एक लम्बे समय के बाद मैं यहां पर कुछ लिख रही हूं, लेकिन इस बार एक मजबूत विषय के साथ…
हाल ही में तीसा के पहले महिला स्वयं समूह की बैठक बैंगलोर में आयोजित हुई। इसमें तीन सदस्य शामिल थे- अनीता, अरूणा और मैं। एक अन्य महिला साथी आकृष्णा अपरिहार्य कारणों से बैठक में शामिल नहीं हो सकीं। आशा है वे अगली बैठक में जरूर आएंगी।
सभी सदस्य दोपहर 12 बजे बैठक के लिए इकट्ठा हुए। यह पहली बैठक थी और कोई एजेन्डा पहले से तय नहीं था। इसलिए हमने इन विषयों पर चर्चा की।
1. ध्यान- शुरूआत मैंने की। सबको बताया कि मुझे ध्यान में बहुत रूचि है। जब शांति से अपनी आंखें बंद करके ध्यान के लिए बैठती हूं तो कई विचार मन में आने लगते हैं। और अंत में महसूस होता है कि ध्यान मेरे लिए चाय के प्याले की तरह आसान नहीं है। अरूणा और अनीता दोनों ने ध्यान के अपने अनुभवों को साझा किया। निश्चित ही हर व्यक्ति का ध्यान करने का तरीका और उससे जुड़े अनुभव एक समान नहीं होते। ध्यान के बारे में हमारा क्या विश्वास है? यह सभी के लिए लाभदायक क्यों है? हम ध्यान के दौरान खुद को एकाग्रचित्त क्यों नहीं कर पाते? इन सब मुद्दों पर चर्चा के बाद मैं कह सकती हूं कि कई विचार आने के बाद भी ध्यान आसानी से कर सकती हूं।
2. अंतरराष्ट्रीय आर्युवेद सम्मेलन- डा. अरूणा ने हाल ही में अंतरराष्ट्रीय आर्युवेद सम्मेलन में भागीदारी की। उन्होंने अपने अनुभव हमारे साथ बांटे। सम्मेलन में अपना प्रस्तुतिकरण कैसे शुरू किया, जब वे कुछ शब्दों पर अटक गईं तो कैसे बहादुरी के साथ विषय को आगे बढ़ाया, और अंत में सभी ने तालियों की गड़गड़ाहट के साथ उनकी प्रस्तुति की तारीफ की। गौरव की बात तो यह है कि अरूणा को अंतरराष्ट्रीय आर्युवेद सम्मेलन में बोलने का मौका मिला। यह कोई छोटी बात नहीं है। पूरी दुनिया से केवल कुछ विषय ही सम्मेलन के लिए चयनित होते हैं। और यह मौका मिलने के बाद अपने शोध को दुनियाभर से आए हुए प्रतिनिधियों के सामने प्रस्तुत करना बहुत बहादुरी का कार्य है। सच में हम सबको अरूणा पर गर्व है।
3. बाल मंदिर- अनीता ने हाल ही में बाल मंदिर नामक संस्था का भ्रमण किया था, उन्होंने इस बारे में अपने विचार प्रस्तुत किए। यह एक ऐसी संस्था है जो रास्ते पर फेंके गए और परिवार से अलग कर दिए गए असहाय बच्चों की बेहतरी के लिए काम करती है। कैसे ये बच्चे शिक्षा से वंचित हो गए हैं और कैसे इन्हें अपने अधिकरों के बारे में मालूम नहीं… यह जानकार और भी आश्चर्य हुआ कि यह सरकारी संस्था भी बच्चों की शिक्षा के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं कर पा रही है। संस्था बच्चों की शिक्षा के लिए स्वयंसेवकों को प्रोत्साहित करती है। यह वास्तव में दिल को छूने वाला विषय था। इस पर सभी सदस्यों ने अपने विचार रखे। तय किया कि पहले अनीता के माध्यम से सारी जानकारी प्राप्त करेंगे, फिर उस जगह जाकर कुछ करेंगे। यदि हम सिर्फ अपने और अपनी हकलाहट के बारे में सोचते रहे तो कुछ भी बदल नहीं पाएंगे। हमें अपने कम्फोर्ट जोन (आरामदायक और सुरक्षित स्थिति) से बाहर आना ही होगा।
4. अपने शौक और अगले एक साल की योजना- सभी सदस्यों ने अपने शौक और अगले एक साल में क्या करने वाले हैं, इस पर बातचीत की। अपने सपनों को पूरा करने के लिए क्या करना चाहिए, इस पर ध्यान लगाने पर सभी राजी हुए। सिर्फ सपने होना ही काफी नहीं है, उन्हें पूरा करने के लिए लगातार प्रयास भी करने होंगे।
समूह की बैठक दोपहर 2.30 बजे समाप्त हुई। यह पहली और सफल बैठक थी। उम्मीद है और ज्यादा हकलाने वाली महिलाएं/युवतियां खुलकर इस समूह से जुड़ने के लिए आगे आएंगी। और अंत में, तीसा का धन्यवाद, जिसकी प्रेरणा से हम हकलाने वाली महिलाएं मिल पाईं और अपनी बाधाओं को तोड़ने का प्रयास किया।