इस बैठक में किसी को दूसरे का वाक्य पूरा करने की जल्दी नहीं है। सूत्र वाक्य है- बोलने के लिए पूरा समय लें, बीच-बीच में रूककर बोलें, शब्दों को लम्बा करके बोलें। बैठक में शिल्पा सगवाल अपने टी-शर्ट के रंग का वर्णन करने के लिए हाथ उठाती हैं। वे कहती हैं- आज मैंने आसमानी नीले रंग की टी-शर्ट पहनी है। 9 पुरूषों के साथ एक बैठक में शामिल शिल्पा 2 लोगों को जानती तक नहीं हैं। लेकिन उन्हें महसूस होता है कि वे भी उन्हीं की तरह हैं।
ये सभी लोग एक ऐसी अदृश्य चुनौती का सामना कर रहे हैं, जो हर बार बोलने में रूकावट पैदा करती है। वे सब इस बाधा को दूर करने के लिए कई तरह की गतिविधियां कर रहे हैं। जैसे- अपने शर्ट का रंग बताना, बातचीत करने के तरीके और सावधानियां, आॅफिस के बाॅस, साक्षात्कार, लोगों की प्रतिक्रियाएं, स्वीकार्यता और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर खुली चर्चा कर रहे हैं।
शिल्पा ने पूछा- मैं बोलते समय उत्तेजित हो जाती हूं, मुझे क्या करना चाहिए। शिल्पा कैमिकल टेक्नोलाॅजी की छात्रा है और जल्द ही होने वाली टाॅफेल परीक्षा को लेकर बहुत चिंतित हैं। एक सदस्य ने सलाह दी- आप जैसी हैं, उसी रूप में खुद को स्वीकार करना सीखें, इसे अपनी ताकत बनाएं, इसके बारे में खुलकर बातचीत करें। ऐसा मेरे एक दोस्त ने भी किया था, जिसने हार्वर्ड विश्वविद्यालय में एडमीशन के लिए आवेदन किया था। शिल्पा ने स्वीकृति में सिर हिलाया। वे हकलाने वाली ऐसी युवती हैं, जो बोलते समय किसी शब्द पर रूक जाती हैं, अटक जाती हैं। बोलते समय यह लड़खड़ाहट उन्हें अंदर तक बहुत परेशान करती है।
हर रविवार को मुम्बई के घाटकोपर इलाके में हकलाने वाले लोगों के स्वयं सहायता समूह की बैठक आयोजित होती है। यहां पर शिल्पा बाकी सब लोगों से थोड़ा अलग हैं। वह इसलिए, क्योंकि महिलाओं की तुलना में हकलाने वाले पुरूषों की संख्या विश्व स्तर पर अधिक है। पुरूष और महिला के बीच इसका अनुपात 4:1 का है। अभी तक हुए शोध भी इस बात को प्रमाणित करते हैं कि हकलाने वाले पुरूषों की आबादी महिलाओं की तुलना में अधिक है। हालांकि कुछ स्पीच थैरेपिस्ट का मानना है कि हकलाना एक अनुवांशिक समस्या है। अभी हालही में हुए एक अमेरिकी शोध में दावा किया गया है कि हकलाने वाली महिलाओं के मस्तिष्क की संरचना हकलाने वाले पुरूषों से थोड़ा भिन्न पाई गई है, यही पुरूष-महिला के बीच अनुपात का कारण है।
हकलाने के कारण शिल्पा को अपने जीवन में कई असुविधाजनक हालातों का सामना करना पड़ता है। बचपन में जब वे बोलते समय अटक जाती थीं जो उनकी मां मुंह में सूखे मेवे डालती थीं। इस आशा में की शायद इस उपाय से शिल्पा का हकलाना ठीक हो जाए। हरियाणा के छोटे से कस्बे की रहने वाली शिल्पा की कोई सहेली भी नहीं थी। स्पीच थैरेपिस्ट भी शिल्पा की हकलाहट के लिए कुछ खास नहीं कर पाए। हर बार भाषणबाजी ही सुनने को मिली। कुछ तो कहते कि वे पहली बार किसी हकलाने वाली युवती से मिल रहे हैं। एक लड़की का हकलाना सभी के लिए आश्चर्यजनक था।
भारत हकलाने वाली महिलाओं के लिए एक चुनौतीपूर्ण जगह है। तीसा के एक वरिष्ठ सदस्य ने बताया कि भारत में ये महिलाएं दोहरे खतरे का सामना कर रही हैं। पहला- वे हकलाती हैं और दूसरा- पुरूष प्रधान समाज महिलाओं से हर क्षेत्र में बेहतर होने की अपेक्षा रखता है। जबकि हकलाने वाले पुरूष इस स्थिति से आसानी से छुटकारा पा जाते हैं। पारिवारिक रजामंदी से होने वाली शादियों में पुरूषों की कमियों को नजरअंदाज कर दिया जाता है। शायद यही कारण है कि हकलाने वाली महिलाएं सहायता के लिए समाज में खुलकर सामने नहीं आ पातीं या हकलाने वाले लोगों के राष्ट्रीय सम्मेलन में भागीदारी नहीं कर पातीं। द इण्डियन स्टैमरिंग एसोसिएशन (तीसा) का राष्ट्रीय सम्मेलन अक्टूबर, 2014 में खण्डाला (पुणे) में सम्पन्न हुआ। इसमें 100 पुरूष और केवल 3 महिलाएं शामिल हुईं। ये सभी महिलाएं महानगर मुम्बई की थीं।
