मैं शिक्षा विभाग में काम करता हूं और दिव्यांग बच्चों को पढ़ाना मेरे काम का हिस्सा है। कोरोना महामारी के प्रकोप के चलते सभी स्कूल पिछले 6 महीने से बंद हैं। इसलिए सरकार ने ‘‘मेरा घर, मेरा विद्यालय अभियान’’ चलाया है। इसके तहत शिक्षक बच्चों के घर पर जाकर पढ़ाते हैं।
मैं भी दिव्यांग बच्चों के घर पर जाता हूं। उन बच्चों, माता-पिता और शिक्षकों का मार्गदर्शन करने के लिए। पिछले सप्ताह एक मानसिक रूप से चुनौतीपूर्ण बच्ची के घर पर जाना हुआ। गांव में पहुंचने पर उसकी मां से बातचीत होने लगी। काफी देर तक मैं मां से उसकी बच्ची के बारे में, उनके परिवार के बारे में चर्चा करता हूं। वह एक साधारण ग्रामीण महिला थी। चार बेटियां और पति गुजरात में मजदूरी करते हैं। यानी परिवार की सारी जिम्मेदारी उस महिला के कंधों पर ही है।
वह महिला बातचीत करते समय कहीं-कहीं पर अटक रही थी। लेकिन फिर भी वह अपनी बात पूरे आत्मविश्वास के साथ कह रही थी। उसके चेहरे पर अपनी हकलाहट को लेकर कोई शर्म, कोई डर, कोई शिकायत का भाव नहीं था। बिल्कुल ही सहज और सरल था उस महिला का आचरण।
उस दिन उस महिला से बातचीत कर मैंने एक नए अनुभव और सीख को समझ पाया। सच कहें तो हकलाना हमें जिन्दगी जीने से नहीं रोकता है। हमें शायद मालूम नहीं होता है कि हमारे आसपास कोई मजदूरी करने का वाला व्यक्ति, कोई सब्जी बेचने वाला आदमी, कोई वृद्ध किसान भी हकलाहट के साथ अपनी जिन्दगी जिए चले जा रहे हैं वह भी बिना किसी से कोई शिकायत किए बगैर।
हकलाहट की स्वीकार्यता हमें इसी दिशा में आगे बढ़ाती है कि हम अपने अन्दर से अपने प्रति या दूसरों के प्रति शिकायत का भाव त्याग दें और खुलकर अपना जीवन हकलाहट के साथ जीना शुरू करें।
~ अमित सिंह कुशवाहा
सतना, मध्यप्रदेश।
9300939758
1 thought on “शिकायत किसलिए?”
Ashish Dwivedi
(October 27, 2020 - 9:25 pm)हकलाहट के साथ जिए कैसे