स्वीकार करें, मज़बूत बनें . . . !

कहते हैं कि एक झूठ को छिपाने के लिए सो झूठ बोलने पड़ते हैं. इसी तरह हमें भी अपनी हकलाहट को छिपाने के लिए बहुत कोशिश करनी पड़ती हैं, और नतीज़ा यह होता है कि हम हकलाहट को कभी-कभी तो छिपाने में कामयाब हो जाते हैं लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता।

पिछले एक साल के अन्दर शादी के सिलसिले में अलग-अलग समय पर दो लड़किओं से मेरा मिलना हुआ। और दोनों ही बार मैंने उन्हें बता दिया कि मैं हकलाता हूँ। इससे फायदा यह हुआ कि मैं जो कुछ उनसे बोलना चाहता था बिलकुल सहज भाव से, आराम से, बिना किसी डर के बोल पाया। और सबसे बड़ी बात तो यह रही कि इन दोनों ही लड़किओं को मेरी हकलाहट के कारण कोई समस्या नहीं थी। इन दोनों ने ही मुझे पसंद कर लिया था। पर कुछ और पारिवारिक कारणों से विवाह की बात आगे नहीं बढ़ पाई।

इससे मुझे यह अहसास हुआ कि जब हम हकलाहट को स्वीकार करते हैं तो हम अपने लिए नए रास्ते खोलते हैं। हकलाहट को स्वीकार करने से दूसरे व्यक्ति को हमारे गुणों और योग्यताओं को देखने का अवसर मिलता है। इससे हमारी विश्वसनीयता भी बढ़ती है। इंटरव्यू में हम यदि हकलाहट के बारे में बता दें तो सलेक्शन की संभावना काफी हद तक बढ़ जाती है। हम जो बोलना चाहते हैं सरलता से बोल पाते हैं।

जब हम हकलाहट को स्वीकार करना शुरू करते हैं तो पता चलता है कि हम अब तक हकलाहट से जबरन ही लड़ रहे थे। स्वीकार करने से हम मज़बूत बनते हैं। और जब समाज को आपके बारे में सही जानकारी होती है तो वह भी आपको सपोर्ट करता है।

– अमितसिंह कुशवाह
Mobile : 0 9 3 0 0 9 – 3 9 7 5 8

Post Author: Harish Usgaonker

4 thoughts on “स्वीकार करें, मज़बूत बनें . . . !

    Sachin

    (February 25, 2012 - 2:18 pm)

    कुछ और लम्बा और गहराई मे लिखे..
    अच्छी शुरुआत है..

    admin

    (February 25, 2012 - 2:46 pm)

    well done amit keep it up buddy…ur absolutely right….:)

    admin

    (February 26, 2012 - 5:04 am)

    biluk sahi kaha aapnae amit. Haklane ke baare main sirf khul ke baat karnae se hi jayadtar muskilaen assan ho jaati hain

    admin

    (February 28, 2012 - 8:00 am)

    thanks amit for sharing ur experience honestly…..

Comments are closed.