हकलाहट की यात्रा

मैं किशोरावस्था से हकलाहट को लेकर काफी परेशान रहने लगा था। उस समय इंटरनेट का चलन नहीं था। अखबारों में हकलाने के बारे में जो पढ़ा उसे सही मानकर चलता रहा। मैंने हकलाहट को ठीक करने के लिए टोटके, दवाई या अंधविश्वास का सहारा नहीं लिया।

कहीं पढ़ा कि बच्चों को डांटने के कारण हकलाहट की समस्या हो सकती है। उसी समय से मैं अपने पिता को हकलाहट के लिए जिम्मेदार मानता रहा। दूसरे लोगों को भी यही बताता।

मेरी परेशानियां बढ़ती रहीं। दुकान से अगर एक सामान भी खरीदना हो तो पर्ची पर लिखकर ले जाता। किसी व्यक्ति से फोन पर बात करने का सोच कर ही मेरे दिल की धड़कने तेज हो जातीं। कुछ बोल ही नहीं पाता।स्पीच थैरेपी के लिए 2 बार सरकारी, 1 बार प्रायवेट अस्पताल और एक बार फर्जी स्पीच थैरेपिस्ट का सामना किया। फर्जी इसलिए क्योंकि उनके पास थैरेपी देने के लिए कोई डिग्री नहीं थी। फिलहाल मैं खुद को ज्यादा खुशकिस्मत मानता हूं कि हकलाहट को ठीक करने के चक्कर में ज्यादा धन खर्च नहीं किया।

2004 में भोपाल में पत्रकारिता के पीजी कोर्स पर एडमिशन के दो माह बाद कोर्स छोड़ना पड़ा, क्योंकि मैं हकलाता था। मेरा पत्रकार बनने का सपना चूर-चूर हो गया। इस बीच स्पेशल एजूकेशन में अपना करियर बनाने का निश्चय किया। कालेज के एक सर ने सुझाया कि बधिरों की शिक्षा का क्षेत्र बेहतर होगा। वहां बोलने की जरूरत नहीं पड़ती। इशारों की भाषा से काम चल जाता है।

बी.एड. इन स्पेशल एजूकेशन कोर्स ज्वाइन करने पर ठीक इसके उल्टा पाया। बधिरों का पढ़ाने के लिए और ज्यादा स्पष्ट उच्चारण की जरूरत होती है। तेज आवाज में बोलना पड़ता है। फिलहाल, यह कोर्स अच्छे अंकों से उत्तीर्ण किया।

लोग मुझे सलाह देते कि किसी बड़े शहर पर जाकर स्पीच थैरेपी लेने से हकलाहट ठीक हो जाएगी। मैं भी यही मानता रहा। फीस के लिए धन नहीं होने और दूसरी व्यस्तताओं के चलते यह नहीं कर सका।
9 अगस्त 2010 को मैं इंदौर से भोपाल एक दिन के लिए गया। उस दिन मुझे बहुत ज्यादा हकलाहट हुई। शाम को वापस लौटकर इंटरनेट पर हकलाहट के बारे में सर्च किया। कई बड़े स्पीच थैरेपिस्ट के नाम सामने आए। फटाफट 4 लोगों को अपनी समस्या लिखकर ई-मेल कर दिया। फोन पर बात करने का साहस नहीं था।
सबसे पहले उत्तर आया टीसा के फाउंडर डा. सत्येन्द्र श्रीवास्तव का। उन्होंने मुझसे मेरे बारे में जानना चाहा। दूसरे मेल में मैंने अपना पूरा विवरण भेजा। उत्तर आया- समाधान है, पर कठिन मेहनत करनी पड़ेगी।
13 अगस्त 2010 की शाम डा. श्रीवास्तव को फोन किया। हकलाहट के बारे में जानकारी मिली। उन्होंने कहा- अपना नाम बताओ, कुशवाह को कु-कु-कु- कुशवाह बोलना। यह मेरा प्रथम परिचय था।डा. श्रीवास्तव ने मुझे टीसा के ब्लाग पर लेखन का आमंत्रण दिया। सबसे पहली पोस्ट 14 अगस्त 2010 को लिखी। आगे यह सिलसिला चल पड़ा।

2007 से मैं “अहा! जिन्दगी” पत्रिका नियमित रूप से पढ़ रहा हू। 2011 में मुझे “बातचीत की कला” पुस्तक पढ़ने का अवसर मिला। टीवी और इंटरनेट पर अध्यात्मिक प्रवचन सुनता हूँ। इससे मेरे जीवन पर कई अच्छे परिवर्तन आए। मैं ज्यादा पाजिटिव हो गया हूं। कई बार गलतियां करने से पहले खुद को रोक लेता हूं।

टीसा से जुडने के बाद और लगातार ब्लाग पर लेखन से हकलाहट के विषय में मेरी सोच और व्यवहार पर व्यापक सकारात्मक बदलाव आया है। अब मैं हकलाहट के लिए अपने पिताजी को दोष नहीं देता। हकलाहट पर हंसने वाले लोगों पर गुस्सा नहीं आता। कोई हकलाहट को लेकर कोई मजाकिया बात कहता है तो बुरा नहीं लगता।

अब मैं हकलाहट को स्वीकर करता हूं। दूसरे लोगों को हकलाने के बारे में बताता हूँ। फोन पर बात करने के मौके तलाशता हूं। अजनबियों से खुद आगे होकर बात करता हूं। टीसा ने मुझे एक नया जीवन दिया है।

– अमितसिंह कुशवाह,
सतना, मध्यप्रदेश।
09300939758

Post Author: Harish Usgaonker

7 thoughts on “हकलाहट की यात्रा

    admin

    (June 19, 2013 - 5:24 pm)

    I agree with you. टीसा ने मुझे भी एक नया जीवन
    दिया है।

    admin

    (June 19, 2013 - 6:44 pm)

    Dr.Satyendra Srivastava…Sachin Sir..Sachin..I am sure no stutterer who has corresponded with him..connected with him ever.. would ever get stuck with prounouncing his name..their is something intrisically good about him..

    We love you sir..period..

    Sachin

    (June 20, 2013 - 2:36 am)

    धन्यवाद अमित- अब आप औरों के लिये एक रोल माडल बनते जा रहे हैं – इसी तरह अपने अनुभव बाँ‌‌‍टते रहेँ..

    abhishek

    (June 20, 2013 - 3:29 am)

    Thank you for sharing

    admin

    (June 20, 2013 - 7:49 am)

    amit ji thanks for sharing ,like u tisa had changed many life … it gave hope to pws

    admin

    (June 23, 2013 - 5:12 am)

    amit ji bahut impresive hai, sach kahe ye kathin hai par speech tharepisto ki paeksha jyada tikau hai, sach me tisa aur sachin sir great hai, tisa ko haklo ka makka madina kahna chahiye na

    amit ji patrkarita ka sapna khatm nahi hua aapka, aapke pas lekhan ki advitiy kala hai, aap abhi bhi lekhan ke madhyam se ptrakarita kar sakte hao jaise news paper ke liye, aur ek bat ham log haklane ko chutkiyo me thik karna chahte hi jo ki asambhav hai

    admin

    (June 23, 2013 - 5:18 am)

    amit ji "बातचीत की कला" पुस्तक ye online hai ya paper vali hai. agar online ya digital ho to link dijiye

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