इज़ाबेला
एक
राजकुमारी जो थी हकलाती
राजकुमारी जो थी हकलाती
रोमानिया
की एक परी कथा
की एक परी कथा
लेखिका
: बीटा एकरमैन
: बीटा एकरमैन
चित्रकारी
: तेरिज़ा मेरलीनी
: तेरिज़ा मेरलीनी
सज्जा :
द्रज़ीना परिश
द्रज़ीना परिश
अनुवाद
: डॉ सत्येन्द्र श्रीवास्तव
: डॉ सत्येन्द्र श्रीवास्तव
बच्चों
को सस्नेह भेंट,
को सस्नेह भेंट,
दी
इण्डियन स्टैमरिंग एसोसिएशन की ओर से
इण्डियन स्टैमरिंग एसोसिएशन की ओर से
एक थी
राजकुमारी
राजकुमारी
थी वो हकलाती
नाम था
उसका इज़ाबेला
उसका इज़ाबेला
रहती थी
वो दूर देश में
वो दूर देश में
जो था
अद्भुत और अलबेला
अद्भुत और अलबेला
इज़ाबेला, इज़ाबेला, इ-इ-इज़ाबेला ..
बहुत
पहले की बात है – एक राजा और रानी रहते थे इक आलीशान महल में । शादी के बाद उनके
पांच बड़े सुन्दर बच्चे हुए । दो थे राजकुमार और तीन थी राजकुमारियां । सबसे बड़ी
थी राजकुमारी ईवलीना जो हमेशा अपनी मनवाए बिना छोड़ती न थी ! उसके बाद थे दो जुड़वा
राजकुमार – फ़िलिप और जेकब , बेहद शैतान । उनके बाद थी बेहद बातूनी राजकुमारी
लुइज़ा । और सबसे आखिरी में थी शान्त राजकुमारी इज़ाबेला । वो चुप रहती थी, इस लिये नहीं कि उसे बतियाने मे मज़ा नहीं आता था – बल्कि बात सिर्फ़ इतनी
सी थी कि वह जब भी कुछ बोलती तो दूसरे बच्चे हँस पड़ते । दर असल राजकुमारी इज़ाबेला
हकलाती थी । महल में कोई न कोई हमेशा उसे टोकता रहता कि ठीक से बोलो, आराम से बोलो वगैरह वगैरह । और कभी वो अगर अटक जाती तो उसे डाँट भी पड़ती !
!
पहले की बात है – एक राजा और रानी रहते थे इक आलीशान महल में । शादी के बाद उनके
पांच बड़े सुन्दर बच्चे हुए । दो थे राजकुमार और तीन थी राजकुमारियां । सबसे बड़ी
थी राजकुमारी ईवलीना जो हमेशा अपनी मनवाए बिना छोड़ती न थी ! उसके बाद थे दो जुड़वा
राजकुमार – फ़िलिप और जेकब , बेहद शैतान । उनके बाद थी बेहद बातूनी राजकुमारी
लुइज़ा । और सबसे आखिरी में थी शान्त राजकुमारी इज़ाबेला । वो चुप रहती थी, इस लिये नहीं कि उसे बतियाने मे मज़ा नहीं आता था – बल्कि बात सिर्फ़ इतनी
सी थी कि वह जब भी कुछ बोलती तो दूसरे बच्चे हँस पड़ते । दर असल राजकुमारी इज़ाबेला
हकलाती थी । महल में कोई न कोई हमेशा उसे टोकता रहता कि ठीक से बोलो, आराम से बोलो वगैरह वगैरह । और कभी वो अगर अटक जाती तो उसे डाँट भी पड़ती !
!
बस यही
बात थी, कि वो दिन ब दिन खामोश होती चली गई । एक दम गुमसुम ।
बात थी, कि वो दिन ब दिन खामोश होती चली गई । एक दम गुमसुम ।
बसन्त
की एक सुहावनी सुबह, महल के आँगन मे सब राजकुमार और राजकुमारियाँ इकट्ठी
हुईं । सबने सोचा क्या खेलें? बातूनी लुइज़ा फ़ौरन बोली –
की एक सुहावनी सुबह, महल के आँगन मे सब राजकुमार और राजकुमारियाँ इकट्ठी
हुईं । सबने सोचा क्या खेलें? बातूनी लुइज़ा फ़ौरन बोली –
“चलो
गेन्द खेलें । नहीं, नहीं – गोलियाँ खेलते हैं? अरे
हाँ, रस्सी कूदने में बहुत मज़ा आएगा । मै शुरु करूंगी
..”
गेन्द खेलें । नहीं, नहीं – गोलियाँ खेलते हैं? अरे
हाँ, रस्सी कूदने में बहुत मज़ा आएगा । मै शुरु करूंगी
..”
और
लुइज़ा ने रस्सी कूदनी शुरु भी कर दी !
लुइज़ा ने रस्सी कूदनी शुरु भी कर दी !
फ़िलिप
बोला – ” चलो छुपम छुपाई खेलते हैं..” और लपक कर वह एक मेज़ के नीचे जा
छिपा । अब और जोर से जेकब चिल्लाया – ” अहा ! चलो गेन्द से खेलते हैं?”
