श्री राजेन्द्र प्रसाद शर्मा तीसा से लम्बे समय से जुड़े हुए हैं। वे पेशे से शिक्षक हैं और मध्यप्रदेश के मुरैना जिला में एक शासकीय स्कूल में वरिष्ठ अध्यापक के पद पर अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। उन्होंने अपने जीवन में हकलाहट को एक चुनौती के रूप में स्वीकार करते हुए एक बेहतर संचारकर्ता के रूप में अपनी पहचान स्थापित की है। प्रस्तुत है उनसे लिए एक संक्षिप्त साक्षात्कार के सम्पादित अंश-
प्रश्न: स्वीकार्यता की अवधारणा के विषय में आपको सबसे पहले कैसे मालूम हुआ?
उत्तर: मुझे स्वीकार्यता के विषय में सबसे पहले एक स्पीच थैरेपिस्ट से मालूम हुआ, लेकिन स्वीकार्यता पर सबसे प्रमाणिक, तर्कसम्मत और व्यवहारिक जानकारी तीसा से ही मिली।
प्रश्न: शुरूआती दिनों में हकलाहट को स्वीकार करने में आपने किन चुनौतियों का सामना किया?
उत्तर: मैंने हकलाहट को स्वीकार करने के बाद किसी चुनौती का सामना नहीं किया। चुनौती सिर्फ मानसिक होती है। मैं मानसिक रूप से मजबूत हो चुका हूं।
प्रश्न: वर्षों से आप जिस हकलाहट को छिपाते हुए आ रहे थे, अचानक उसे स्वीकार करना आपने कैसे प्रारंभ किया?
उत्तर: मेरे लिए हकलाने को स्वीकार बहुत आसान था। मैं पिछले 16 वर्षों से धाराप्रवाह बोलने की चाह में किसी ऐसे मार्ग की खोज में था जिससे मेरे बोलने का संघर्ष खत्म हो। यह रास्ता मुझे स्वीकार्यता से मिला। मैं अपनी स्कूल में खुलकर हकलाहट पर बच्चों से बात करता हूं और बाहर भी।
प्रश्न: स्वीकार्यता के बारे में आपके परिवार, रिश्तेदार, मित्रों, सहकर्मियों और समाज की प्रतिक्रिया कैसी थी?
उत्तर: जब से मैंने अपनी हकलाहट को स्वीकार है तब से अपने परिवार, रिश्तेदार, मित्र और बाहर वालों को एकदम सहज ही पाया है। लगभग 1 या 2 प्रतिशत लोग ही मेरी हकलाहट पर असहज हुए हैं।
प्रश्न: क्या स्वीकार्यता को जीवन के अन्य क्षेत्रों में लागू किया जा सकता है?
उत्तर: जी हां, स्वीकार्यता केवल हकलाने से ही सम्बंधित नहीं है, इसे जीवन के हर क्षेत्र में लागू किया जा सकता है। यह एक आनन्द का खाजाना है, सुखी जीवन का रहस्य है। स्वीकार्यता सम्पूर्ण जीवन की एक मनोवैज्ञानिक पद्धति है।
प्रश्न: जीवन में स्वीकार्यता के क्या लाभ हैं?
उत्तर: जीवन में स्वीकार्यता के लाभ ही लाभ हैं, हानि कुछ भी नहीं।
प्रश्न: एक वाक्य में स्वीकार्यता का अर्थ आपके लिए क्या है?
उत्तर: एक वाक्य में स्वीकार्यता से आशय – ‘‘जो जैसा है, उसे उसी रूप में स्वीकार करना’’।
1 thought on “सम्पूर्ण जीवन की मनोवैज्ञानिक पद्धति है स्वीकार्यता”
satyendra
(March 2, 2017 - 1:57 pm)badhai ho, rajendra ji!