हकलाहट के लिए जागरूक और ईमानदार होने की जरूरत

एक दिन लोकसभा टीवी पर रात में एक कार्यक्रम प्रसारित हो रहा था- जनपक्ष। वैसे तो मैं लोकसभा  टीवी अक्सर देखता हूं, लेकिन उस समय अनायास ही इस चैनल पर रूक गया। कार्यक्रम में मानसिक स्वास्थ्य पर चर्चा चल रही थी। कुछ विशेषज्ञ और कई सुनने और सवाल पूछने वाले लोग बैठे हुए थे।

एक विशेषज्ञ ने कहा- हमारे समाज में 80 प्रतिशत तक हम सिर्फ शारीरिक स्वास्थ्य पर ही ध्यान देते हैं। शरीर स्वास्थ्य होने के बावजूद भी किसी व्यक्ति को कई परेशानियां हो सकती है। मानसिक और सामाजिक स्वास्थ्य पर कभी ध्यान नहीं दिया जाता, या बहुत कम ध्यान दिया जाता है। हमारे देश में मानसिक बीमार लोगों के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं का बेहद अभाव है, और लोगों में जागरूकता की कमी है।
चर्चा के दौरान एक अन्य विशेषज्ञ ने बहुत ही सुन्दर बात कही- मानसिक रूप से बीमार लोगों का अपमान और तिरस्कार नहीं किया जाना चाहिए।

कार्यक्रम में एक विशेषज्ञ ने कहा- जैसे एक हकलाने वाला व्यक्ति अपने अवचेतन मन पर काम करे तो अपनी हकलाहट को ठीक कर सकता है। यह पहला अवसर था जब हकलाहट के बारे में टीवी पर कोई प्रमाणिक और कारगर बात सुनने और देखने को मिली। हालांकि यह कार्यक्रम मानसिक स्वास्थ्य पर आधारित था, इसलिए हकलाने के बारे में कोई चर्चा नहीं की गई।

यह कार्यक्रम देखकर मेरे मन में एक सवाल उठा कि हकलाहट को क्या हमारे सामाजिक स्वास्थ्य से जोड़ा जा सकता है?

हकलाहट का प्रभाव व्यक्ति पर सामाजिक बोझ के कारण अधिक होता है। हमारा समाज हर व्यक्ति से धाराप्रवाह बोलने की आशा करता है, इसी चाह में हकलाने वाला व्यक्ति दूसरे की तरह नहीं बोल पाने के कारण खुद को अकेला महसूस करता है।

एक सुन्दर बात तो यह है कि अगर एक हकलाने वाला व्यक्ति खुद कोशिश करे तो वह एक कुशल संचारकर्ता बन सकता है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने एक कविता में कहा है- टूटे मन से कोई खड़ा नहीं हो सकता, छोटे मन से कोई बड़ा नहीं हो सकता। सच तो यही है कि हमें हकलाहट हो या जीवन की कोई और चुनौती उसका सामना बहादुरी से करने पर ही समाधान पा सकते हैं।

मैंने अपने आसपास पाया कि धाराप्रवाह बोलने वाले भी चाहे आपस में बैठकर ढेर सारी बातें करते रहते हैं, लेकिन जब कुछ लोगों के सामने बोलने का मौका मिलता है तो वे बचने की कोशिश करते हैं। मंच पर जाने से अच्छे-अच्छे लोग घबराते हैं। इंटरव्यू में भी घबराहट के कारण बुद्धिमान व्यक्ति भी जबाव नहीं दे पाते।

ये सभी संकेत बताते हैं कि हकलाहट किसी व्यक्ति के जीवन के लिए लम्बे तक बाधक साबित नहीं हो सकती। बस थोड़ा धैर्य और लगातार प्रयास करते रहने की आवश्यकता होती है। आपने देखा होगा कि किसी प्रतियोगी परीक्षा में भाग लेने के लिए लोग कई साल तक तैयारी करते हैं, कोचिंग करते हैं, दिन में कई घंटे पढ़ाई करते हैं, तब कहीं जाकर वे अपने सपने की नौकरी पाते हैं।

अगर हम हकलाने के मामले में भी ऐसा ही प्रयोग करें तो परिणाम बेहद सुखद होंगे। अक्सर लोग किसी जादुई क्योर यानी इलाज की तलाश में इसलिए भटकते रहते हैं, क्योंकि उन्हें खुद कोई मेहनत नहीं करनी पड़े। कोई स्पीच थैरेपिस्ट या कोई दवा मेरी हकलाहट को ठीक कर दे। यदि खुद हकलाने वाला अपनी हकलाहट के प्रति जागरूक और ईमानदार हो जाए तो जीवन बहुत ही आनन्दमय आसानी से बनाया जा सकता है।

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Post Author: Amitsingh Kushwaha

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