बोला – ” चलो छुपम छुपाई खेलते हैं..” और लपक कर वह एक मेज़ के नीचे जा
छिपा । अब और जोर से जेकब चिल्लाया – ” अहा ! चलो गेन्द से खेलते हैं?”
सब चीख
चिल्ला रहे थे मगर इज़ाबेला खामोश थी । आखिर ईवलीना बोल पड़ी – “नहीं, आज हम नाटक खेलेंगे । पहले हम एक कहानी बनायेंगे जिसमे हर किसी की भूमिका
होगी । फ़िर जब हम पूरी कहानी को अच्छी तरह याद कर लेंगे तब हम यह नाटक अपने पिता
महाराज और रानी माँ को दिखायेंगे ।”
चिल्ला रहे थे मगर इज़ाबेला खामोश थी । आखिर ईवलीना बोल पड़ी – “नहीं, आज हम नाटक खेलेंगे । पहले हम एक कहानी बनायेंगे जिसमे हर किसी की भूमिका
होगी । फ़िर जब हम पूरी कहानी को अच्छी तरह याद कर लेंगे तब हम यह नाटक अपने पिता
महाराज और रानी माँ को दिखायेंगे ।”
हमेशा
की तरह ईवलीना का सुझाव मान लिया गया ।
की तरह ईवलीना का सुझाव मान लिया गया ।
फ़िलिप
बोला – “मैं बनूँगा जाँबाज़ राजकुमार ।”
बोला – “मैं बनूँगा जाँबाज़ राजकुमार ।”
जेकब
क्यों पीछे रहे – वह तुरन्त बोला, “मैं बनूँगा नेकदिल राजकुमार
!”
क्यों पीछे रहे – वह तुरन्त बोला, “मैं बनूँगा नेकदिल राजकुमार
!”
“हाँ
-” ईवलीना बोली “बिल्कुल ठीक,
और राजकुमारी के स्वयंवर के लिये तुम दोनों में भयंकर मुकाबला होगा..” और छोटी बहन लुइज़ा को देख कर वह
बोली – “और तुम, लुइज़ा, बनोगी राजकुमारी, जिसका स्वयम्वर होना है और मैं
बनूंगी राजमाता, जिसकी बात सबको माननी होगी । ठीक?”
-” ईवलीना बोली “बिल्कुल ठीक,
और राजकुमारी के स्वयंवर के लिये तुम दोनों में भयंकर मुकाबला होगा..” और छोटी बहन लुइज़ा को देख कर वह
बोली – “और तुम, लुइज़ा, बनोगी राजकुमारी, जिसका स्वयम्वर होना है और मैं
बनूंगी राजमाता, जिसकी बात सबको माननी होगी । ठीक?”
नाटक की
कहानी तय हो गई – सारी भूमिकायें भी बँट गईं पर इज़ाबेला का तो नम्बर ही नहीं आया
! इज़ाबेला से अब चुप न रहा गया – “म
..म.. मैं क्या करूँगी?”
कहानी तय हो गई – सारी भूमिकायें भी बँट गईं पर इज़ाबेला का तो नम्बर ही नहीं आया
! इज़ाबेला से अब चुप न रहा गया – “म
..म.. मैं क्या करूँगी?”
ईवलीना
ने साफ़ बोल दिया – “नहीं नहीं तुम नाटक में हिस्सा नहीं ले सकती।”
ने साफ़ बोल दिया – “नहीं नहीं तुम नाटक में हिस्सा नहीं ले सकती।”
“मगर
क-क-क्यूं नहीं?” इज़ाबेला
नें विरोध किया ।
क-क-क्यूं नहीं?” इज़ाबेला
नें विरोध किया ।
“जरा
सुनो अपने आप को – तुम तो बोल भी नहीं पा रही ठीक से !” फ़िलिप कह कर हँसने
लगा ।
सुनो अपने आप को – तुम तो बोल भी नहीं पा रही ठीक से !” फ़िलिप कह कर हँसने
लगा ।
“म-म-मैं
नाटक में अप्सरा ब-ब-बनना चा-चा…”
इज़ाबेला अपनी बात भी पूरी न कर पाई कि जेकब उसकी नक़ल कर के चिल्लाया –
“तुम कैसे बन सकती हो अप-अप- अप्सरा?”
नाटक में अप्सरा ब-ब-बनना चा-चा…”
इज़ाबेला अपनी बात भी पूरी न कर पाई कि जेकब उसकी नक़ल कर के चिल्लाया –
“तुम कैसे बन सकती हो अप-अप- अप्सरा?”
“जब
तक तुम हमारी तरह बोलना नहीं सीख लेती, हमारे साथ कैसे खेलोगी?”
लुइज़ा ने भी तुरन्त जोड़ दिया ।
तक तुम हमारी तरह बोलना नहीं सीख लेती, हमारे साथ कैसे खेलोगी?”
