बैंगलोर में टीसा के स्वयं सहायता समूह के शुरूआती दिनों से ही नवीन हमारे साथ जुड़े रहे हैं। मुझे अच्छी तरह याद है जब पहली बैठक में नवीन को धाराप्रवाह बोलते हुए देखकर सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ था। नवीन ने अपने अनुभव साझा करते हुए हमें बताया की जब वे सातवीं कक्षा में थे, तब पहली बार जीवन में हकलाहट का अहसास हुआ। लेकिन आज वे एक अच्छे वक्ता हैं। नवीन ने हकलाहट पर आगे बातीचत करते हुए बताया की अक्सर जब बोलने का मौका मिले तब किनारा कर लेना, बोलने से बार-बार बचने की कोशिश करना और अपनी हकलाहट को छिपाने के लिए लगातार संघर्ष करते रहना, यही सब कुछ चलता रहा उनके जीवन में… वे जिस कम्पनी में जाॅब करते हैं, वहां सभी को उनकी हकलाहट के बारे में मालूम है।
हाल ही में, नवीन ने हमारे समूह को एक ई-मेल भेजा। उन्होंने लिखा की इस समय अपने जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव का सामना कर रहे हैं। हर रोज अपने घर से 100 किलोमीटर दूर बैंगलोर आना-जाना पड़ता है, नौकरी करने के लिए। साथ ही हकलाहट ने उनकी तकलीफ को और अधिक बढ़ा दिया है। नवीन ने ई-मेल में आगे लिखा- मैंने अपनी कम्पनी में प्रमोशन पर एक प्रबन्धकीय मैनेजेरियल पोस्ट के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। कम्पनी के सीईओ, नवीन से कई मुद्दों पर खुलकर चर्चा करने की कोशिश करते हैं, लेकिन खुद नवीन हर बार सिर्फ अपनी व्यथा, अपनी परेशानी बताकर बचने का प्रयास लगातार काफी समय से करते आ रहे हैं। यहां तक की अपने बाॅस से फोन पर भी बात करने से कतराते हैं। नवीन को ऐसा लगता है कि बाॅस हकलाहट के बारे में कोई बातचीत नहीं करना चाहते। नवीन ने हम लोगों से राय मांगी की इन हालातों से बाहर निकलने के लिए क्या करना चाहिए?
डा. सत्येन्द्र श्रीवास्तव सहित अधिकतर साथियों ने सलाह दी की नवीन को अपनी समस्या के बारे में सीईओ से खुलकर बात करनी चाहिए, और हकलाहट को छिपाने की बजाय खुलकर स्वीकार करना शुरू करें। इस बीच, नवीन यह तय नहीं कर पा रहे थे कि वे क्या करें, क्या न करें और कैसे करें? आखिर में नवीन ने निर्णय लिया की चर्चा करना ही उचित होगा। नवीन ने तुरंत एक ई-मेल कम्पनी के सीईओ किया और बताया की वे हकलाते हैं और इस सम्बंध में बातचीत करना चाहते हैं, ताकि वे कम्पनी में दी गई जिम्मेदारियों को अच्छी तरह निभा सकें। मेल के उत्तर में सीईओ ने कहा- वे नवीन की हकलाहट के विषय में जानते हैं और खुद इस बारे में बातचीत करने के लिए इंतजार कर रहे हैं। सीईओ ने वादा किया की वे हर तरह से नवीन की सहायता करेंगे। साथ ही सीईओ ने सुझाव दिया की नवीन को अपने प्रस्तुतिकरण कौशल (किसी प्रशिक्षण/ट्रेनिंग प्रोग्राम में अच्छी तरह विषय को प्रस्तुत करने की कला) पर काम करना चाहिए, और खुद को एक अच्छा प्रस्तुतकर्ता साबित करना चाहिए, जिससे कम्पनी को नई उंचाईयों पर पहुंचाया जा सके।
इसी तरह नवीन ने अपनी कम्पनी की एक महिला डायरेक्टर को भी ई-मेल कर अपनी समस्या से अवगत कराया। महिला डायरेक्टर ने कहा- वे उसकी हकलाहट से परिचित हैं, इसीलिए कम्पनी से सम्बंधित मामलों पर सिर्फ ई-मेल से चर्चा करने का प्रयास करती हैं। हर बार नवीन बातचीत करने समय फटाफट अपनी बात खत्म करने की कोशिश करता था, इसलिए कम्पनी की डायरेक्टर अब तक सिर्फ ई-मेल से ही जरूरी चर्चाएं किया करती थीं। डायरेक्टर ने नवीन को योग और ध्यान पर मन लगाने के लिए प्रोत्साहित किया। हर संभव मदद का आश्वासन दिया।
यह घटना इस बात की ओर संकेत करती है की हकलाहट को न छिपाने के ढेरों लाभ हैं। हम अपनी हकलाहट को छिपाने की कोशिश में प्रतिदिन ढेर सारे तनाव झेलते रहते हैं, अन्दर ही अन्दर घुटते रहते है, परेशान होते रहते हैं। तमाम कोशिशों के बाद भी हम हकलाहट को हर बार नहीं छिपा पाते। सच तो यह है कि हम खुद नहीं जानते की हम कब, कहां और किस शब्द पर अटक जाएंगे। कई बार सुनने वाले हमारी हकलाहट पर ध्यान नहीं देते, फिर भी हकलाने वाला व्यक्ति हालातों का सामना करने की बजाय भाग जाने और एक सुरक्षित माहौल की खोज में रहता है, ताकि बोलने से बचा जा सके, हकलाहट को छिपाया जा सके। कभी-कभी लोग हमारी सहायता के लिए भी सामने आते हैं। इसलिए हकलाहट को कदापि न छिपाएं, खुलकर हकलाहट को स्वीकार करें। इस तरह आप पाएंगे की आपके अन्दर का तनाव, डर और झिझक धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है और आप एक सफल संचारकर्ता बनने की ओर अग्रसर हो रहे हैं।
– सुधीरन ए, बैंगलोर
मूल इंग्लिश पाठ http://t-tisa.blogspot.in/2011/07/speaking-about-stammering.html
1 thought on “हकलाहट को छिपाएं नहीं, खुलकर बात करने से मिलेगा समाधान…”
Sachin
(December 24, 2016 - 6:50 pm)बहुत अच्छा अनुवाद किया है अमित आपने..
धन्यवाद्