लोग हकलाहट को समझते हैं !

17 नवम्बर, रविवार को सतना में टीसा के स्वयं सहायता समूह की बैठक आयोजित की गई। बैठक में रीवा से प्रहलादसिंह तोमर और मैं उपस्थित रहे।प्रहलाद ट्रेन से सतना आए थे इसलिए हम लोगों ने स्टेशन के पास ही एक
मंदिर के परिसर में मीटिंग करने का फैसला किया। मैंने प्रहलाद से हकलाहट के
बारे में बातचीत करना शुरू किया। उन्होंने बताया कि बचपन में हकलाहट को
लेकर बहुत परेशान रहते थे। अभी वे रीवा में विटनरी साइंस में डिग्री कोर्स
कर रहे हैं। प्रहलाद ने बताया कि वे क्लास में प्रेजेन्टेशन के दौरान बोलने
से बचने की कोशिश करते हैं। उनके साथ पढ़ने वाली लड़कियों और कालेज के
प्रोफेसर को उनकी हकलाहट के बारे में नहीं पता।


मैंने उन्हें हकलाहट की स्वीकार्यता के बारे में बताया। साथ ही यह
बताया कि व्यवस्थित दिनचर्या, प्रणायाम और ध्यान हकलाहट की रिकवरी में
कारगर भूमिका निभाते हैं। मैंने प्रहलाद को टीसा की स्वयं सहायता पत्रिका
अपना हाथ जगन्नाथ की एक प्रति और टीसा का बैच भी दिया।

प्रहलाद को बताया कि टीसा का बैच लगाने से बातचीत करने का अच्छा मौका
मिलता है। लोग खुद आकर्षित होते हैं और हम उनसे हकलाहट पर बातचीत कर सकते
हैं। मैं खुद अक्सर टीसा का बैच लगाकर घूमता हूं।

बैठक के अंत में
मैं प्रहलाद को बिजली बिल जमा करने के लिए अपने साथ ले गया। बिल काउन्टर पर
बैठे व्यक्ति को पैसे देकर बिल जमा किया। फिर काउन्टर पर बैठे सज्जन से
कहा कि हम दोनों हकलाते हैं, इसलिए हकलाहट को ठीक करने के बारे में बात कर
रहे हैं। इस पर उस सज्जन ने कहा कि हां, हकलाहट का एक उपाय है। वह यह कि
हकलाने वाले एक ही बार में बहुत सारा बोलने की कोशिश करते हैं, इसलिए आप
लोगों को बीच-बीच में रूककर छोटे वाक्यों में बोलना चाहिए। मैंने उन सज्जन
को धन्यवाद देते हुए प्रशंसा की।

वापस लौटते समय हम दोनों आपस में चर्चा कर रहे थे कि एक साधारण व्यक्ति
भी हकलाहट के बारे में इतना सबकुछ जानता है और एकदम सही समाधान बताया है।
हम लोग अक्सर बोलने से कतराते हैं, हम समझते हैं कि दूसरे लोग हमारी हकलाहट
को समझ हीं नहीं सकते। जबकि ऐसा हर वक्त नहीं होता। कई लोग हकलाहट के बारे
में जानते हैं, और एकदम सही जानते हैं।

अंत में दोनों ने स्टेशन के पास चाय पी और फिर मैं प्रहलाद को स्टेशन पर छोड़कर वापस अपने घर आ गया।

– अमितसिंह कुशवाह,
सतना, मध्यप्रदेश।
09300939758

Post Author: Harish Usgaonker

3 thoughts on “लोग हकलाहट को समझते हैं !

    abhishek

    (November 18, 2013 - 2:41 pm)

    अमितजी आपके shg के अनुभव को पढ़ कर मन खुश हो गया

    Sachin

    (November 18, 2013 - 3:41 pm)

    A very good beginning for the SHG..
    Any reader from anywhere close, is strongly recommended to join the group next sunday..even if you dont need any help for yourself..

    admin

    (November 19, 2013 - 5:29 am)

    bahut badiya meetng hai.

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