लुइज़ा ने भी तुरन्त जोड़ दिया ।
अपने
नन्हे से दिल को मसोस कर, दुखी इज़ाबेला महल के उद्यान मे चली गई । फ़ूलों की
क्यारी के पीछे छुप कर वह ज़ार ज़ार रोने लगी । कुछ ही देर में उसका ध्यान एक मीठी
सी कुहुक सुन कर टूट गया । उसने सिर उठा कर ऊपर देखा । एक छोटी सी बेहद चमकदार
चिड़िया ऊपर झाड़ी में बैठी गा रही थी- और कभी कभी वह नीचे उसकी ओर भी देख लेती ।
नन्हे से दिल को मसोस कर, दुखी इज़ाबेला महल के उद्यान मे चली गई । फ़ूलों की
क्यारी के पीछे छुप कर वह ज़ार ज़ार रोने लगी । कुछ ही देर में उसका ध्यान एक मीठी
सी कुहुक सुन कर टूट गया । उसने सिर उठा कर ऊपर देखा । एक छोटी सी बेहद चमकदार
चिड़िया ऊपर झाड़ी में बैठी गा रही थी- और कभी कभी वह नीचे उसकी ओर भी देख लेती ।
इज़ाबेला
से न रहा गया “त-त-तुम कौन हो जो
इतना सुन्दर गाती हो?”
से न रहा गया “त-त-तुम कौन हो जो
इतना सुन्दर गाती हो?”
“मैं
तो बस एक कोयल हूँ और मैं तो बस ऐसे ही गाती हूँ” – कोयल कुहुक कर बोली –
“और तुम कौन हो?”
तो बस एक कोयल हूँ और मैं तो बस ऐसे ही गाती हूँ” – कोयल कुहुक कर बोली –
“और तुम कौन हो?”
“इ-इ-इज़ाबेला” राजकुमारी ने जवाब दिया ।
“मगर
तुम इतनी उदास क्युँ हो ?” कोयल
पूछ बैठी ।
तुम इतनी उदास क्युँ हो ?” कोयल
पूछ बैठी ।
“मुझे
बात क-क-करने से ड-ड-डर लगता है। मेरे मुँह से स-स-सबकुछ गड़बड़ ही नि-नि-निकलता है।”
इज़ाबेला बोली और फ़िर रो पड़ी ।
बात क-क-करने से ड-ड-डर लगता है। मेरे मुँह से स-स-सबकुछ गड़बड़ ही नि-नि-निकलता है।”
इज़ाबेला बोली और फ़िर रो पड़ी ।
“अगर
तुम औरों जैसा नहीं बोलती तो क्या हुआ? ये तो बिल्कुल ठीक है।
हम कोयलें भी बहुत भिन्न भिन्न स्वर में गाती हैं- क्या तुमने नहीं सुना?”
कोयल की प्यारी सी बात सुन कर इज़ाबेला का दिल भर आया, उसे बड़ा अच्छा लगा । उसे लगा कि कोयल सच ही कह रही है – हम सभी तो फ़र्क
फ़र्क हैं ।
तुम औरों जैसा नहीं बोलती तो क्या हुआ? ये तो बिल्कुल ठीक है।
हम कोयलें भी बहुत भिन्न भिन्न स्वर में गाती हैं- क्या तुमने नहीं सुना?”
कोयल की प्यारी सी बात सुन कर इज़ाबेला का दिल भर आया, उसे बड़ा अच्छा लगा । उसे लगा कि कोयल सच ही कह रही है – हम सभी तो फ़र्क
फ़र्क हैं ।
बस उस
दिन से सुबह होते ही इज़ाबेला भाग कर उद्यान में उसी झाड़ी के पास पहुँच जाती । वही
कोयल उसे एक सुन्दर सा गीत सुनाती- कभी मद्धिम स्वर मे, कभी तार सप्तक मे; कभी हौले हौले और कभी इतने जोर से
कि सारा उद्यान गूंज उठता- कभी जोश के स्वर तो कभी खुशी के गीत । कोयल की कुहुक मे
सिर्फ़ आस थी, उम्मीद थी ।
दिन से सुबह होते ही इज़ाबेला भाग कर उद्यान में उसी झाड़ी के पास पहुँच जाती । वही
कोयल उसे एक सुन्दर सा गीत सुनाती- कभी मद्धिम स्वर मे, कभी तार सप्तक मे; कभी हौले हौले और कभी इतने जोर से
कि सारा उद्यान गूंज उठता- कभी जोश के स्वर तो कभी खुशी के गीत । कोयल की कुहुक मे
सिर्फ़ आस थी, उम्मीद थी ।
कोयल की
रागिनी सुन कर इज़ाबेला को भी कुछ कुछ जोश आने लगा। वह भी उसे अपनी मनपसन्द
कहानियाँ सुनाने लगी । सुनाते वक्त जैसी कहानी होती, इज़ाबेला वैसी ही आवाज़ बना लेती – कभी वनपरी की फ़ुसफ़ुसाहट तो कभी किसी
चुड़ैल सी चीख और कभी किसी झरने सा गरजना, तो कभी बच्चों सा
चहकना.. कभी जल्दी जल्दी तो कभी बहुत धीरे बोलती वह । और मज़े की बात यह कि
कहानियों के पात्रों जैसा बोलने मे इज़ाबेला इतना खो जाती कि हकलाना भी भूल जाती !
रागिनी सुन कर इज़ाबेला को भी कुछ कुछ जोश आने लगा। वह भी उसे अपनी मनपसन्द
कहानियाँ सुनाने लगी । सुनाते वक्त जैसी कहानी होती, इज़ाबेला वैसी ही आवाज़ बना लेती – कभी वनपरी की फ़ुसफ़ुसाहट तो कभी किसी
चुड़ैल सी चीख और कभी किसी झरने सा गरजना, तो कभी बच्चों सा
चहकना.. कभी जल्दी जल्दी तो कभी बहुत धीरे बोलती वह । और मज़े की बात यह कि
कहानियों के पात्रों जैसा बोलने मे इज़ाबेला इतना खो जाती कि हकलाना भी भूल जाती !
