हकलाहट के डर से करता था क्लास बंक – विनोदकुमार

‘‘स्कूल में हिन्दी की क्लास में बुक पढ़ते समय मैं हकलाने लगा। मैं डर गया की टीचर मुझे स्कूल से न निकलवा दे? अगर ऐसा हुआ तो घर पर पापा बहुत डांटेंगें।” यह बात शेयर की शिमला, हिमाचल प्रदेश से अभिषेक ने। वे रविवार को टीसा के आनलाइन स्वयं सहायता समूह में हकलाहट पर बचपन के अनुभव बता रहे थे। अभिषेक ने कहा कि सैनिक स्कूल में कक्षा आठवीं पढ़ने के दौरान एक हजार बच्चों के सामने हिन्दी में एक बार बिना रूके अच्छा भाषण दिया था, लेकिन क्लास में बोलते समय अक्सर रूक जाता था।

नई दिल्ली के विनोदकुमार ने कहा कि कक्षा 11 और 12 में हर लेक्चर के दौरान अटेंडेंस होती थी। मैं नहीं बोल पाता था। क्लास में टीचर से कुछ पूंछने में बड़ी कठिनाई होती। हकलाहट हावी होने लगी। मैंने क्लास बंक करना, अकेले रहना, काम बोलना और उदास रहने लगा। आत्मविश्वास कम होने लगा था।अमितसिंह कुशवाह ने बताया कि कक्षा 5 में हकलाहट का अनुभव हुआ। फिर लगातार यह बढ़ती रही। हकलाने के कारण स्कूल की किसी भी गतिविधि में भाग नहीं लेता था। हाजिरी बोलने में बहुत दिक्कत होती थी। यह सिलसिला कालेज तक जारी रहा।

इसके बाद सभी सदस्यों ने उत्तराखण्ड में आई बाढ़ और उससे उपजी तबाही पर अपनी-अपनी स्पीच दी।

अभिषेक ने हाल ही में हरबर्टपुर में सम्पन्न टीसा की कम्यूनिकेशन वर्कशाप से जुड़े अनुभव को साझा किया।

Post Author: Harish Usgaonker

1 thought on “हकलाहट के डर से करता था क्लास बंक – विनोदकुमार

    Sachin

    (June 24, 2013 - 3:31 am)

    हकलाने की समस्या मे एक अनिशचितता है (कब हकलाएगे और कब नही)जो हमे बेहद हैरान परेशान करती है । अगर इस बुनियादी सच्चाई को समझ लिया जाए तो राह कुछ आसान हो जाती है..
    धन्यवाद, अच्छे लेख के लिये..

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