मेरे पिताजी को अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती हुए अब 40 दिन बीत गए हैं। इस दौरान मैंने एक बात पर गौर किया है। हर रिश्तेदार, पड़ोसी और परिचित जब भी मिलते हैं बस एक ही सवाल पूछते हैं – पापा, बोलने लगे क्या?
मैंने इस बात पर चिंतन किया कि हमेशा लोग एक ही सवाल क्यों पूछते हैं? काफी विचार करने के बाद यह समझ में आया कि हम और हमारा समाज बोलने को अधिक महत्व देता है। अगर कोई व्यक्ति बातचीत कर रहा है तो यह समझा जाता है कि वह स्वस्थ होगा, वह ज्यादा होशियार, बु़िद्धमान और कुशल होगा।
वास्तव में समाज की यह मानसिकता ही हम हकलाने वाले व्यक्तियों के लिए चुनौती का कारण है। अगर आप धाराप्रवाह नहीं बोल सकते तो निश्चित ही सामाजिक भेदभाव, तिरस्कार का सामना करना पड़ता है।
हमें यह बात समझनी चाहिए कि सिर्फ धाराप्रवाह बोलना ही जीवन के लिए जरूरी नहीं है। हमें समाज के हिसाब से नहीं सोचना है, बल्कि अपनी संवाद की जरूरत के अनुसार कार्य करना चाहिए। यही करना ज्यादा श्रेयस्कर है।
– अमितसिंह कुशवाह,
सतना, मध्यप्रदेश।
09300939758
4 thoughts on “बोलने का मतलब, सब ठीक है ?”
Sachin
(March 23, 2014 - 3:21 am)Speech is a highly over-valued activity..
Thinking- deep thinking- should be valued more.. and also good action in external world..
संगीता पुरी
(March 23, 2014 - 5:26 am)एक दो अपवाद हो सकते हैं ..
पर बोलना तो महत्वपूर्ण है ही !!
admin
(March 24, 2014 - 5:26 am)Man is the only animal to whom God has gifted the power of speech and laugh.
abhishek
(March 24, 2014 - 3:36 pm)Rightly observed Amitji. In that case what can we say about the himalayan yogis..sometimes they take vow of silence for months at a time. We lose our peace of mind if we chatter all day long. We definitely need silence to rejuvenate our mind,and for concentration,and for self-discovery 🙂
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