“तुम
तो जन्मजात अभिनेत्री हो” – कोयल एक दिन बोली। कोयल को अब अपने इस नये दोस्त
पर गर्व होने लगा था।
तो जन्मजात अभिनेत्री हो” – कोयल एक दिन बोली। कोयल को अब अपने इस नये दोस्त
पर गर्व होने लगा था।
“फ़िर
तो मै हमेशा अभिनय ही क-क-करूँगी । क्यूं न मै खुद को सो-सो-सोनपरी मान लूँ और
हमेशा उसी का अ-अ-अभिनय करती रहूँ ? इस से मे-मे-मेरा
हकलाना ठीक हो ज-ज-जायेगा और दूसरे बच्चे मुझे प्यार करने ल-ल-ल-लगेंगे और मेरे
साथ खेलेंगे भी..” एक साँस में
इज़ाबेला सब कुछ बोल गई ।
तो मै हमेशा अभिनय ही क-क-करूँगी । क्यूं न मै खुद को सो-सो-सोनपरी मान लूँ और
हमेशा उसी का अ-अ-अभिनय करती रहूँ ? इस से मे-मे-मेरा
हकलाना ठीक हो ज-ज-जायेगा और दूसरे बच्चे मुझे प्यार करने ल-ल-ल-लगेंगे और मेरे
साथ खेलेंगे भी..” एक साँस में
इज़ाबेला सब कुछ बोल गई ।
“अरे
नहीं नहीं” कोयल बीच में कूद पड़ी – “ये गलती मत करना बहना, तुम अपने को क्यूँ बेवकूफ़ बनाओ? देखो, जब तुम कहानी में किसी परी की आवाज़ बना कर बोलती हो वो तो ठीक है – मगर
बाकी समय तो भई अपनी ही आवाज़ सही है। आखिर इज़ाबेला अगर इज़ाबेला की आवाज़ मे ना बोले
तो किसकी आवाज़ मे बोलेगी? हम कोयलें भी तो अपने अपने सुर मे
गाती हैं – हम तो नहीं करते किसी और की नकल ! जहाँ तक दूसरे बच्चों का सवाल है,
देर सबेर वे तुम्हारे असली स्वरूप की कद्र करेंगे, ना कि झूठमूठ की सोनपरी की.. हाँ भई बुरा न मानना, मगर
सच्ची बात तो यही है..”
नहीं नहीं” कोयल बीच में कूद पड़ी – “ये गलती मत करना बहना, तुम अपने को क्यूँ बेवकूफ़ बनाओ? देखो, जब तुम कहानी में किसी परी की आवाज़ बना कर बोलती हो वो तो ठीक है – मगर
बाकी समय तो भई अपनी ही आवाज़ सही है। आखिर इज़ाबेला अगर इज़ाबेला की आवाज़ मे ना बोले
तो किसकी आवाज़ मे बोलेगी? हम कोयलें भी तो अपने अपने सुर मे
गाती हैं – हम तो नहीं करते किसी और की नकल ! जहाँ तक दूसरे बच्चों का सवाल है,
देर सबेर वे तुम्हारे असली स्वरूप की कद्र करेंगे, ना कि झूठमूठ की सोनपरी की.. हाँ भई बुरा न मानना, मगर
सच्ची बात तो यही है..”
“मगर
ये बात मैं दूसरे बच्चों को कैसे समझाऊँ? उन्हें तो सिर्फ़ मेरा
हकलाना ही सुनाई देता है !”
ये बात मैं दूसरे बच्चों को कैसे समझाऊँ? उन्हें तो सिर्फ़ मेरा
हकलाना ही सुनाई देता है !”
“घबराओ
मत” कोयल बोली “कोई न कोई तरीका निकल आयेगा । देखो तुम क्या बोलती हो, ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है, बनिस्बत कि कैसे बोलती हो।
बस इतनी सी बात गाँठ बाँध लेना” – कोयल इतना कूक कर उड़ चली, दूर गरम प्रान्तों की ओर, अन्य पंछियों के जत्थे के
साथ ।
मत” कोयल बोली “कोई न कोई तरीका निकल आयेगा । देखो तुम क्या बोलती हो, ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है, बनिस्बत कि कैसे बोलती हो।
बस इतनी सी बात गाँठ बाँध लेना” – कोयल इतना कूक कर उड़ चली, दूर गरम प्रान्तों की ओर, अन्य पंछियों के जत्थे के
साथ ।
फ़िर ओझल
होने से पहले एक फ़िरकी ले कर बोली “अगले वसन्त में फ़िर मिलूंगी !”
होने से पहले एक फ़िरकी ले कर बोली “अगले वसन्त में फ़िर मिलूंगी !”
