सबसे पहले अपना परिचय दिया और फिर कहा- मैं हकलाता हूं, अगर आप लोगों को मेरी कोई बात समझ नें नहीं आए तो दोबारा पूंछ सकते हैं। मैंने बीच-बीच में बाउंसिंग, प्रोलांगसिशएन तकनीक का इस्तेमाल किया और कहीं-कहीं पर थोड़ा हकलाया भी। इस प्रोग्राम में कई गांवों के 47 पैरेन्टस आए थे। मैंने उन्हें विकलांगता, विकलांगता के कारण, विकलांग बच्चों की शीघ्र पहचान करने के तरीके, विकलांग बच्चों की स्वीकार्यता, शिक्षा व्यवस्था, देखभाल और शासन की योजनाओं आदि के बारे में बताया।
इस दौरान मैंने विकलांग बच्चों की परिवार और समाज में स्वीकार्यता के बारे में लम्बी चर्चा किया। कई उदाहरण देकर बताया कि विकलांग बच्चे किसी से कम नहीं हैं। हमें उनकी क्षमताओं पर ध्यान देना चाहिए और उन्हें आगे बढ़ाना चाहिए। कुल मिलाकर प्रोग्राम संतोषजनक रहा।
दूसरा प्रोग्राम 28 फरवरी 2015 को आयोजित किया गया। इसमें 39 अभिभावक आए। पहले की तरह इस कार्यक्रम को मैंने होस्ट किया। हमारे कार्यालय के अधिकारी ने पहले अपने विचार रखे। उसके बाद मैंने पूरा कार्यक्रम संचालित किया और लगातार चर्चा हुई।
इस तरह मैंने अपने जीवन के बहुत पुराने सपने को साकार होते देखा। यह सपना था- कई लोगों के सामने एक प्रोफेशनल के रूप में लेक्चर देने का।
मेरी इस सफलता में हकलाहट की स्वीकार्यता ने मेरी मदद की। सिर्फ यही एक ऐसा विकल्प था जिसे अपनाकर आज मैं अपना सपना पूरा कर पाया।
– अमितसिंह कुशवाह,
सतना, मध्यप्रदेश।
09300939758
5 thoughts on “एक बेहतर विकल्प है स्वीकार्यता!”
admin
(March 23, 2015 - 6:42 am)very nice amitji
Sachin
(March 23, 2015 - 1:30 pm)सचमुच – अपना हाथ जगन्नाथ, को आपने बड़ी सहजता से सच कर दिखाया ! जीवन की अन्य चुनौतियों मे भी यही सिद्धान्त लागू होंगे.. और आप इसी तरह सफल होंगे…
हम सबकी शुभकामनाएं सदैव आपके साथ हैं.
abhishek
(March 23, 2015 - 4:16 pm)Asp to chaa gaye Amit ji… Bahut achcha 🙂
admin
(March 23, 2015 - 5:18 pm)आपने सही तरीके से स्वीकृति का मतलब समझाया है.
धन्यवाद
admin
(March 24, 2015 - 8:19 am)बहुत बढिया अमित जी,
आपके जज्बे को सलाम
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