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विशेषज्ञों ने हकलाहट की तुलना आइसबर्ग से की है। आइसबर्ग यानी पानी पर बहती हुई बर्फ की शिला या चट्टान। जब हम किसी व्यक्ति या वस्तु को उपरी तौर पर देखते हैं तो सिर्फ उसका एक छोटा भाग ही दिखाई देता है, हम केवल उसे ही समझ पाते हैं। यहां एक इंसान के अन्दर चल रही बहुत बड़ी भावनात्मक उथल-पुथल बाहर दिखाई नहीं देती। उसे कोई समझ ही नहीं पाता।
मेरा अनुभव रहा है कि पारम्परिक इलाज और स्पीच थैरेपी में हकलाहट के केवल बाहरी लक्षण या प्रभाव को दूर करने के लिए काम किया जाता है। तकनीक सिखाई जाती हैं- प्रोगाॅगसिएशन, धीमी गति में बोलना, गहरी सांस लेना आदि। यहां हकलाहट से जुड़ा हुआ महत्वपूर्ण आंतरिक भाग अनछुआ रह जाता है। इस पर कोई चर्चा नहीं की जाती, कोई काम नहीं किया जाता। शायद इसी कारण ये सभी उपाय लम्बे समय तक कोई राहत दे पाने में सफल नहीं हो पाते। हकलाने वाले व्यक्ति को तमाम कोशिशों के बाद भी निराशा ही मिलती है। चाहकर भी वह धाराप्रवाह बोलना सीख नहीं पाता।
आमतौर पर देखने में आया है कि हकलाने वाले व्यक्ति सामान्य जीवन व्यतीत कर रहे हैं। कई लोग जब बात करते हैं तो हकलाहट का कोई लक्षण दिखाई नहीं देता या फिर वे बहुत कम हकलाते हैं। ऐसा क्यों होता है? जबाव है वे हकलाहट का प्रबंधन कर रहे हैं। उन्होंने हकलाहट का सामना करना और बिना किसी खास परेशानी के हकलाहट का दैनिक जीवन में प्रबंधन सफलतापूर्वक कर रहे हैं। ये लोग जान गए है कि हकलाहट के साथ कैसे रहा जाए? वे अपनी हकलाहट को स्वीकार कर चुके हैं। वे कठिन हालातों से भागने की बजाय उसका सामना कर रहे हैं।
यदि आप यह स्वीकार कर लें कि हकलाते हैं तो अपने मन से हकलाहट की शर्म और डर से आजाद हो सकते हैं। हकलाहट को छिपाने या लड़ने की कोशिश करने पर तनाव बढ़ जाएगा। इससे समस्याएं अधिक जटिल होती जाएंगी। एक आसान रास्ता है हकलाहट के साथ सहज, सरल होना और खुलकर हकलाना। हम खुद आगे होकर लोगों को बता सकते हैं- हां, मैं हकलाता हूं। जब आप ऐसा करेंगे तो हकलाहट छिपी नहीं रह जाती और तनाव अपने आप दूर जाता है।
खुद को हकलाने वाले व्यक्ति के तौर पर स्वीकार करना एक ऐसी विचारधारा है, जिसके बारे में लोगों के मन में कुछ गलतफहमियां हैं। यदि अपनी हकलाहट के बारे में लोगों को पहले ही बता दें तो तनावमुक्त हो सकते हैं। मैं अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद नौकरी की तलाश कर रहा था। हर इंटरव्यू में खुलकर बताता कि मैं हकलाता हूं। लेकिन कोई राहत नहीं मिली। मैं और अधिक हकलाने की कोशिश करता रहा। दुर्भाग्य से फिर भी किसी इंटरव्यू में सफलता नहीं मिली। फिर भी कोशिश जारी रखा। यदि आप इस सच को स्वीकार कर लें कि आप हकलाते हैं, इसके लिए माफी मांग लें, खेद व्यक्त करें, तो इससे कई नए विचारों और मुद्दों का जन्म होता है। हो सकता है कि सामने वाले व्यक्ति को ऐसा महसूस हो कि आप सहानुभूति पाना चाहते हैं, या सुनने वाले को लगे कि आप ऐसा करके कोई मदद मांगना चाह रहे हैं? कुछ भी हो सकता है।
हकलाहट का सामना बिना संघर्ष के करना ही स्वीकार्यता है। आपको इसे अपनी जिन्दगी के एक अभिन्न अंग के रूप में स्वीकार कर आगे बढ़ना चाहिए। हकलाहट के साथ सरलता और मित्रतापूर्ण तरीके से रहना ही उचित है। आपको आसानी से, तनावमुक्त होकर, खुलकर हकलाना चाहिए। हकलाहट के जादुई इलाज की कल्पना न करें।