“हाँ
ज़रूर – मैं याद रखूँगी ।” इज़ाबेला बोली और हाथ हिला कर उसने ओझल होती कोयल को
अलविदा कहा, भारी मन से ।
ज़रूर – मैं याद रखूँगी ।” इज़ाबेला बोली और हाथ हिला कर उसने ओझल होती कोयल को
अलविदा कहा, भारी मन से ।
इज़ाबेला
का सातवाँ जन्मदिन निकट आ रहा था । उसके पिता महाराज और रानी माँ की एक परम्परा थी
कि वो बच्चे के जन्मदिन पर उसकी एक इच्छा जरूर पूरी करते । इज़ाबेला के जन्मदिन
पर भी यही हुआ । एक रात पहले इज़ाबेला इसी उधेड़बुन में सो ना पाई कि आखिर माँगूँ तो
क्या माँगूँ? नई गुड़िया? चित्रकारी का सामान?
नया खिलौना? कुछ भी समझ न आ रहा था । आखिर भोर
होते होते इज़ाबेला को एक बात सूझी ।
का सातवाँ जन्मदिन निकट आ रहा था । उसके पिता महाराज और रानी माँ की एक परम्परा थी
कि वो बच्चे के जन्मदिन पर उसकी एक इच्छा जरूर पूरी करते । इज़ाबेला के जन्मदिन
पर भी यही हुआ । एक रात पहले इज़ाबेला इसी उधेड़बुन में सो ना पाई कि आखिर माँगूँ तो
क्या माँगूँ? नई गुड़िया? चित्रकारी का सामान?
नया खिलौना? कुछ भी समझ न आ रहा था । आखिर भोर
होते होते इज़ाबेला को एक बात सूझी ।
दौड़ कर
वह राजा रानी के शयन कक्ष में जा पहुँची और बोली: “माँ जी, पिता जी, मैं अपने ज-ज-जन्मदिन पर कुछ चाहती हूँ ।
म-म-मैं चाहती हूँ कि मेरे जन्मदिन पर इ-इ-ईवलीना , लुइज़ा,
ज-ज-जेकब और फ़िलिप सारे दिन हकलायें !”
वह राजा रानी के शयन कक्ष में जा पहुँची और बोली: “माँ जी, पिता जी, मैं अपने ज-ज-जन्मदिन पर कुछ चाहती हूँ ।
म-म-मैं चाहती हूँ कि मेरे जन्मदिन पर इ-इ-ईवलीना , लुइज़ा,
ज-ज-जेकब और फ़िलिप सारे दिन हकलायें !”
राजा और
रानी को ये गुजारिश कुछ अज़ीब सी लगी पर परम्परा की लाज़ तो रखनी थी । उन्होंने
तुरन्त आदेश दिया कि बाकी सारे बच्चे सुबह से शाम तक हकलायेंगे । बच्चों को भी
मानना पड़ा – क्या करते, राजा रानी का आदेश जो था! इज़ाबेला चुपचाप तमाशा
देखने लगी। पहली मुसीबत नाश्ते की मेज़ पर हुई।
रानी को ये गुजारिश कुछ अज़ीब सी लगी पर परम्परा की लाज़ तो रखनी थी । उन्होंने
तुरन्त आदेश दिया कि बाकी सारे बच्चे सुबह से शाम तक हकलायेंगे । बच्चों को भी
मानना पड़ा – क्या करते, राजा रानी का आदेश जो था! इज़ाबेला चुपचाप तमाशा
देखने लगी। पहली मुसीबत नाश्ते की मेज़ पर हुई।
ईवलीना बोली
“मुझे जरा वो देना, च-च-च-..”
“मुझे जरा वो देना, च-च-च-..”
इसके
पेहले कि वो चम्मच कह पाती, जेकब ने उसे चीनी पकड़ा दी ! चाय तो पहले ही बड़ी मीठी
थी । झुंझला कर इवलीना बोली “क्या करते हो प-प-पागल?”
पेहले कि वो चम्मच कह पाती, जेकब ने उसे चीनी पकड़ा दी ! चाय तो पहले ही बड़ी मीठी
थी । झुंझला कर इवलीना बोली “क्या करते हो प-प-पागल?”
फ़िलिप
बोल पड़ा “मगर मैं तो समझा कि तुम
च-च-च-चीनी माँग रही हो..”
बोल पड़ा “मगर मैं तो समझा कि तुम
च-च-च-चीनी माँग रही हो..”
जेकब
बोला “त-त-तुम्हे जल्दी बोलना चाहिये ना, ब-ब-ब-…”
बोला “त-त-तुम्हे जल्दी बोलना चाहिये ना, ब-ब-ब-…”
अब
लुइज़ा से रहा न गया “क्या ब-ब-ब-? बन्दर? बेवकूफ़? या बिल्ला महान?”
लुइज़ा से रहा न गया “क्या ब-ब-ब-? बन्दर? बेवकूफ़? या बिल्ला महान?”
“नहीं
बुद्धू ! जब तुम्हें नहीं म-म-मालूम मैं क्या बोलने जा रहा हूँ तो क्यों ब-ब-बीच
में कूद रही हो?”
बुद्धू ! जब तुम्हें नहीं म-म-मालूम मैं क्या बोलने जा रहा हूँ तो क्यों ब-ब-बीच
में कूद रही हो?”
