आज सुबह मेरी नींद जल्दी खुल गई। सुबह की सैर के बाद मैं घर वापस आया और किचन में चाय बनाया। रोज की तरह मैंने दो कप निकाले। चाय छानते समय सोचा- 2 कप किसलिए निकाले? आज तो मैं अकेला हूं। पापा तो चले गए उस अनन्त यात्रा की ओर जहां से कभी कोई वापस नहीं लौटता।
सत्रह महीने तक जीवन से लगातार संघर्ष के बाद 8 सितम्बर, 2015 को पिताजी हम सबको छोड़कर चले गए। इस दौरान मैंने जीवन की तमाम चुनौतियों का सामना किया। रिश्ते-नाते, मित्र, परिजन सभी को संजीदगी से समझने और महसूस करने का मौका मिला।
कुछ दिन पहले मैंने तीसा की एक पुस्तिका “सेवन स्टोरी” का हिन्दी अनुवाद किया था। एक स्टोरी की शुरूआत में सचिन सर ने लिखा था- हम सब जन्म लेते हैं, मौत के भय के साथ। सच तो यह है कि मृत्यु एक ऐसा शाश्वत सत्य है जिसे कोई नकार नहीं सकता और न ही बच सकता है।
बचपन में मेरे पिताजी मुझसे बहुत प्यार करते थे। बड़ा होने पर एक बार वे मुझे शिशु रोग विशेषज्ञ के पास ले गए। डॉक्टर साहब ने मेरे पिताजी से कहा- आप इस बच्चे को डांटते होंगे, इसलिए यह हकलाता है। बस, फिर क्या था- उस दिन से मैं हकलाहट के लिए अपने पिताजी को दोषी मानने लगा। धीरे-धीरे दूरियां बढ़ती गईं। जीवन में कभी ऐसा वक्त नहीं आया जब हम दोनों ने बैठकर कोई बात की हो।
सच कहूं तो मेरे मन में पिताजी की छवि एक खलनायक की बन गई थी। उनकी हर बात मुझे बुरी लगती थी। डांटना, रोक-टोक करना मुझे कतई अच्छा नहीं लगता था। कई बार पिताजी से तंग आकर आत्महत्या करने जैसा विचार भी आता रहता।
एक्सीडेंट होने के बाद मेरे पिताजी कोमा में चले गए हमेशा के लिए। जब वे अस्पताल में थे, तब मुझे उनकी कही हुई बातों, उनकी भावनाओं और उनकी अपेक्षाओं पर गहरा चिंतन करने का मौका मिला। मैंने पाया कि एक पिता अपने बेटे से क्या चाहेगा? शायद यही कि उनका बेटा खूब अच्छा काम करे, खूब नाम कमाए।
निश्चित ही मैंने अपने पिताजी को समझने को काफी देर कर दी। अस्पताल से घर आने के बाद भी उनकी सेहत में कोई खास सुधार नहीं हुआ। अब उनकी हालत एक 6 माह के बच्चे जैसी थी। अचानक आई इस विपदा को मैंने धैर्य के साथ स्वीकार किया। महसूस हुआ कि किसी से अपेक्षा करने का मतलब है कि अपने आप को और ज्यादा दुःखी करना। इसलिए बिना किसी अपेक्षा के मैं अपने काम में लगा रहा। अपने पिताजी से नफरत करने वाला मैं, अपने पिता से प्यार करने लगा। एक 6 माह के बच्चे को जितनी देखभाल की जरूरत होती है, उतनी ही मेरे पिताजी को रही।
पता नहीं यह सब कैसे इतनी आसानी से होता गया। पिताजी की देखभाल, घर के सारे काम और आफिस की ड्यूटी – सबकुछ समय पर चलता रहा। मुझे रह-रहकर अपने पिताजी की कही गई बातें याद आती रहीं। होश में नहीं होने के कारण अब इतना भी मौका नहीं मिल सका की मैं उनसे माफी मांग सकूं, खुले दिल से, अपनी गलतियों के लिए।
अक्सर हम बच्चे सोचते हैं कि सिर्फ हमें ही बड़ों के प्यार की जरूरत होती है। प्यार पर सिर्फ छोटों का एकाधिकार समझा जाता है। लेकिन माता-पिता का दिल और उनकी भावनाएं – इसके बारे में कम ही सोचा जाता है। हम यह नहीं महसूस कर पाते है कि हमारे पिता को भी हमारे प्यार की आवश्यकता होती है।
हकलाने के मामले में एक बात जरूर महसूस की जाती है कि हकलाहट के लिए कुछ साथी अपने पिता को दोषी मानकर, उनसे दूर होते जाते हैं। जरा सोचिए, मेरे पिताजी के दिल पर क्या बीती होगी, जब उन्हें यह पता चला होगा कि मैं अपनी हकलाहट के लिए उन्हें दोषी मानता हूं, उनसे नफरत करता हूं? उनका दिल अन्दर से कितनी बार रोया होगा? यह सब सोचकर मैं सिहर उठता हूं।
पिछले कुछ महीने में मैंने महसूस किया की मुश्किल के समय किस तरह रिश्ते-नाते सब बेमानी हो जाते हैं, और जिनसे बहुत कम उम्मीद होती है वे अपने हो जाते हैं। अपने पिताजी को लगातार 17 महीने तक जीवन के लिए संघर्ष करने देखना मेरे लिए बहुत ही कष्टदायक अनुभव रहा है।
मैं आप सब हकलाने वाले साथियों से अनुरोध करता हूं कि आप अपने पिता को समझने का प्रयास कीजिए, उन्हें खुले दिल से स्वीकार कीजिए, उन्हें भी आपके प्यार की जरूरत है। अगर पढ़ाई, करियर, शादी या अन्य किसी बात पर आपकी राय आपके पिताजी से अलग हो तो उनसे खुलकर बात करें। नहीं कर पा रहे हैं तो एक लेटर में अपनी सारी बात लिखकर उन्हें बता दें। बार-बार ऐसा करें।
