गुलाबी शहर के नाम से मशहूर राजस्थान की राजधानी जयपुर में तीसा की 2 दिवसीय कार्यशाला सम्पन्न हुई। कार्यशाला की शुरूआत में सौम्या और जयपुर स्वयं सहायता समूह के सदस्यों ने प्रतिभागियों का स्वागत किया। सबसे पहले परिचय सत्र हुआ, लेकिन यह परिचय थोड़ा अलग था। सभी प्रतिभागियों को 2-2 की जोड़ी में विभाजित किया गया और प्रतिभागियों ने अपने-अपने जोड़ीदार का परिचय बताया। कार्यशाला के नियम बहुत स्पष्ट थे- मुस्कुराइए, यहां तक कि आप जब हकला रहे हो तब भी, दूसरों को बिन मांगी सलाह न दें, बोलने वाले को प्रोत्साहित करें, ताली बजाएं।
तीसा के एक वरिष्ठ सदस्य ने हमें एक अनिवार्य सत्य याद दिलाया- हकलाहट का कोई इलाज या क्योर नहीं है। हां, हमारी सोच या दृष्टिकोण का इलाज है। सोच में सकारात्मक बदलाव ही असली क्योर है। किसी भी दिन, किसी भी जगह और किसी भी समय वह भी एकदम मुफ्त। हम हकलाहट के बारे में अपनी सोच बदलकर सारे दुःख और तनाव से बाहर आ सकते हैं।
कार्यशाला में बताया गया कि हकलाहट का प्रबंधन करने के लिए लम्बे समय तक अभ्यास की जरूरत होती है। एक हकलाने वाला व्यक्ति कुशल संचारकर्ता कैसे बन सकता है, इन सभी उपायों पर 2 दिन तक चर्चा की गई और कई गतिविधियों के द्वारा बारीकियों को समझने का प्रयास भी। सच में हकलाहट पर काम करना एक नई भाषा सीखने जैसा है। इसलिए खुद के लिए समय निकालें, धाराप्रवाह बोलने की चाह में शीघ्रता न करें।
इसके बाद 3 छोटे समूहों में प्रतिभागियों ने प्रोलाॅगेशन, बाउंसिंग, पाॅजिंग और स्वैच्छिक हकलाहट आदि तकनीक का अभ्यास किया। इससे यह जानकारी मिली कि व्यवहारिक रूप में इन सभी तकनीक को किस तरह अपनाना है। इन तकनीक को विस्तार से समझने के लिए कई गतिविधियां की गई, जैसे- एक लाइन का परिचय देते हुए तकनीक आजमाई, फिर 3-4 कठिन शब्दों को बोलते समय तकनीक इस्तेमाल करना। एक रोचक गतिविधि रही बिना तैयारी के कहानी सुनाना। सभी हकलाने वाले साथियों ने स्पीच की किसी तकनीक का अभ्यास करते हुए कहानी सुनाई।
नजदीक ही एक सुन्दर पार्क था। शाम के समय सभी प्रतिभागी सेन्टल पार्क गए। वहां पर अनजान लोगों से हकलाहट पर साक्षात्कार लेने का अभ्यास किया। उनसे जानना चाहा कि वे हकलाहट के बारे में क्या सोचते हैं? क्या जानते हैं? इस गतिविधि से हमें अनजान लोगों से बातचीत करने का मौका मिला। अन्दर का डर, शर्म और झिझक खत्म हुई। इस दौरान सभी प्रतिभागी खुलकर हकला रहे थे और हकलाहट पर लोगों से बिना झिझक सवाल पूछ रहे थे। पार्क से वापस आने से पहले हम सभी ने साक्षात्कार के बारे में अपने अनुभव साझा किए। अब सभी लोग खुलकर हकला रहे थे और खुद को हकला या हकली कहने में शर्म महसूस नहीं कर रहे थे।
दूसरे दिन की शुरूआत एक रोचक गतिविधि से हुई। सभी ने एक धन्यवाद सूची बनाई। जीवन में जिन-जिन लोगों से हमें सहयोग मिला, कुछ यादगार पल रहे, उनसे जुड़े व्यक्तियों को धन्यवाद देने के लिए यह सूची बनाई गई। 45 मिनट के अभ्यास से सभी साथी यह समझ पाए कि हकलाने के बावजूद भी उनका जीवन कई सुन्दर और यादगार पलों से भरा हुआ है। यह अपने अन्दर की सहजता को वापस लाने का एक प्रयास था। साथ ही सीख मिली की हमें इस सकारात्मकता को अपने दैनिक जीवन में हमेशा बनाए रखना है।