अधिकतर समय हकलाने वाले व्यक्ति इसी चिन्ता में रहता है कि पता नहीं, मेरे हकलाने पर लोगों की प्रतिक्रिया क्या होगी? अथवा जब वह हकलाएगा तो लोग क्या कहेंगे? हकलाने वाला व्यक्ति दूसरों के बारे में बार-बार सोचकर खुद परेशान होता रहता है। सच तो यह है कि दूसरे लोग इस बात में अधिक रूचि लेते हैं कि आप क्या बोल रहे हैं, न कि हम कैसे बोल रहे हैं। लोग सहायता की भावना रखते हुए हमारी बातों को सुनने की कोशिश करते हैं। हालांकि बच्चों के मामले में ऐसा नहीं हो पाता। कुछ नाममात्र के लोग ही हकलाहट पर हंसते हैं। उन्हें हंसने दें। आप भी उनके साथ हंसें या उनके उपहास का खुद मजाक उड़ाएं। जो लोग आपकी हकलाहट के प्रति गंभीरता और सहजता प्रदर्शित करते हैं, तो उनसे बात करें, चाहे आप हकला रहे हों तब भी। हकलाहट को छिपाएं मत।
एचसीएल कम्पनी में काम करते के दौरान ब्लाॅग पर ‘Ssstammering and my life’ लिखने का मौका मिला। इस समय मैंने हकलाहट को स्वीकार करना शुरू किया था। 2010 में एचसीएल कम्पनी को छोड़कर जेएसडब्ल्यू ग्रुप के आईटी विभाग में कार्य करने लगा। इसे जेसाफ्ट सलूशन के नाम से जाना जाता है। यहां मुझे एक महत्वपूर्ण और जिम्मेदार पद मिला। इस कम्पनी में हमेशा सीईओ से बातचीत करना जरूरी था। कम्पनी के वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक आयोजित करना, बाहरी व्यापारियों से सौदा करना मेरे काम में शामिल था। अपनी पहली नौकरी में अधिकारियों के साथ बैठक करने में मुझे हकलाहट के कारण बहुत परेशानियों से जूझना पड़ा और मुझे बहुत बुरा महसूस होता था। इस नौकरी में समय-समय पर बैठक आयोजित होती रहती थी। स्वीकार्यता की अवधारणा से मुझे काफी राहत मिली और इसकी बदौलत मैं खुलकर हकलाने लगा। हकलाहट का बिना ख्याल किए आगे बढ़ता रहा।
एक साल बाद मैं इंफोसिस कम्पनी में शामिल हुआ। यहां भी वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बातचीत और बैठक नौकरी में शामिल थे। मैं कुछ मौकों पर हकलाने की वजह से असफल रहा, लेकिन प्रयास निरन्तर जारी रखा। धीरे-धीरे अहसास हुआ कि अब हकलाने पर मुझे बुरा नहीं लगता। कई शहरों में लोगों से फोन पर बातचीत करनी होती थी। इसलिए फोन पर कुशलतापूर्वक बातचीत करने के लिए थोड़ा सुधार की जरूरत महसूस हुई। मैं अब तक फोन पर सहजता से बात नहीं कर पाता था। कोशिश करते रहने से आत्मविश्वास बढ़ा। स्वीकार्यता और नए जोश ने मुझे फोन पर भी कुशल वक्ता बना दिया।
जानकारों का कहना है कि चुनौतियों को स्वीकार करके हम हकलाहट का सामना सरलता से कर सकते हैं। मेरा अनुभव भी कुछ ऐसा ही रहा। हमें अपनी सीमाओं को स्वीकार करते हुए, लगातार आगे बढ़ने का प्रयास जारी रखना चाहिए। इससे हम जिन्दगी की तमाम मुश्किलों और हकलाहट को आसानी से जीत सकते हैं या इनसे बाहर आ सकते हैं।
क्या इसका मतलब यह है कि हम हकलाहट के इलाज की कोई कोशिश ही न करें? यह विचार आंशिक रूप से सही है। लेकिन ऐसा नहीं कि हम हकलाहट को नजरअंदाज कर दें, उस पर ध्यान ही न दें। आमतौर पर लोग इस आशा में हकलाहट के इलाज की कोशिश करते हैं, जिससे क्योर मिल सके, धाराप्रवाह बोलना आ जाए। जैसा कि पहले भी कहा गया है कि हकलाहट के क्योर की कोई गारंटी नहीं है। हकलाने वाले व्यक्ति कई प्रयासों के बाद भी जब क्योर नहीं खोज पाते तो निराश हो जाते हैं। इससे जीवन में समस्याएं बढ़ने लगती हैं। यदि आप स्पीच थैरेपी का अनुभव लेना चाहते हैं तो किसी ऐसे थैरेपिस्ट के पास जाएं जो फ्लूएंसी डिसआर्डर के विशेषज्ञ हों और जिनकी फीस कम हो। थैरेपी सेन्टर या क्लीनिक इस आशा से जाएं कि आप कुछ तकनीक सीखना चाहते हैं, न कि हकलाहट का क्योर करना चाहते हैं। ये तकनीक हकलाहट का सामना करने में व्यावहारिक रूप से कारगर होती हैं। थैरेपिस्ट के पास इसलिए भी जाएं कि आप हकलाहट के बाहरी प्रभाव पर काम करने के इच्छुक हैं। हकलाहट से जुड़े हुए आंतरिक प्रभाव को स्वीकार्यता और तमाम चुनौतियों का सामना करते हुए सुधारने का प्रयास करें।
