मैं अपने पिताजी के लिए एक शेम्पू मेडिकल शॉप पर जब भी लेने जाता था तो उसका नाम एक पर्ची पर लिखकर ले जाता था। यह सिलसिला कई वर्षों से निरंतर जारी था। ऐसा इसलिए क्योंकि मैंने मान लिया था की मैं “Aqua Derm” (शेम्पू का नाम) सही नहीं बोल पाऊंगा और दुकानदार को समझने में दिक्कत होगी।
दो दिन पहले मैं मार्केट पर था तभी घर से फोन आया की “Aqua Derm” लेते आना। उस समय मेरे पास पेपर और पेन नहीं था, जिससे मैं लिख लूँ। फिर मैंने तय किया की आज बोलकर ही देखते हैं, जो होगा देखेंगे।
मैंने मेडिकल शॉप पर पहुंचकर कहा- “Aqua Derm” चाहिए। मैं यह शब्द बड़ी ही आसानी से और एक ही बार में बड़े आराम से बोल पाया। मेरे मन में एक अनचाहा डर बैठा हुआ था वह पलभर में गायब हो गया। अब मैं जब भी “Aqua Derm” लेने जाऊँगा तो हमेशा बोलकर ही खरीदूंगा, पर्ची पर लिखकर नहीं।
वास्तव में, हम हकलाने वाले अपने मन में यह पहले से ही धारणा बना लेते हैं की हम बोल नहीं पाएंगे, जबकि कई बार हमारी यह धारणा गलत साबित होती है। हमें हमेशा बोलने से बचने के बजाए खुद को बार-बार उन हालातों का सामना करना सीखना चाहिए जहां हमें डर लगता है की हम नहीं बोल पाएँगे। और अगर दो-चार बार गलती हो भी जाए तो निराश न हों और लगातार कोशिश जारी रखें।
और हाँ, हमारा काम हकलाहट से दूर भागना या छिपाना कटाई नहीं है, बल्कि जैसे भी हो सके सही और सार्थक संवाद करना है, चाहे हकलाकर ही हो।
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Amitsingh Kushwah,
Satna (M.P.)
Mobile No. 093009-39758
2 thoughts on “मेडिकल शॉप पर हकलाहट का डर दूर हुआ . . . !”
admin
(February 22, 2013 - 3:16 pm)man ke jeete jeet hai Amit ji. Aise hi lage rahen.
Sachin
(February 24, 2013 - 2:03 am)BEAUTIFUL!
This is a good example of Positive psychology..
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