अपने पिताजी को खुश करने के लिए अपनी पहली सेलेरी से कुछ गिफ्ट खरीदकर दें, उनका जन्मदिन मनाएं, त्यौहार में उनके साथ आनन्द लें। अगर वे थोड़ा गुस्सा हो जाएं, डांटें तो भी उनका अपमान न करें – ऐसी सभी बातें जो आपको पसंद नहीं या जिनकी आप अपेक्षा नहीं करते, उन सभी बातों को नजरअंदान करें, भूल जाएं।
पिता और पुत्र के रिश्ते में सबसे बड़ी भूमिका है धैर्य रखना और एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करना। काश! मैं ऐसा कर पाता। अगर समय रहते हुए पिता के रिश्ते को समझ पाएं और उसे सही तरीके से निभा पाएं तो हम एक बेहतर इंसान बन सकते हैं।
मेरे पिता एक बहुत ही सामान्य परिवार में जन्में व्यक्ति थे। मैंने उनके गरीबी और संघर्ष के दिनों को बहुत करीब से देखा और महसूस किया। एक समय ऐसा भी आया जब सरकार में उन्हें एक बड़ा पद मिला और मैंने अपने पिताजी के साथ सत्ता के वैभव को महसूस किया। मेरे पिता एक ऐसे नेता थे, जो हमेशा अपनी पार्टी के लिए समर्पित रहे। उनके लिए सिद्धान्त महत्वपूर्ण था, पैसा नहीं। मेरे पिताजी एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने लगातार संघर्ष किया, आखिरी सांस तक संघर्ष किया।
और अन्त में, तीसा के सभी साथियों को धन्यवाद जिन्होंने संकट की इस घड़ी में साथ दिया, सहयोग किया और मानसिक संबल प्रदान किया।
– अमित सिंह कुशवाह,
सतना, मध्यप्रदेश।
09300 939 758
7 thoughts on “एक पिता का खामोश होना . . .”
Sachin
(September 11, 2015 - 9:44 am)प्रिय अमित – हम दोनों अक्सर ये कहते आये हैं की स्वीकार्यता की प्रासंगिकता हकलाने से परे, जीवन के हर पहलु में है.. आज जीवन में ऐसा ही क्षण आया है| धर्य रखना| तुम्हारे पिता जी तुम्हारे हर कर्म और हर शब्द में जीवित रहेंगे, जिस से किसी को भी सद्प्रेरणा मिलती हो…
उनकी आत्मा की शांति के लिए हम सब प्रार्थना करते हैं..
admin
(September 11, 2015 - 12:31 pm)Dear Amit, pained to know about your father’s demise.
Remember friend ,strength does not come from winning. Your struggles develop your strengths. When you go through hardships and decide not to surrender that is your strength.
I personally having lost both my parents and a very talented & young nephew recently can well understand your mental state of mind and pain. But life moves on. You must have the solace that you served him well during his last days when he needed it most.
I pray to the almighty for peace of departed soul and giving strength to family members to bear this irreparable loss.
May all beings be Happy, Peaceful and Liberated.
admin
(September 11, 2015 - 4:02 pm)अमितजी आप हकलाने वालों के लिए प्रेरणा की श्रोत रहें हैं । ईश्वर आपको इस दुःख की घड़ी में धैर्य व बल दें और आपके पिताजी की आत्मा को शांति दें
Lalit Chawla
(September 13, 2015 - 4:32 pm)Amit I have no words to tell you that the way you have taken so much of pain and taken care of your father when needed. Amit now you will feel his presence even if he is not here physically. I prey to almighty to rest his soul in peace.
admin
(September 14, 2015 - 3:58 pm)Your father is a real hero amit ji.. who bring a great son like you into this earth. Seeing your preservation and struggle, I can certainly say your real life story touches my heart and I know you will continue sharing your story to inspire us and to making us realize the power of perseverance and hard work. You still hv to go far..
Thank you..
Rest in Peace your dear father…
admin
(September 14, 2015 - 3:59 pm)Your father is a real hero amit ji.. who bring a great son like you into this earth. Seeing your preservation and struggle, I can certainly say your real life story touches my heart and I know you will continue sharing your story to inspire us and to making us realize the power of perseverance and hard work. You still hv to go far..
Thank you..
Rest in Peace your dear father…
Govind Singh Bisht
(October 12, 2015 - 4:49 pm)Dear Amit I understand your pain, may god give peace to his soul. you have given wonderful service of seventeen months to your father when he really needed, you are true son.
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