इस दुनिया में मां पर बहुत कुछ कहा गया लिख गया और महसूस किया गया, पर पिता रहे हमेशा उपेक्षित, मुझे याद आता है मेरा बचपन जब पिता तेज बारिश में बुखार होने पर मुझे अपनी गोद पर उठाकर, छाता लगाए हुए अस्पताल लेकर गए थे! मैं नहीं भूल पाता वह दिन जब एक बार पापा खुद मुझसे लिपटकर रोए थे, याद आता है वह दिन जब दूसरों से मेरी तारीफ किया करते थे, अक्सर जब कोई गलती हो जाती तो पापा अक्सर मेरी मां से कहते- तुम्हारे लाड़ले ने ऐसा किया? और अच्छा काम करने पर कहते- मेरे बेटे ने यह किया! मन में आज भी बसी है पापा की पहली राजदूत मोटर साईकिल पहली बार घर में टेलीविजन का आना मैं खुद साक्षी रहा पापा के हर संघर्ष का… फिर भी न जाने क्यों नासमझी ने मेरा दामन थाम लिया मैं पापा से बहुत दूर होता चला गया! दुर्भाग्य से एक दिन पापा खामोश हो गए हमेशा के लिए, तब मैंने जाना कि पिता का जीवन में क्या है महत्व पिता को हमेशा दोष देते जाना मेरी सबसे बड़ी भूल थी क्या हर कठिनाई के लिए मेरे पिता ही जिम्मेदार थे? नहीं, नहीं, नहीं! मेरे पापा महान थे मेरे लिए, सोचता हूं अगर वे आज साथ होते तो जीवन की मुश्किलें आसान हो जातीं, फिर लगता है शायद उन्होंने मुझे इस लायक समझा होगा कि मैं खुद सारी चुनौतियों का सामना कर सकूंगा इसलिए वे मुझे छोड़कर चले गए…
बहुत खूब लिखा है, अमित सर! मैं इसे अपने पापा को जरूर पढ़ाऊंगा।
मेरा मत है कि पिताजी भी हमारी तरह एक पुरुष ही तो हैं। और हमारे समाज मै पुरुष को संवेदनशील होने की, अपनी भावनाऐं व्यक्त करने की उतनी आज़ादी नही है। बस हमेशा अपने पुरुषार्थ को सिद्ध करने की जंग चल रही है। वो भी इसी के शिकार हो गए।
पिता से बात करते मैं अगर शब्दों की जगह उनके पीछे के इरादों को टटोला जाए तो बात खुद बखुद साफ हो जाती है। जो आपने यहां खूबसूरती से बताया भी है।
2 thoughts on “पापा, आप महान हैं!”
Sachin
(July 1, 2017 - 4:21 pm)हाँ – माता पिता हमें सब कुछ सिखा समझा कर अपने सुदूर पथ पर चल देते हैं ..
यही जीवन की रीत है ..
Pramendra
(July 17, 2019 - 11:02 am)बहुत खूब लिखा है, अमित सर! मैं इसे अपने पापा को जरूर पढ़ाऊंगा।
मेरा मत है कि पिताजी भी हमारी तरह एक पुरुष ही तो हैं। और हमारे समाज मै पुरुष को संवेदनशील होने की, अपनी भावनाऐं व्यक्त करने की उतनी आज़ादी नही है। बस हमेशा अपने पुरुषार्थ को सिद्ध करने की जंग चल रही है। वो भी इसी के शिकार हो गए।
पिता से बात करते मैं अगर शब्दों की जगह उनके पीछे के इरादों को टटोला जाए तो बात खुद बखुद साफ हो जाती है। जो आपने यहां खूबसूरती से बताया भी है।
धन्यवाद।