उधेड-बुन

पिछले साल शिवरात्री को मैं एक दूसरे शहर मे था । मुझे शिव मंदिर जाना था । मैने एक 30-35 साल के व्यक्ति से पूछा – भाई साहब, यहाँ  आस-पास कोई शिव मंदिर है । वो आदमी बोला – भाई साहब, थोडा जोर से बोलो, मैं थोडा ऊँचा सुनता हूँ । मै थोडा  जोर से बोला और उसने रास्ता बता दिया । मैं शिव मंदिर के रास्ते जा रहा था पर दिमाग मे उधेड-बुन शुरु हो गयी – ये आदमी कितनी विनम्रता और आसानी से Accept कर रहा है कि मैं ऊँचा सुनता हूँ । क्या इसके ऐसा बोलने से मैं इससे घृणा करने लगा……… क्या मुझे इसका उपहास करने का मन हुआ……..नहीं………..क्या उसके द्वारा अपनी समस्या बताने पर मैने उसको सहयोग नहीं दिया………….. फ़िर हम PWS क्यों लोगों के सामने ऐसे ही accept क्यों नही करते । क्या रितिक रोशन के खुलेआम stammerer होना स्वीकार करने से उसके फ़ेन-क्लब पर असर पडा…… शायद नही…… फ़िर हम क्यों लोगों के सामने ऐसे ही accept, stammering का self advertisement क्यों नही करते…… ।

Post Author: Harish Usgaonker

4 thoughts on “उधेड-बुन

    admin

    (March 11, 2013 - 1:10 pm)

    Bahut hi sunder aur vicharniya post hai.

    mubarak ho!!

    bilkul sahi kaha aapne….

    Zindgi hamesha se hi bilkul simple hai, lekin hum log isse yuhi complicated bana dete hai.

    Sachin

    (March 11, 2013 - 1:55 pm)

    बहुत सच, हेमन्त..

    admin

    (March 12, 2013 - 4:54 am)

    Wonderful. This is the only bottleneck we need to crack.

    Vinay tripathi Allahabad

    (March 21, 2013 - 2:17 am)

    Par kya har situation me accept karana chahiye

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