एक हिन्दी फ़िल्म का गाना है – “कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना…”
सच कहा गया है इस गीत में. हकलाने वाले हम लोग हमेशा इसी चिंता में रहते हैं की अगर लोग जान जाएंगे की हम हकलाते हैं तो क्या सोचेंगे ? क्या कहेंगे ? और अगर हम अपनी कोशिश से हकलाहट को छुपाने में कामयाब हो जाते हैं तो बस, “जान बची तो लाखों पाए” जैसी हालत होती है की आज तो हम बच गए.
वास्तव में हम हकलाहट को इसलिए छुपाते हैं क्योकि हमें दूसरे लोगों का अपमान सहने या हकलाहट का माजक बनाए जाने की हालत से डर लगता है. हम अपमान से डरते हैं.
महात्मा गांधी कहते थे – “जीवन में सफल होना है तो अपमान सहने की छमता और शक्ति आपमें होनी चाहिए.” एक मजे की बात तो यह है की अक्सर हम उन लोगों से डरते हैं और हकलाहट को छिपाते हैं जिन्हें हम ठीक से जानते तक नहीं और जिनका हमारे जीवन में कोई खास महत्त्व भी नहीं हैं. सोचिए आप किसी सब्जी वाले से खुलकर बात करते हैं और हकला जाते हैं तो क्या कोई सजा हो जाएगी आपको ? कोई थप्पड़ मारेगा आपको ? बिलकुल नहीं . . . !
तो फिर आप किसकी चिंता कर रहे हैं और क्यों ? आज तो लोगों को ठीक से खाना खाने, अपने परिवार तक से बात करने का टाइम नहीं है, तो आप क्यों किसी को लेकर इतना टेशन में रहते हैं. जिसे जो सोचना है सोचता रहे. . . बस आप हकलाहट को खुले मन से स्वीकार करें और इसे नियंत्रित करने के लिए सार्थक कोशिश करें . . .
– अमितसिंह कुशवाह
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2 thoughts on “लोगों का काम है कहना . . .!”
Sachin
(April 13, 2012 - 5:48 pm)एक दम सही…
admin
(April 14, 2012 - 4:45 am)Very true Amit
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