“मैं
तो सिर्फ़ म-म-मदद कर रही थी” – लुइज़ा चिढ़ कर बोली ।
तो सिर्फ़ म-म-मदद कर रही थी” – लुइज़ा चिढ़ कर बोली ।
“मदद
नहीं – तुम जबरदस्ती टाँग अड़ा रही थी..” झल्ला कर जेकब ने जवाब दिया ।
नहीं – तुम जबरदस्ती टाँग अड़ा रही थी..” झल्ला कर जेकब ने जवाब दिया ।
दुपहर
के आराम के बाद दावत शुरु हुई । सारे भाई बहन व राज्य के अन्य बहुत सारे बच्चे
इकट्ठे हुए, इज़ाबेला को बधाई देने के लिये। मगर बाहर से आये तमाम
छोटे बच्चे एक बात देख कर बड़े हैरान थे। उनमे से एक आखिर पूछ ही बैठा लुइज़ा से
“तुम सब ऐसे क्यों बात कर रहे हो?”
के आराम के बाद दावत शुरु हुई । सारे भाई बहन व राज्य के अन्य बहुत सारे बच्चे
इकट्ठे हुए, इज़ाबेला को बधाई देने के लिये। मगर बाहर से आये तमाम
छोटे बच्चे एक बात देख कर बड़े हैरान थे। उनमे से एक आखिर पूछ ही बैठा लुइज़ा से
“तुम सब ऐसे क्यों बात कर रहे हो?”
“क-क-क्या
करें,
इ-इ-इज़ाबेला ने यही माँग रखी र-र-राजा और रानी के सा-सा-सा…”
करें,
इ-इ-इज़ाबेला ने यही माँग रखी र-र-राजा और रानी के सा-सा-सा…”
लुइज़ा
के चचेरे भाई ने उसकी पींठ पर हाथ मारा और बोला “अब शायद तुम ठीक बोल पाओ?”
के चचेरे भाई ने उसकी पींठ पर हाथ मारा और बोला “अब शायद तुम ठीक बोल पाओ?”
लुइज़ा
ने गुस्से से उसकी तरफ़ देखा। उसे ऐसे बर्ताव की उम्मीद ना थी। दूसरा लड़का
बोला “क्या तुम्हारे गले में कुछ
फ़ँसा है? ज़ोर से खाँस कर देखो, शायद ठीक
हो जाये..”
ने गुस्से से उसकी तरफ़ देखा। उसे ऐसे बर्ताव की उम्मीद ना थी। दूसरा लड़का
बोला “क्या तुम्हारे गले में कुछ
फ़ँसा है? ज़ोर से खाँस कर देखो, शायद ठीक
हो जाये..”
यह
सुनते ही सभी बच्चे खाँसने लगे! जब इससे भी कोई फ़ायदा न हुआ तो बाहर से आये बच्चों
का धैर्य खत्म हो गया और वे बोले
“सीधी सी बात है, तुम लोग बड़े लापरवाह और आलसी हो,
इसी लिये ऐसे बोलते हो- तुम्हे समस्या कोई नहीं है..”
सुनते ही सभी बच्चे खाँसने लगे! जब इससे भी कोई फ़ायदा न हुआ तो बाहर से आये बच्चों
का धैर्य खत्म हो गया और वे बोले
“सीधी सी बात है, तुम लोग बड़े लापरवाह और आलसी हो,
इसी लिये ऐसे बोलते हो- तुम्हे समस्या कोई नहीं है..”
ये कह
कर तमाम बच्चे जाने लगे। फ़िलिप उनके पीछे चिल्लाया “र-र-रुको एक मिनट, च-च-चलो छुपम छुपाई ख-ख-खेलते हैं?”
कर तमाम बच्चे जाने लगे। फ़िलिप उनके पीछे चिल्लाया “र-र-रुको एक मिनट, च-च-चलो छुपम छुपाई ख-ख-खेलते हैं?”
जेकब और
जोर से चिल्लाया “च-च-चलो त-त-तलाब किनारे चल कर मेंढकों को प-प-पत्थर मारते
हैं?”
जोर से चिल्लाया “च-च-चलो त-त-तलाब किनारे चल कर मेंढकों को प-प-पत्थर मारते
हैं?”
वे
बच्चे हँस पड़े, फ़िलिप और जेकब की बात सुनकर। ये देख कर फ़िलिप और जेकब
और हकलाने लगे। बच्चे और भी हँसने लगे।
बच्चे हँस पड़े, फ़िलिप और जेकब की बात सुनकर। ये देख कर फ़िलिप और जेकब
और हकलाने लगे। बच्चे और भी हँसने लगे।
ईवलीना ने
उनको डाँटना चाहा “क-क-क्यूं हंस रहे हो त-त-तुम लोग ?”
उनको डाँटना चाहा “क-क-क्यूं हंस रहे हो त-त-तुम लोग ?”
“अरे
सुना- क-क-क्युं ? क-क-क्यूं ?” बच्चे यह दोहरा दोहरा कर और हँसने
लगे। ईवलीना, लुइज़ा, फ़िलिप और जेकब
आखिर हार मान कर चुप हो गये। किसी ने कोई खेल न खेला। बाहर से आये बच्चे केक खा कर
अपने घरों को लौट गये।
सुना- क-क-क्युं ? क-क-क्यूं ?” बच्चे यह दोहरा दोहरा कर और हँसने
लगे। ईवलीना, लुइज़ा, फ़िलिप और जेकब
आखिर हार मान कर चुप हो गये। किसी ने कोई खेल न खेला। बाहर से आये बच्चे केक खा कर
अपने घरों को लौट गये।
उन्हें
अलविदा कहते वक्त ईवलीना , लुइज़ा, फ़िलिप और जेकब अपना
गुस्सा छिपा ना पाये। लुइज़ा बोली “हर कोई हमारी न-न-नकल उतार रहा है, ह-ह-हम पर हंस रहा है ! मैं ब-ब-बात करना चाहती हूँ पर कोई सुनने को तैयार
नहीं!”
