मेरा नाम भानु प्रताप सिंह है। मैं उत्तराखण्ड राज्य के अल्मोड़ा जिला का निवासी हूं। वर्तमान में मैं छत्तीसगढ़ के जिला रायगढ़ में निवास कर रहा हूं। मेरी उम्र 49 वर्ष है। अभी मैं डायरेक्ट सेलिंग में व्यवसाय कर रहा हूं, जिसे नेटवर्क मार्केटिंग भी कहा जाता है। इस व्यवसाय में रोज नए लोगों से बातचीत करना और लोगों के समूह को सम्बोधित करना होता है। यह कार्य करना एक हकलाने वाले व्यक्ति के लिए थोड़ा चुनौतीपूर्ण है। फिर भी मुझे इस व्यवसाय में खूबी नजर आई। मैंने अपनी हकलाहट के कारण इस व्यवसाय को नहीं अपनाने का बहाना नहीं बनने दिया। हालांकि मैं हकलाहट के कारण अन्तर्मुखी प्रकृति का व्यक्ति हूं, जो कि इस व्यवसाय के पक्ष में नहीं है। फिर भी मैं इस कमी को अपनी ताकत बनाने के प्रयास में हूं।
किसी भी व्यवसाय के लिए एक अच्छे संचार का बहुत महत्व है। इसलिए मैं भोपाल वर्कशाॅप में जाने के लिए बहुत उत्सुक था, क्योंकि भोपाल नजदीक था। भोपाल पहुंचने पर मेरी मुलाकाल वरूण, राकेश, सद्दाम और अमित से हुई। इसके बाद मेरे रूममेट शैलेन्द्र विनायक बने, जो कि काफी मजाकिया और परिपक्व व्यक्ति हैं। शैलेन्द्र जी से मेरी पहली मुलाकात 2017 में चंडीगढ़ नेशनल कांफ्रेन्स में हुई थी।
संयोगवश हमें वर्कशाॅप के लिए जिस स्थान स्मृति स्टार होटल में जाना था उसी शब्द पर हकलाता भी था। फिर भी एक आॅटो रिक्शा वाले से पता पूछकर हम कांफ्रेन्स हाल में दाखिल हुए। यहां पर कई लोग उपस्थित थे। इनमें से एक विदेशी महिला भी थीं। वहां मैं पहली बार ध्रुव गुप्ता से भी मिला, जो कि खुद भी विदेशी लगते हैं। वर्कशाॅप में सबसे पहले परिचय सत्र हुआ। सभी ने एक-एक करके अपना परिचय दिया।
इसके बाद विपश्यना के प्रशिक्षकों द्वारा हमें विपश्यना के बारे में अवगत कराया गया। इनसे यह भी पता चला कि विपश्यना सीखने के लिए भोपाल में ही हर महीने 2 बार 10 दिवसीय आवासीय शिविर लगते हैं जो की एकदम फ्री हैं। विपश्यना की एक डीवीडी और कुछ छपी हुई सामग्री हम लोगों को प्रदान की गई।
बैंगलोर से आए अभिनव सिंह ने मंच का संचालन किया। इनको देखकर लगा कि उन्होंने काफी हद तक स्वीकार्यता को अपना लिया है। इसके बाद कई एक्टिविटी कराई गईं। कई बार लागों के समूह के सामने बोलने का मौका मिला और कहीं न कहीं खुलकर न बोल पाने की कुंठा से निजात मिली।
सबसे रोचक एक्टिविटी मुझे इंटरव्यू वाली लगी। सौभाग्य से मेरी पार्टनर विदेशी महिला नूरा बनीं। मैं काफी नर्वस भी था, क्योंकि लड़कियों से बात करने में थोड़ा हिचकता हूं तथा मेरी स्पोकन इंग्लिश बहुत कमजोर है। वहीं नूरा भी हिन्दी सीखने के शुरूआती दौर में थीं। पता नहीं कैसे फिर भी मैं उनके साथ अपने आपको सहज महसूस करने लगा। शायद ऐसा नूरा के परिपक्व व्यवहार से हुआ। यहां मुझे एहसास हुआ कि परिपक्वता उम्र से नहीं व्यक्ति के अनुभव व ज्ञान से आती है। मजे की बात तो यह भी थी कि नूरा हकलाती नहीं थीं। मंच पर जब एक-दूसरे के बारे में बताना था तो नूरा ने मेरे बारे में आशा से कहीं अधिक स्पष्टता से बताया। जैसे उन्होंने मेरे एक-एक शब्द को ध्यान से सुना हो। वहां पर मुझे पता चला कि संचार में ध्यान से सुनने का बहुत अधिक महत्व है। इस गितिविधि के लिए मुझे और नूरा को उपहार भी दिया गया।
