अंग्रेजी भाषा के बारे में बात करने से पहले हम इंसानी भाषा की शुरुआत और उसके चरणबद्ध विकास पर कुछ बात करेंगे.
इस सवाल का स्थाई जवाब तो आज तक नहीं मिल सका कि इनसान ने भाषा का इस्तेमाल कब से शुरू किया. लेकिन इस बात पर सब सहमत हैं कि बोलने की ताक़त ही इनसान को अन्य जानवरों से अलग करती है और संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी बनाती है.
कुछ विशेषज्ञों का विचार है कि इनसान ने सबसे पहले प्रकृति में पाई जाने वाली आवाज़ों की नक़ल शुरू की. मसलन कुत्ते के भोंकने की आवाज़, बरसती बारिश का शोर, बादलों की गड़गड़ाहट, हवा की सायँ-सायँ और परिंदों के परों की फड़फड़ाहट वग़ैरा.
लेकिन कुछ और विशेषज्ञों का कहना है कि इनसान ने सबसे पहले अपने भावनाओं और संवेदनशीलता को एक निशचित रूप दिया था, मसलन भय, ख़ुशी और जोशो-ख़रोश के मौक़ों पर उसके मुँह से उफ़, वाह, ओह वग़ैरा की आवाज़ें निकलती थीं और यही आवाज़ें इनसानी आवाज़ें की शुरूआत थी.
डार्विन का कहना था कि इनसान की जीभ असल में हाथ-पाँव की हरकतों की नक़ल करते हुए हिलना शुरू हुई थी. बाद में उन ख़ामोश इशारों ने शब्दों का रूप धार कर लिया लेकिन एक आधुनिक नज़रिया उससे भी दिलचस्प सिद्धांत पेश करता है.
सवाल
भाषा वैज्ञानिक ईएच सटर्टवेंट (EH Sturtevant) का विचार है कि हाथ, पैर, आँख और मुँह के इशारे इनसान की भावनाएँ प्रकट करती हैं. इसलिए अपनी वास्तविक भावनाओं को छुपाने और झूठ बोलने के लिए इनसान ने जीभ का इस्तेमाल शुरू कर दिया.
18वीं सदी तक यह विचार आम था कि अतीत में सारी दुनिया के इनसानों की एक ही भाषा थी लेकिन बाद में ये महाभाषा (प्रोटो स्पीच) अलग-अलग समुदायों में विभाजित होती चली गई.
ये महाभाषा कौन सी थी, इस सिलसिले में हर समुदाय का दावा अलग था. स्वीडन के भाषा विशेषज्ञ 17वीं सदी तक गंभीरता से दुनिया को बताते थे कि स्वर्ग में ईश्वर स्वीडिश भाषा बोलता था, जबकि हज़रत आदम डैनिश भाषा बोलते थे और शैतान की भाषा फ्रांसीसी थी.
इस तरह अरबी, तुर्की, ईरानी और यूनानी बोलने वाले लोग विभिन्न भी ये दावा करते रहे हैं कि उनकी भाषा सबसे पुरानी है और दुनिया की सब भाषाएँ वहीं से निकली हैं. यही दावा किसी ज़माने में संस्कृत और लातीनी के बारे में भी होता रहा है.
आधुनिक भाषा विज्ञान में ये सवाल अहम नहीं है कि सबसे पहले कौन सी भाषा अस्तित्व में आई बल्कि उन सवालों पर ज़्यादा ध्यान दिया जाता है कि विचार प्रकट करने में भाषा किस तरह काम करती है.
शब्दों और विचार का क्या रिश्ता है. क्या शब्दों के बग़ैर विचार जन्म ले सकता है. एक दुधमुँहा बच्चा शब्दों के बिना किस तरह सोचता है. क्या किसी ख़ास भाषा में इनसानी विचारों को प्रकट करना ज़्यादा आसान और प्रभावशाली होता है.
20वीं सदी के दर्शन पर भी भाषा विशेषज्ञों का गहरा असर है और ये पुराना सवाल कि हमारे दिमाग़ में पहले विचार जन्म लेता है या शब्द, नए नए रूप धारण करके मनोवैज्ञानिकों और भाषाविदों के दरवाज़ों पर दस्तक देता रहा है.
– बीबीसीहिंदी.कॉम से साभार।
2 thoughts on “और हम बोलने लगे . . .”
Sachin
(April 17, 2013 - 6:23 pm)yes- whenever we speak what we dont mean, our body language often betrays us.. so may be you are right..Speech was an invention to fool others! May be this is why spiritual people become silent.. and politicians keep on nattering away..I wonder!
admin
(April 19, 2013 - 8:57 am)very nice amit ji…is it like knowing what darwin say without reading his theory.. i never knew or thought how we human started talking …thanks for updating us…g8t post
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