकावट है तो बस अपने मन की सोच
और उस की थेरेपी तो हम ही कर सकते हैं – कोई दूसरा हमारी सोच कैसे बदल सकता है?
ऐसे ही और भी कार्यशाला करते रहे.. बहुत से लोगो की मदद हो पायेगी, इस तरह..
शुभ कामनाओं के साथ..