कार्यशाला में कई रोचक गतिविधियों के बाद आखिरी गतिविधि थी अनजान लोगों से निर्धारित मुद्दों पर बात करना। यह मेरे लिए काफी महत्वपूर्ण था, क्योंकि मेरे व्यवसाय में भी यह प्रक्रिया बार-बार करनी पड़ती है। हमारे समूह में मैं, अभिनव और नूरा शामिल थे। इस गतिविधि से मेरी अनजान लोगों से बात करने की झिझक काफी हद तक खत्म हो गई। अभिनव से मैं काफी प्रेरित हुआ। शाम को मैं बस पकड़कर लीला लाॅज पहुंचा। मेरे साथ आशीष सिंह व रोहित भी थे। रात में मैं और मेरे रूममेट शैलेन्द्र काफी देर तक बातें करते रहे। वे काफी रोचक और प्रभावी व्यक्ति हैं।
दूसरे दिन सुबह हम होटल स्मृति स्टार काफी विश्वास से भरे हुए पहुंचे मानो भोपाल को काफी हद तक जानते हों। दूसरे दिन भी कई रोचक गतिविधियां हुईं जैसे- वालेन्टरी स्टैमरिंग यानी जान-बूझकर हकलाना, गाना गाना इत्यादि। आखिर में सभी लोग बैंगलोर में मिलने का वादा करके विदा हुए। मैं ध्रुव, नूरा और शैलेन्द्र के साथ भोपाल के आदिवासी संग्रहालय गया। यहां पर तबला और वायलिन वादन का कार्यक्रम चल रहा था। फिर भरतनाट्यम नृत्य का भी आनन्द लिया। संग्रहालय में पहुंचकर ऐसा लगा रहा था मानो हम बहुत प्राचीन काल में पहुंच गए हों। मैं सभी को सलाह दूंगा कि भोपाल जाएं तो इस संग्रहालय में जरूर जाएं।
वहां से लौटते-लौटते रात के 8.50 बज गए। मेरी Train 9.40 पर थी जो कि सही समय पर चल रही थी। बीच में बारात का जाम होने के कारण मैं और शैलेन्द्र 9.40 बजे लीला लाॅज पहुंचे। उसके बाद मैं अपना सामान लेकर सीधे सड़क पर पहुंचा और एक पुजारी जी से रेल्वे स्टेशन जाने का शार्टकट हकलाते हुए पूछा। शैलेन्द्र भी मेरे पीछे हांफते हुए आ रहे थे। स्टेशन पहुंचने की जल्दी में सामान लेकर दौड़ते हुए गिर भी पड़ा। रास्ते में रेल्वे स्टेशन का पता पूछने के लिए एक लड़के को हकलाते हुए पूछा तो कान में इयरफोन लगा होने के कारण उसे कुछ समझ में नहीं आया। किसी प्रकार रेल्वे ओवर ब्रिज पर पहुंचा तो मेरी Train चल रही थी। वहां एक व्यक्ति से पूछा कि ये टेन आ रही है या जा रही है तो बोला आ रही है। तब मेरी सांस में सांस आई। मुझसे बहुत पहले राकेश जायसवाल स्टेशन पहुंच चुके थे जो मुझे खोजते-खोजते मिल गए और काफी आत्मीयता से हमारी भेंट हुई। इस प्रकार मैं रायगढ़ के लिए रवाना हुआ। यहां मुझे समय का महत्व समझ में आया।
– भानु प्रताप सिंह, रायगढ़, छत्तीसगढ़।
09826484940
2 thoughts on “भोपाल कार्यशाला : संचार के लिए ध्यान से सुनने का महत्व जाना…”
Satyendra Srivastava
(March 1, 2018 - 8:02 pm)भानु जी, मै भी उत्तराखंड से हूँ और बड़ी ख़ुशी हुई ये देख कर की आप तमाम चुनौतियों के बावजूद कार्यशाला में आये और उस से कुछ सीखा.. अब ये सिलसिला आगे भी जरी रखिये.. सीखने और अभ्यास करने का..
ABHISHEK KUMAR
(March 1, 2018 - 8:48 pm)Bhanuji ,, aap to chaa gaye.. Aapka lekh padhkar chandigarh conference ki yaadein taaza ho gayi…:)