Learning from Metro Train Gate
हेल्लो दोस्तों , आज रविवार की एस.एच.जी. मीटिंग के बाद मै मेट्रो से आने के लिए मेट्रो स्टेशन पर गया। जब मै प्लेटफार्म पर पहुंच गया तो देखा कि सामने मेट्रो जाने के लिए रेडी है। जैसे ही मै गेट की पास गया तो मेरे मन में सवाल आया कि अंदर जाऊ या नहीं। इससे पहले कि कोई जवाब मिलता , मेट्रो का दरवाजा बंद हो चूका था और मेट्रो चल पड़ी। और मैं पछताता रह गया।
इसी तरह ही हमारे जीवन में भी होता है – हम सोचते रह जाते है कि आगे बढे या नहीं और अवसर हमारे हाथ से निकल जाता है। मेट्रो दूसरी आ जाएगी और अवसर भी आ जाएगा पर जो चला गया जो समय बीत गया वो वापिस नही आने वाला। अगर चले गए अवसर का सदुपयोग करते तो शायद आज मै थोड़ा जल्दी अपने मंजिल हॉस्टल तक पहुँच जाता।
जब हमारे मन में जरा सी शंका भी रह जाती है तब भी हम कुछ न कुछ अवसर खो देते है। यही बात हमारे हकलाने पर लागू होती है। बचपन से लेकर अब तक हमने एक एक करके बोलने के अनेको अवसर खोए है जान बूझकर या अनजाने में। उसी बात का परिणाम हमारे अंदर का डर और उस से उत्पन्न हुई हकलाहट है।
अब क्या करे जो बीत गया वो तो बीता हुआ कल बन चूका है पर हम आज क्या करे कि आने वाला कल सुखी हो – बोलने के हर अवसर का सदुपयोग करना और आज की हर बातचीत को अभ्यास के रूप में लेना जिससे कि हम सभी आने वाले कल के लिए अच्छे संचारकर्ता बन सके।
Ramandeep Singh
8285115785
2 thoughts on “My journey – 4”
Sachin
(January 9, 2017 - 9:47 am)Nice – that you were able to put in the picture. Let me know what helped you..
Amitsingh Kushwaha
(January 9, 2017 - 12:26 pm)बहुत सही कहा है रमण जी आपने. बीत हुआ समय वापस नहीं आता. बेहतर तो यही है की हम आज से ही अच्छे कार्यों में जुट जाएं…