फिर 2-2 व्यक्तियों के समूह ने फोन पर बात करते समय की वीडियोग्राफी की। आश्चर्य तो तब हुआ जब कुछ महत्वाकांक्षी साथियों ने फोन पर ही स्कार्पियों कार बुक कर दी। किसी ने काॅल सेन्टर पर बात की, तो किसी ने अपने परिचित को फोन कर इस कार्यशाला में आने की जानकारी दी। यह गतिविधि यह जानने में मददगार रही कि फोन पर बात करते समय जब हम हकलाते हैं, तो उस क्षण हमारे चेहरे के हाव-भाव केैसे होते है? हमारे शरीर या हाथ-पैर की गतिविधियां क्या असामान्य होती है? यह सब जानने के लिए बोलते समय अपनी वीडियोग्राफी करवाना और बाद में देखकर सुधार करना एक सुन्दर और उपयोगी अभ्यास है।
कार्यशाला के सभी प्रतिभागियों ने एक सुन्दर टी-शर्ट पहनी हुई थी। इस पर लिखा था- हकलाओ, मगर प्यार से… यह टी-शर्ट पहनकर सभी हकलाने वाले दोस्त उत्साहित थे, यह हकलाहट की स्वीकार्यता की ओर एक बड़ा कदम था सभी के लिए।
तीसा के एक वरिष्ठ सदस्य ने हमें वलसल्वा फीनोमिना के बारे में बताया। चिकित्सा विज्ञान में वलसल्वा फीनोमिना का मतलब है किसी व्यक्ति द्वारा शरीर के अपशिष्ट पदार्थ को बाहर निकालने के लिए जोर लगाना, जैसे- कब्ज के दौरान, या कोइ भारी सामान उठाते हुए।
जब हम हकलाते हैं तो हमारी और कई दूसरों लोगों की सोच होती है कि गले यानी स्वर तंत्र में हमारी आवाज फंस जाती है, और हम जोर लगाकर उसे बाहर निकालने की कोशिश करते हैं। कई बार अभिभावक और स्कूल में शिक्षक भी हकलाने वाले बच्चे से कहते है अपने गले या मुंह पर जोर लगाओ आवाज को बाहर निकालने के लिए। नासमझी में हम लोग हकलाहट को एक शारीरिक रूकावट मानकर गलत अभ्यास करते रहते है। इससे हकलाहट पर कोई असर नहीं पड़ता। यह सिर्फ हमारे दिमाग का एक भ्रम है। हमें इससे बाहर आना चाहिए।
इसके बाद मुम्बई से आए हुए ध्रुव गुप्ता ने अपने जीवन के लक्ष्य निर्धारित करने और उस पर कार्य करने के उपायों पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि एक व्यक्ति या समूह किस प्रकार अपने लक्ष्य निर्धारित करे, जिससे सफलता हासिल हो। एक हकलाने वाले व्यक्ति को अपने जीवन के लिए लक्ष्य निर्धारित कर उसका सही प्रबंधन करना चाहिए, जिससे वह एक सफल इंसान बन सके। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे साथियों के लिए माॅक इंटरव्यू का सत्र आयोजित किया गया। इसमें उन्होंने जाना कि हकलाहट के बावजूद भी इंटरव्यू में कैसे सफल हुआ जा सकता है।
अनुप्रिता ने नृत्य की कुछ क्रियाएं हमें सिखाईं। फिर एक लघु हास्य नाटिका का मंचन किया गया। नाटक देखकर यह कहा जा सकता है कि सिर्फ हकलाने वाला व्यक्ति ही इन्हें बेहतर तरीके से समझ और कर सकता है। साथ ही शेरो शायरी और गायन का शौक रखने वाले साथियों ने भी अपनी प्रस्तुति दी।
सौम्या के माता-पिता ने कार्यशाला में आकर हम सभी को आर्शीवाद और शुभकामनाएं दीं।