हकलाहट का प्रबंधन करने के लिए लोग सहायता उपायों के बारे में जानना चाहते हैं। किसी स्वयं सहायता समूह से जुड़ना एक अच्छा विकल्प है। ये समूह कई शहरों पर कार्यरत हैं। ये हमें दूसरे हकलाने वाले व्यक्तियों से बातचीत करने और उनसे सीखने का सुनहरा अवसर उपलब्ध करवाते हैं। आप जो चीजें स्पीच थैरेपिस्ट के पास जाकर सीखते हैं, वह सबकुछ यहां सीख सकते हैं, एकदम मुफ्त में। यदि आप भारत में रहते हैं तो तीसा से जुड़कर हकलाहट पर काम शुरू कर सकते हैं। हकलाने वाले व्यक्तियों के समूह दूसरे देशों में भी सक्रिय हैं। तीसा द्वारा समय-समय पर स्काॅइप काॅल और गूगल हैंगआउट के माध्यम से इंटरनेट पर आॅनलाइन बैठक का आयोजन किया जाता है। यदि आप किसी स्वयं सहायता समूह से नहीं जुड़ पा रहे हों, तो यह एक बेहतर मौका है घर बैठे हकलाहट के बारे में जानने, समझने और सीखने का। इससे आपका आत्मविश्वास बढ़ेगा, हकलाहट को स्वीकार करना सीखेंगे और संचार कौशल में इजाफा होगा।
हमारे जीवन में हकलाहट के अलावा और भी बहुत कुछ है। इसलिए जीवन का आनन्द उठाना शुरू करें। अक्सर हम लोग अपने जीवन के बीते हुए समय के बारे में सोचते रहते हैं, जब हम बहुत कुछ करने की आशा रखते थे। हमेशा सोचते थे पहले मेरी हकलाहट ठीक हो जाए फिर मैं दूसरे काम करूंगा। लेकिन अब हकलाहट के क्योर होने का इंतजार न करें। जीवन में आगे बढ़ना शुरू करें और वे सभी काम करें जो आप करना चाह रहे थे। हमें अपने जीवन से जुड़ना होगा, जीवन से प्यार करना होगा, जीवन का खुलकर आनन्द उठाना चाहिए। इसके बाद अहसास होगा कि हकलाहट के बावजूद भी बहुत सारी चीजें हम कर पा रहे हैं। हकलाहट हर जगह महत्वपूर्ण नहीं है। हकलाहट के कारण मन में तनाव न पालें। इससे दूर रहें। हकलाहट से जुड़े हुए बुरे अनुभवों को महत्व न दें।
यदि आप अपनी हकलाहट के साथ सहज हो गए, यदि आप हकलाहट पर हंसने वाले व्यक्ति के सामने मुस्कुराना सीख गए, यदि आप हकलाहट पर बातचीत करने में खुद को सहज बना पाए, यदि आप हकलाहट को खुलकर स्वीकार कर पाए, यदि आप जिन बातों से भागते हुए आ रहे थे उनका सामना करने लगे… तो आप सफलतापूर्वक अपनी हकलाहट का प्रबंधन कर पाएंगे। तो इसका मतलब कि आप अपनी हकलाहट को कुछ समय बाद क्योर कर लेंगे? नहीं, आप फिर भी हकलाएंगे, लेकिन बिना किसी तकलीफ। फिर देखिए आप दुनिया का सामना हिम्मत के साथ करेंगे और सफल होंगे।
- सुधीन्द्रन
- मूल इंग्लिश पाठ
6 thoughts on “हकलाहट का सामना कैसे करें?”
Neelam
(October 22, 2019 - 12:38 am)sir what are the cause of stammering
Rajesh
(January 21, 2020 - 6:47 pm)Thank you so much sir and what happens to me when I’m in a meeting and my turn will comes for speech by that time my heart beat will start very fast and I’m not able to give proper speech I read out your blog but how I will accept that I’m stammering please reply sir 🙏 big thanks
Ashutosh pandey
(March 4, 2020 - 5:46 pm)But sir kaise accept Kare ……apane aap me bahut shy feel hota hai….himmat hi nhi padati hai…sir
Dr jith tho
(June 1, 2021 - 11:44 pm)Great article thanks for tips
संजय
(June 24, 2021 - 7:55 pm)बहुत सुखद अनुभव सर।वास्तव में यही जीवन का सत्य है जो जैसा है उसे बदलने की कोशिश करे बल्कि छिपाय न।
Jharendra Sinha
(October 9, 2022 - 8:06 am)हकलाहट का सामना कैसे करें