हम सबके मन की भाषा है हिन्दी

आज हिन्दी दिवस है। हिन्दी लेखन से जुड़ा होने के बाद भी कई वर्षों से हिन्दी दिवस पर कुछ लिख नहीं पाया। पता नहीं आज कैसे फिर लिखने का मन हो आया।

भारत में लम्बे समय से हिन्दी के अस्तित्व और भविष्य पर चिंता जाहिर की जाती रही है। समय-समय पर आयोजित होने वाले सम्मेलनों और गोष्ठियों में बु़िद्धजीवियों द्वारा हिन्दी की दुर्दशा पर चिंतन किया गया। केन्द्र और राज्य सरकारों ने भी हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास किए।

देश में 15 अगस्त 1995 को इंटरनेट सेवा की शुरूआत के बाद एक बार फिर हिन्दी पर संकट महसूस किया गया। आशंकाए जाहिर की गईं कि इंटरनेट पर उपलब्ध सोशल मीडिया, अंग्रेजी अखबार, टीवी चैनल और युवाओं द्वारा पश्चिमी सभ्यता का अनुकरण करना हिन्दी को नष्ट कर देगा। शिक्षा में अंग्रेजी भाषा की घुसपैठ के आरोप भी लगाए गए और कहा गया कि अंग्रेजी के कारण भारत की प्रतिभा कुंठित हो रही है।

यहां एक अहम् सवाल यह है कि क्या सच में हिन्दी भाषा पर अस्तित्व का संकट है? क्या सरकारों द्वारा करोड़ों रूपए खर्च कर साहित्यिक आयोजन करने, लेखकों-कवियों को सम्मानित करने, पुस्तकालय स्थापित करने, किताबों का प्रकाशन करने से हिन्दी भाषा को सुरक्षित किया जा सकेगा? या सिर्फ यह सब प्रयास भाषा के नाम पर तमाशा ही साबित होंगे?

मेरा मानना है कि हमें भाषा की जरूरत संचार के लिए ही है। इसलिए वह भाषा चाहिए जो गांव का अनपढ़ और शहर का कम पढ़ा-लिखा व्यक्ति भी समझ पाए। मेरे कई मित्र भारत के अहिन्दीभाषी राज्यों से भी हैं। उनसे मिलकर महसूस हुआ ये लोग भी हिन्दी समझते, पढ़ते, लिखते और बोलते हैं। हिन्दी की धमक हर जगह विद्यमान है। इसे चाहे व्यवसाय की विवशता कहें या समाज की जरूरत आज इंटरनेट पर हिन्दी छाई हुई है। कम्प्यूटर और स्मार्ट फोन पर भी हिन्दी पढ़ने और लिखने की बेहतर सुविधाएं आसानी से उपलब्ध हैं।

एक आम भारतीय हो सकता है कि जीवन की आपाधापी में हिन्दी साहित्य से थोड़ा दूर हो रहा हो, लेकिन उसके मन की, उसके सोचने की भाषा तो हिन्दी ही है। उसकी भावनाओं, सुख और दुःख की भाषा तो हिन्दी ही है।

भाषा की प्रकृति है निरंतर प्रवाहमान और परिवर्तनकारी होना। आज हिन्दी का महत्व वैश्विक स्तर पर महसूस किया जा रहा है। ये तमाम संकेत बताते हैं कि हिन्दी पर कभी कोई संकट हो ही नहीं सकता। आप सबकुछ मिटा देंगे, लेकिन एक भारतीय के मन से हिन्दी कैसे निकाल पाएंगे? हां, एक जरूरत है कि हम नई पीढ़ी के मन में हिन्दी भाषा के महत्व को कम न होने दें। शिक्षा, ज्ञान और विज्ञान अर्जित करने के लिए हिन्दी ही नहीं, कई भाषाएं सीखना पड़े तो इसमें कोई एतराज नहीं होना चाहिए।

अब समय है हिन्दी पर गर्व महसूस करने और हिन्दी के बल पर विकास के पथ पर अग्रसर होने का। आप सबको हिन्दी दिवस पर शुभकानाएं।

– अमित सिंह कुशवाह
सतना, मध्यप्रदेश।
9300939758

Post Author: Amitsingh Kushwaha

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