साहसिक प्रयासों से मिलती है कामयाबी

Photo: Dheeraj Kumar Mishra

जब किसी रेत की इमारत को चंद हवाओं के झोंके गिरा दें, और फिर हम उसी टूटी हुई इमारत को पुनः बनाने में मशगूल हो जाएं, तो यह साहस है, हड़बड़ाहट नहीं।

अक्सर, इसी जद्दोजहद से गुजरता है एक हकलाने वाला व्यक्ति। जब हम किसी व्यक्ति को स्पष्ट और धाराप्रवाह बोलते हुए सुनते हैं, तो हमारी आवाज रेत की एक इमारत के समान ढह जाती है। मगर साहस के साथ दोबारा की गई कोशिश शब्दों के नए कलेवर जोड़ने लगती है।

ऐसी ही कहानी मेरी है। मैं धीरजकुमार मिश्र बिहार के रोहतास जिले का निवासी हूं। एक घटना आपसे साझा कर रहा हूं। हुआ कुछ यूं था कि मैंने नेशनल डिफेन्स अकादमी (एनडीए) का फाॅर्म 2017 में भरा था। इसकी परीक्षा रांची शहर के डीएवी काॅलेज में थी। सब कुछ ठीक चल रहा था। मैं रांची जाने वाली रेल पर जाकर बैठ गया। सोच रहा था जब गाड़ी स्टेशन पर रूकेगी तो मैं अपने अन्दर साहस लाकर परीक्षा केन्द्र का पता लोगों से पूछूंगा।

जब मैं स्टेशन पर पहुंचा तो हजारों परीक्षार्थियों की फौज पहले से ही स्टेशन पर खड़ी थी और सभी अपने-अपने परीक्षा केन्द्र का पता वहां मौजूद जानकार लोगों से पूंछकर अपने गंतव्य की ओर रवाना हो रहे थे। मेरा साहस दूर से ही उबाल मार रहा था। मैं जैसे ही वहां पर पहुंचा, मेरा साहस कमजोर पड़ने लगा, साहस और सांस के बीच में गजब का मुकाबला हो गया, और मेरी सांस इस मुकाबले में जीत गई। अब आप समझ गए होंगे कि मैं क्या कहना चाहता हूं?

जी हां, मैं उस समय अपने परीक्षा केन्द्र का पता नहीं पूंछ पाया और मुझे अपना एडमिट कार्ड निकालकर लोगों को दिखाना पड़ा, ताकि बोलना कम पड़े और लोग मेरे परीक्षा केन्द्र का पता बता दें।

किन्तु आज 3 साल गुजर गए हैं। तीसा परिवार में रहते हुए, अब वह समस्या कोसों दूर जा चुकी है। अभी भी वह रेत की इमारत है मगर अब हवाओं के झोंके उसे उड़ा नहीं पाते, क्योंकि रेत की इमारत ने अब हवाओं से साहस के साथ मुकाबला करना सीख लिया है।

~ धीरज कुमार मिश्र
रोहतास (बिहार)

Post Author: Amitsingh Kushwaha

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