आज : मुझे हकलाहट से कोई फर्क नहीं पडता। मैं हकलाने के बारे में बिना किसी डर, शर्म और झिझक के खुलकर लोगों से बातचीत करता हूं। हकलाने में शर्म नहीं आती। हकलाहट को कभी झिपाने की कोशिश नहीं करता। मेरा यह भ्रम दूर हो गया है कि पिताजी ही हकलाहट के लिए जिम्मेदार थे, शायद यह सोचना सरासर गलत था। मैं अब सभी लोगों से खुलकर मिलता हूं, बात करता हूं। हकलाहट मेरे जीवन में बाधा नहीं है।फर्क सिर्फ इतना सा है : टीसा से जुडने के बाद मैंने हकलाहट को सकारात्मक नजरिए से समझा और अनुभवों के द्वारा जीवन में सकारात्मक बदलाव आए। जीवन वही है, बदलाव सिर्फ सोच का है। पहले दुनिया के लोगों को दोष देता था, आज किसी को गलत ठहराने का समय ही नहीं है।
आप क्या कर सकते हैं : आप दुनिया को बदलने की चाह छोड दें। आप खुद हर बात को लेकर सकारात्मक हो जाएं। हकलाहट को लेकर सभी नकारात्मक बातों को भूल जाएं और एक नई शुरूआत करें। खुलकर लोगों से बातचीत करें। हकलाहट को लेकर टेंशन मत लें। बस, अपना काम करते जाएं। आप देखेंगे की आपके जीवन में बदलाव आने लगा है। आप दूसरों की बातों को सुने, उन्हें सम्मान दें, लोगों की तारीफ करें। बस, फिर देखिए हकलाहट का डर और तनाव कैसे आपके जीवन से दूर होता है।
ध्यान रखिए: दुनिया को बदलने की जरूरत नहीं है। हमें सिर्फ अपनी नकारात्मक सोच को सकारात्मकता में बदलना है और बदलाव को महसूस करना है, आनन्द उठाना है।
– अमितसिंह कुशवाह,
सतना, मध्यप्रदेश।
09300939758
2 thoughts on “दुनिया को नहीं, अपनी सोच को बदलिए”
admin
(June 27, 2014 - 2:03 pm)बिल्कुल सही अमित जी,
नजरें बदली ,तो नजारे बदल गये ।
ऒर नजरे बदलती है TISA की workshop, national conference मे participate करने से।
असल मे ईंधन fuel हमारे अन्दर भरा है, हम उस
ईंधन को तो बाहर निकालने की कोशिश करते नहीं , ऒर सारी उमर दोष चिंगारी को देते रहते हैं । PWS का ईंधन है – हकलाने का डर, हकलाने पर शरम, लज्जा, आत्मग्लानि ऒर अपने आप से घृणा ।
Sachin
(June 27, 2014 - 2:09 pm)बहुत सटीक, अमित
लिखते रहें इसी तरह समय निकाल कर…
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