अलविदा कहते वक्त ईवलीना , लुइज़ा, फ़िलिप और जेकब अपना
गुस्सा छिपा ना पाये। लुइज़ा बोली “हर कोई हमारी न-न-नकल उतार रहा है, ह-ह-हम पर हंस रहा है ! मैं ब-ब-बात करना चाहती हूँ पर कोई सुनने को तैयार
नहीं!”
फ़िलिप
और जेकब बोले “और तो और, क-क-कोई भी हमारे साथ ख-ख-खेलने को
राज़ी नहीं ।”
और जेकब बोले “और तो और, क-क-कोई भी हमारे साथ ख-ख-खेलने को
राज़ी नहीं ।”
“ये
तो महा गड़बड़ है” – सब चिल्लाये ।
तो महा गड़बड़ है” – सब चिल्लाये ।
ईवलीना ने गुस्से से इज़ाबेला की तरफ़ देखा और बोली :
“क-क-क्या
कुछ और नहीं माँग स-स-सकती थी अपने जन्मदिन पर ?”
कुछ और नहीं माँग स-स-सकती थी अपने जन्मदिन पर ?”
इज़ाबेला
ने बगैर धैर्य खोये बोला “मेरे पास
खिलौने तो ब-ब-बहुत हैं म-म-मगर कोई मेरे साथ ख-खेलता नहीं। क्या करती? बस यही
जताना च-च-चाहती थी तुम सबको कि मुझे कैसा ल-लगता होगा जब सभी मुझ पर ह-हँसते हैं, न मेरे साथ खेलते हैं और न ब-बोलते हैं…”
ने बगैर धैर्य खोये बोला “मेरे पास
खिलौने तो ब-ब-बहुत हैं म-म-मगर कोई मेरे साथ ख-खेलता नहीं। क्या करती? बस यही
जताना च-च-चाहती थी तुम सबको कि मुझे कैसा ल-लगता होगा जब सभी मुझ पर ह-हँसते हैं, न मेरे साथ खेलते हैं और न ब-बोलते हैं…”
एकाएक
इज़ाबेला का दर्द सबकी समझ में आ गया और ईवलीना , लुइज़ा, फ़िलिप और जेकब, सभी रोने लगे। इज़ाबेला की आँखों में
भी आंसू थे। वह बोली “मैं तो बस यही
चाहती हूँ कि तुम सब मुझे प्यार करते, मेरे साथ खेलते…”
इज़ाबेला का दर्द सबकी समझ में आ गया और ईवलीना , लुइज़ा, फ़िलिप और जेकब, सभी रोने लगे। इज़ाबेला की आँखों में
भी आंसू थे। वह बोली “मैं तो बस यही
चाहती हूँ कि तुम सब मुझे प्यार करते, मेरे साथ खेलते…”
अपना
चेहरा उसने दोनो हाथों से ढक लिया और सुबकने लगी। फ़िर उसने किसी के नर्म हाथ अपने
इर्द गिर्द महसूस किये। ईवलीना ने उसे गले से लगा रखा था। ईवलीना बोली “बहन, मुझे माफ़ करना कि मैने अनजाने में तुम्हें इतना दुख दिया। मैंने कभी ज़ाहिर
नहीं किया मगर सच तो यह है कि -” ईवलीना
ने इज़ाबेला को और कसके अपने से चिपटाया और बोली “- कि मैं तुम्हे बहुत
प्यार करती थी और करती हूँ।”
चेहरा उसने दोनो हाथों से ढक लिया और सुबकने लगी। फ़िर उसने किसी के नर्म हाथ अपने
इर्द गिर्द महसूस किये। ईवलीना ने उसे गले से लगा रखा था। ईवलीना बोली “बहन, मुझे माफ़ करना कि मैने अनजाने में तुम्हें इतना दुख दिया। मैंने कभी ज़ाहिर
नहीं किया मगर सच तो यह है कि -” ईवलीना
ने इज़ाबेला को और कसके अपने से चिपटाया और बोली “- कि मैं तुम्हे बहुत
प्यार करती थी और करती हूँ।”
लुइज़ा
भी सिसकते हुए बोली “मुझे भी माफ़ कर
दो। मै भी तुमसे बहुत प्यार करती हूँ, बहन।”
भी सिसकते हुए बोली “मुझे भी माफ़ कर
दो। मै भी तुमसे बहुत प्यार करती हूँ, बहन।”
इज़ाबेला
ने हाथ बढ़ा कर लुइज़ा को भी गले लगा लिया।
ने हाथ बढ़ा कर लुइज़ा को भी गले लगा लिया।
“क्या
हमारे लिये भी तुम्हारे दिलों में कोइ जगह है?” – जुड़वा भाइयों,
फ़िलिप और जेकब ने पूछा । सभी ने खुले मन से इज़ाबेला को गले लगाया और
पाँचों भाई-बहन विभोर हो गये।
हमारे लिये भी तुम्हारे दिलों में कोइ जगह है?” – जुड़वा भाइयों,
फ़िलिप और जेकब ने पूछा । सभी ने खुले मन से इज़ाबेला को गले लगाया और
पाँचों भाई-बहन विभोर हो गये।
“आज
से हम सब साथ खेलेंगे और तुम पर कोइ न हँसेगा। तुम बताओ कि जब तुम हकलाती हो तो
हमे क्या करना चाहिये?” जेकब
