नमस्कार दोस्तों, मेरा नाम जगदीश मेवाड़ा है। मैं भोपाल में रहता हूं। मैंने हाल ही में 17-18 फरवरी 2018 को भोपाल में तीसा की संचार कार्यशाला में भाग लिया। इस कार्यशाला में मेरा अनुभव बहुत अच्छा रहा। कार्यशाला में मैंने सीखा की हकलाहट को छिपाने से बेहतर है, हम उसे स्वीकार करें और आगे बढ़ें। यदि हमारे अंदर कोई कमी है तो उसे स्वीकार कर लेना चाहिए और उसे सुधारने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए। मैं आज भी कई जगह पर स्वीकार करने में असहज महसूस करता हूं कि मैं हकलाता हूं। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि यदि हम हकलाहट की शर्म छोड़ दें तो हमारा संचार सुधर सकता है। हकलाहट को छिपाने में हम हमारी पूरी उर्जा, पूरा जोर, गले को दबाना आदि प्रयास करते हैं। यही उर्जा अगर हम हकलाहट को बताने में या यूं कहें कि प्यार से हकलाने में लगाएं तो हमारा संचार अच्छा होगा। मेरा सभी से अनुरोध है कि हकलाहट को स्वीकार करें और खुलकर हकलाएं। साथ ही तीसा द्वारा बताई गई तकनीक जैसे- बाउंसिंग, प्रोलांगशिएशन, वालेन्टीरी स्टेमरिंग आदि की सहायता से अपने संचार को बेहतर बनाएं। हमारा प्रयास हमारे संचार को ठीक करना होना चाहिए, न कि हकलाहट को रोकना। मुझे इस कार्यशाला से बहुत कुछ नया सीखने को मिला। स्वीकार्यता को बल मिला है एवं मैं अपने संचार को बेहतर करने की दिशा में अग्रसर हूं।
मेरा अनुभव पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद।
– जगदीश मेवाड़ा, भोपाल।
07987577275
2 thoughts on “भोपाल संचार कार्यशाला: स्वीकार्यता को मिला नया आयाम”
Satyendra Srivastava
(February 25, 2018 - 10:19 am)बहुत अच्छा लेख .. उम्मीद है अन्य प्रतिभागी भी अपनी प्रतिक्रियाएं बाँटेंगे..
JAGDISH MEWADA
(February 27, 2018 - 3:00 pm)thanks sir