मैं शिक्षा विभाग में स्पेशल एजूकेटर के रूप में कार्य कर रहा हूं। मुझे समय-समय पर ट्रेनिंग प्रोग्राम में शामिल होना पड़ता है, जिससे अपने ज्ञान और कौशल को अपडेट किया जा सके, कुछ नया सीखा जा सके। इस बार एक 5 दिन का ट्रेनिंग प्रोग्राम भारत सरकार के संयुक्त क्षेत्रीय केन्द्र (दिव्यांगजन) भोपाल पर आयोजित किया गया। 13 से 17 फरवरी, 2017 तक आयोजित इस प्रोग्राम में मैं शामिल हुआ। प्रोग्राम का विषय था- ‘‘समावेशित शिक्षा के लिए रणनीतियां’’। प्रोग्राम में हम सभी लोगों ने सीखा की सामान्य स्कूल में दिव्यांग बच्चों को बेहतर तरीके से शिक्षा कैसे दी जा सकती है? क्या-क्या उपाय अपनाने चाहिए? कार्यक्रम में भारत के कई राज्यों के 30 स्पेशल एजूकेटर और क्लीनिकल साॅईकोलाॅजिस्ट शामिल हुए।
5 दिनों के दौरान मुझे अपना परिचय देने में कोई खास परेशानी नहीं हुई। 5 दिन काफी अच्छे से बीते। हम लोगों ने नजदीक के एक समावेशित स्कूल में विजिट कर वहां की व्यवस्थाओं को देखा एवं समस्याओं को जाना। वहां पढ़ाई कर रहे दिव्यांग बच्चों के सम्बंध में चर्चा की। ट्रेनिंग प्रोग्राम का पाचवां और अन्तिम दिन था। मैं सोच रहा था यहां पर हकलाहट के बारे में कैसे बातचीत करूं? पता नहीं मुझे बोलने की अनुमति मिलेगी या नही? मैंने संस्थान के डाॅयरेक्टर से सीधे जाकर बात की और बताया की मैं हकलाता हूं और अपने अनुभव साझा करना चाहता हूं। इसके लिए वे सहर्ष तैयार हो गए। समय मिला सिर्फ 15 मिनट का। मैंने बहुत ही संक्षिप्त में हकलाहट पर अपने अनुभव सबको बताए। उन्हें बताया कि अगस्त 2008 में जब मैं इस संस्थान के इसी हाॅल प्रशिक्षण लेने के लिए आया था तो एक कोने में अकेला बैठा रहता था। हमेशा डर रहता था कि कहीं कोई मुझसे मेरा नाम न पूछ ले। मैंने प्रतिभागियों को बताया कि हकलाने वाले बच्चों की मदद हम कर सकते हैं। मेरे इस संक्षिप्त जानकारी पर सबकी प्रतिक्रिया अच्छी एवं सुखद रही।
अंतिम दिन के आखिरी सत्र में 2 प्रतिभागियों से प्रोग्राम का फीडबैक चाहा गया। एक पुरूष एवं एक महिला को सामने माइक पर आकर बोलने के लिए कहा गया। प्रोग्राम कोआर्डिनेटर ने आगे आने के लिए आह्वान किया, लेकिन कोई प्रतिभागी सामने नहीं आ रहा था माइक पर बोलने के लिए। मैंने सोचा कि अभी तो बोला हूं हकलाहट पर, इसलिए किसी दूसरे को मौका मिलना चाहिए। आखिर में जब कोई नहीं उठा तब मैंने हाथ उठाया। मंच पर जाकर इस प्रशिक्षण कार्यक्रम की तारीफ किया, आयोजकों को धन्यवाद दिया और इसी तरह का एक प्रोग्राम आॅटिज्म पर आयोजित करने का सुझाव दिया। मेरे सुझाव को तत्काल मान लिया गया। इस प्रकार 5 मिनट और बोलने का मौका मिला। इस तरह यह प्रशिक्षण कार्यक्रम सुखद एवं रोमांचक रहा।
अगले दिन मैं भोपाल में संचालित श्री रामकृष्ण मिशन आश्रम गया। वहां पर स्वामी जैत्रानन्द जी से मेरी मुलाकात हुई। उन्होंने प्रेमपूर्वक मुझे बैठाया। मैंने अपने जीवन की कुछ व्यक्तिगत समस्याओं का जिक्र स्वामीजी से किया और समाधान चाहा। स्वामीजी ने कहा- आपकी यह समस्या वास्तव में बहुत छोटी समस्या है। आपको खुद को अंदर से मजबूत बनाना होगा। मनुष्य में वह ताकत है कि वह पूरे संसार को हिला सकता है। इसलिए अपनी ऊर्जा सकारात्मक एवं अच्छे कार्यों में लगाओ। बुरी बातों एवं विचारों को मन में लाकर खुद को दूषित मत करो। दुनिया की चिन्ता मत करो। सिर्फ अपना कर्तव्य निभाओ। स्वामीजी से इस प्रेरणादायी मुलाकात ने मन में उत्साह एवं उमंग का संचार किया। वहां से मैंने एक पुस्तक भी खरीदी- श्री रामकृष्ण वचनामृत। बहुत ही सुंदर किताब है यह। इस प्रकार भोपाल की 6 दिन की यह यात्रा काफी आनन्ददायी और अनमोल रही।
सम्पर्क: 093009300939758
2 thoughts on “भोपाल की एक यादगार यात्रा…”
Sachin
(February 20, 2017 - 10:59 pm)क्या बात है! सचमुच – इस से बहुत कुछ सीखा जा सकता है – एक तो ये, की अगर पंद्रह मिनट मिले हैं तो उस सीमा का हमें आदर करना चाहिए और अपनी बात संक्षेप में रखना आना चाहिए.. दूसरी बात हाथ खड़ा कर के पहल कने की कला हमें सीखनी चाहिए..
और बिना किसी थेरापिस्ट के हम अपनी मदद इस तरह कर सकते हैं, जैसे आपने किया है – ये सबसे बड़ा सबक है ! धन्यवाद्..
vishal
(February 21, 2017 - 11:27 am)behad acha anubhav mila mujhe is kahani ko pad kar aur ab to mai bus aapke post ka wait karta hu kitna kuch seekhne ko milta hai aapse and aapke anubhav se….maja a gaya amit ji 🙂 vastav me haklaana ek choti se cheej hai jise hum bada bana dete hai 🙂