ने पूछा।
से हम सब साथ खेलेंगे और तुम पर कोइ न हँसेगा। तुम बताओ कि जब तुम हकलाती हो तो
हमे क्या करना चाहिये?” जेकब
ने पूछा।
“और
हाँ,
कौन सा खेल तुम हम सब के साथ खेलना चाहोगी ?” फ़िलिप ने पूछा।
हाँ,
कौन सा खेल तुम हम सब के साथ खेलना चाहोगी ?” फ़िलिप ने पूछा।
इज़ाबेला
नें जवाब में उन्हें बहुत कुछ बताया। पहली बार उन्होंने बड़े ध्यान से सुना। इतना
ही नहीं, ईवलीना ने सारी मुख्य बातें एक कागज़ पर लिख डालीं,
ताकि वे उन्हें कहीं भूल न जायें।
नें जवाब में उन्हें बहुत कुछ बताया। पहली बार उन्होंने बड़े ध्यान से सुना। इतना
ही नहीं, ईवलीना ने सारी मुख्य बातें एक कागज़ पर लिख डालीं,
ताकि वे उन्हें कहीं भूल न जायें।
सातवाँ
जन्मदिन खत्म होते होते, इज़ाबेला के ये सात नियम लिखे जा चुके थे :
जन्मदिन खत्म होते होते, इज़ाबेला के ये सात नियम लिखे जा चुके थे :
सात
नियम इज़ाबेला के
नियम इज़ाबेला के
राजकुमारी
जो थी हकलाती:
जो थी हकलाती:
१. अगर
तुम किसी को हकलाते देखो तो उस पर हँसो मत, क्योंकि इससे उसे दुख
होगा।
तुम किसी को हकलाते देखो तो उस पर हँसो मत, क्योंकि इससे उसे दुख
होगा।
२. उसकी
बात सुनो- उससे बात करो।
बात सुनो- उससे बात करो।
३.
सिर्फ़ इसलिये कि वो हकलाता है, उसे दूर मत भगाओ।
सिर्फ़ इसलिये कि वो हकलाता है, उसे दूर मत भगाओ।
४. जब
वह बात करे तो बीच मे टोको मत।
वह बात करे तो बीच मे टोको मत।
५.
अन्दाज़ा मत लगाओ कि वह क्या कहने की कोशिश कर रहा है।
अन्दाज़ा मत लगाओ कि वह क्या कहने की कोशिश कर रहा है।
६. धीरे
बोलो,
साँस ले कर बोलो आदि जैसे बेकार के सुझाव उसे मत दो।
बोलो,
साँस ले कर बोलो आदि जैसे बेकार के सुझाव उसे मत दो।
७.
खेलने का मन किसका नहीं करता? और कौन है जो खेल नहीं सकता? इसलिये उसे भी अपने खेल मे शामिल करो।
खेलने का मन किसका नहीं करता? और कौन है जो खेल नहीं सकता? इसलिये उसे भी अपने खेल मे शामिल करो।
अगली
सुबह बच्चों ने वह कागज़ महल के फ़ाटक पर चिपका दिया ताकि सभी नागरिक उसे पढ़ सकें।
तब से, आज तक, उस राज्य में कोई भी
हकलाने वालों पर नहीं हँसता है।
सुबह बच्चों ने वह कागज़ महल के फ़ाटक पर चिपका दिया ताकि सभी नागरिक उसे पढ़ सकें।
तब से, आज तक, उस राज्य में कोई भी
हकलाने वालों पर नहीं हँसता है।
हाँ ऐसा
है वो शहर अलबेला-
है वो शहर अलबेला-
जहाँ
रहती है राजकुमारी इज़ाबेला !
रहती है राजकुमारी इज़ाबेला !
समाप्त
हकलाने
वाले अपनी और एक दूसरे की मदद कर सकते हैं – इसी तरह दी इण्डियन स्टैमरिंग
एसोसिएशन की स्थापना हुई । और जानकारी के लिये बच्चों संपर्क करें : info@stammer.in
वाले अपनी और एक दूसरे की मदद कर सकते हैं – इसी तरह दी इण्डियन स्टैमरिंग
एसोसिएशन की स्थापना हुई । और जानकारी के लिये बच्चों संपर्क करें : info@stammer.in
2 thoughts on “इज़ाबेला – बाल कथा”
admin
(August 29, 2015 - 9:43 am)bahoot he sundar likha h…mujhe mera bachpan yaad aa gya
Dhanyawad Sachin Sir…
Sachin
(August 29, 2015 - 1:03 pm)Thank you Ravi!
People like Beata have turned their stammering in to a "work of beauty"! When God asks them- what did you do with that stammering which I gave you? Then, she will have a very good answer ready.
Rest of us: we will be scratching our head and recalling the name of our therapists or techniques!
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