बोलने की रेस!

कल रात एक न्यूज चैनल पर डिबेट चल रहा था। राजनेता, पत्रकार और विषय विशेषज्ञ को शामिल किया गया। चर्चा शुरू होने के कुछ मिनट बाद सब लोग अपनी बात कहने के लिए आतुर हो उठै। कोई भी अपने मन की विपरीत बात सुनना नहीं चाह रहा था। बीच में व्यवधान खड़ा कर पहले मैं, पहले मैं की रट लगाए हुए थे। सभी में दूसरे की बात को ध्यान से सुनने का धैर्य नहीं था। होस्ट बार-बार चुप रहने और अपनी बारी का इंतजार करने का निवेदन कर रहा था। पर कोई माने तब ना।

अक्सर हर न्यूज चैनल के डिबेट पर यही होता है। मैंने मन में सवाल उठा कि टीवी पर भी लोग ऐसा क्यों करते हैं? इसका सीधा उत्तर यह है कि लोगों में बोलने की रेस लगी है। लोग जल्दी से अपनी बात बोलना चाहते हैं। बाद में बोलने का मौका मिले या न मिले यह सोचकर दूसरे की बात सुनना नहीं चाहते। प्रतिकूल/विपरीत बातों को सुनकर आक्रोशित हो उठते हैं। बस, रेस मची है ज्यादा बोलो और जल्दी बोलो।

हम हकलाने वाले भी इसी रेस का हिस्सा बन जाते हैं। हकलाहट से छुटकारा पाने के लिए जितना जल्दी हो सके बोल दो। हकलाहट को छिपाने के लिए भी ऐसा करते हैं। इस भ्रम में जीते हैं कि जल्दी से बोल देने से शायद हमारी हकलाहट किसी को मालूम न होगी। ऐसा महूसस करते हैं कि हकलाकर हम चोरी कर रहे हैं, इसलिए जल्दी से बोल दो।

कुछ साल पहले तक मैं साइकिल चलाया करता था। जल्दी पहुंचने के चक्कर में तेजी से पैडल मारता। साईकिल तेजी से आगे बढ़ती। हमेशा थोड़ी दूर आगे जाने पर उसकी चैन उतर जाती, कभी अचानक बे्रक लगाना पड़ता तो मुश्किल होती। यह सब इसलिए होता था जल्दी पहुंचने के चक्कर में। क्या आपने कभी सोचा की हवाई जहाज की रफतार से धरती पर कार, बस या रेल क्यों नहीं चल सकती? कारण साफ है धरती हमें सिखाती है नियम से चलना, नियंत्रित चलना। अगर हम रोड़ पर ज्यादा तेज गति से वाहन चलाते हैं तो दुर्घटनाग्रस्त होने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।

जरा सोचिए कार में 80-100 किलोमीटर की स्पीड से अधिक की भागने की क्षमता होती है, लेकिन ऐसा कभी कर नहीं पाते। एक तो रोड़ खराब और दूसरा ज्यादा स्पीड में कंटोल करना मुश्किल।

यही प्रयोग हमें अपनी स्पीच के साथ करना सीखना चाहिए। ज्यादा स्पीड में बोलने के कई नुकसान हैं। आप सही तरह से बोल ही नहीं पाएंगे, रूकावट ज्यादा होगी और सामने वाला व्यक्ति आपकी बात को समझ नहीं पाएगा। जब इतने सारे नुकसान हैं तेज गति से बोलने के तो इस आदत को छोड़ने में हमारी भलाई है।

भारत में अधिकतर स्पीच थैरेपिस्ट धीरे पढ़न्र, धीरे बोलने का अभ्यास करवाते हैं। जब आप हकलाहट को कंटोल करना चाहें तो यही सबसे कारगर तरीका है धीरे-धीरे बोलें। जहां रूकावट हो जाए वहां रूक जाएं। दोबारा शुरू करें। इस दौरान हो सकता है कि आपको बोलने का अधिक मौका न दिया जाए। निराश न हों। आप जितना आराम से बोल सकें बोलिए। बार-बार आराम से ही बोलिए। अगर दो घंटे की डिबेट में आप 5 मिनट भी धीरे-धीरे बोल पाए तो यह काफी है। ज्यादा बोलने से कहीं बेहतर है सबको सुनना।

भेड़चाल का हिस्सा मत बनिए। लोगों को अगर ज्यादा और जल्दी बोलना है तो उन्हें ऐसा करने दीजिए। आप उनका अनुशरण मत कीजिए।

हम जीवन को एक दौड़ की तरह देखते हैं। सबसे आगे निकल जाने की भरसक कोशिश। स्पीच के मामले में थोड़ा सावधानी रखना चाहिए। दौड़ से बाहर होने का सोचिए। तेज स्पीड में बोलना एक श्रमसाध्य और थका देने वाला कार्य तो है ही, इससे रूकावट अधिक होती है। स्लो स्पीड हकलाहट को नियंत्रित करने का मलमंत्र है जिसका पालन करना सीखना चाहिए।

अमित 09300-939-758

Post Author: Harish Usgaonker

3 thoughts on “बोलने की रेस!

    Sachin

    (August 12, 2013 - 4:07 am)

    Great! It reminds me of Gandhi ji: he said: Life is more than SPEED!
    How true!

    admin

    (August 12, 2013 - 7:13 pm)

    Very true sir

    abhishek

    (August 15, 2013 - 8:47 am)

    Bahut achcha post hai Amitji.. Haklahat pe laagu hota hai

Comments are closed.