25 साल की उपासना नायक (बैंगलोर) ने बताया कि उनके माता-पिता अक्सर शादी की बात पर चिंतित हो जाते हैं। वे मेरी स्पीच को लेकर कई सुझाव देते हैं। उपासना अपने माता-पिता की भावनाओं को समझती हैं। उनके लिए यह उम्मीद करना मुश्किल है कि होने वाले पति और उनके परिवार के सदस्य हकलाहट को समझ पाएंगे, उसे स्वीकार कर पाएंगे। उपासना कुछ कैम्पस इंटरव्यू में हकलाने की वजह से सफल नहीं हो पाईं। जब वे अपने नाम के पहले अक्षर पर रूक जाती हैं, तो लोग मानते हैं कि उपासना या तो मूर्ख हैं या फिर बहुत धीमी प्रतिक्रिया करती हैं। लोग कहते हैं- तुम अपना नाम भूल गई क्या? इस तरह के परेशान करने वाले आधारहीन सवालों को रोज झेलना पड़ता है।
चण्डीगढ़ की 25 वर्षीय युवती नाजिया खान (परिवर्तित नाम) ने बताया- वे हकलाती हैं, यह बात उनके पिता को नहीं मालूम। नाजिया के लिए सबसे कठिन अक्षर ए, एस और टी हैं। परिवार के साथ रहते हुए हकलाहट बहुत कम होती है और स्कूल में भी एक सीमित दायरे तक रहकर वे हकलाहट से बचती रहीं। सार्वजनिक स्थानों पर बोलने की कल्पना मात्र से ही नाजिया के मन में भूचाल सा आ जाता है। नाजिया के बोलने के तरीके पर लड़कियां अक्सर मजाकियां लहजे में प्रतिक्रिया व्यक्त करती हैं। नाजिया जब किसी अनजान शहर में होती हैं, तो उनका हकलाना कई गुना बढ़ जाता है। और यह ऐसा समय होता है जब बार-बार आत्महत्या करने का विचार मन आता है। तब वे हर शब्द और वाक्य के बारे में गहराई से सोचती हैं। हकलाहट से बचने के लिए कठिन शब्दों के स्थान पर कोई आसान और वैकल्पिक शब्द इस्तेमाल करती हैं।
एक बात और ध्यान देने योग्य है। पुणे के एक स्पीच थैरेपिस्ट, जिन्होंने हकलाने वाली महिलाओं को थैरेपी दी है, वे बताते हैं कि महिलाएं अपनी स्पीच सम्बंधी समस्याओं से जल्दी बाहर आ जाती हैं। वे पुरूषों की अपेक्षा भावनात्मक रूप से अधिक मजबूत होती हैं।
तीसा के स्वयं सहायता समूह की बैठक में ध्रुव गुप्ता ने एक घटना का जिक्र करते हुए बताया- हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रवेश फाॅर्म में एक युवती ने हकलाहट को अपनी ताकत के रूप में उल्लेखित किया था। उस युवती ने लिखा था- हकलाहट उसे मजबूत और साहसी बनाती है।
प्रियंका (परिवर्तित नाम) ने कहा- हकलाहट जीवन में नया करने या आगे बढ़ने से नहीं रोकती। जैसे- उनकी उम्र की युवतियों द्वारा किसी दुकानदार से मोलभाव करना या अपने मित्र से रात में लम्बी बातें करना हो। प्रियंका ने अपने एक मित्र की चर्चा करते हुए बताया- वह हर जगह मेरा साथ देता है। साये की तरह मेरे साथ रहता है, असुरक्षित स्थानों पर भी। लेकिन मैं जानती हूं कि वह ऐसा क्यों करता है? वह यह नहीं समझ पाता कि मैं जहां जाना चाहती हूं, उस स्थान का नाम रिक्शावाले को बता पाने में सक्षम हूं, बिना हकलाए हुए… प्रियंका ने मुस्कुराते हुए कहा।
1 thought on “हकलाने वाली महिलाएं…”
Sachin
(January 21, 2017 - 7:44 pm)अमित जी – बहुत सुन्दर अनुवाद के लिए धन्यवाद् .. पढ़ कर बहुत अच्छा लगा..
सचिन