आजकल न्यूज चैनल्स पर लोकसभा चुनाव से संबंधित विषयों पर डिबेट चल रहे हैं। इसमें कई पार्टियों के नेता, पत्रकार और विशेषज्ञ शामिल होते हैं। सब अपना मत, राय और विचार साझा करते हैं। जैसा कि अक्सर होता है कि दूसरे पक्ष की बात से सहमत नहीं होने पर टीवी शो के दौरान लोग आक्रामक हो जाते हैं। बीच में रोकने की कोशिश करते हैं, जबरन अपनी बात बोलते हैं, व्यवधान उत्पन्न करते हैं। इससे डिबेट एक सुखद अंत तक पहुंच ही नहीं पाता और एंकर को शो खत्म करना पड़ता है।
बार-बार टीवी पर इस तरह के प्रोग्राम देखकर मेरे मन में विचार आया कि इतने पढ़े-लिखे, सभ्य, उंचे पदों पर आसीन ये लोग आखिर टीवी पर ऐसा तमाशा क्यों करते हैं? क्यों नहीं, हर पक्ष को बोलने देते? क्यों उसकी बात ध्यान से नहीं सुनते?
इन सबके पीछे हमारा मानवीय स्वभाव है। जिन्दगी बीत जाती है, लेकिन हम यही मानते हैं कि हम जो जानते हैं, जो सोचते हैं, हम जो कह रहे हैं, सिर्फ वही सच है, वही एकदम ठीक है। जो व्यक्ति हमारे विपरीत बात बोल रहा है, वह एकदम गलत है।
ऐसा होता है, क्योंकि हम अपने मन के दरवाजे बंद कर लेते हैं। दूसरों की बात सुनना ही नहीं चाहते, दूसरों को समझना ही नहीं चाहते। हम दूसरों की बात को नकारना जानते हैं और किसी प्रकार अपनी बात मनवाना जानते हैं।
मान लीजिए, आप करैला खाना पसंद नहीं करते, लेकिन आपका कोई साथी ऐसा होगा जिसे करैला खाना बेहद पसंद है। ऐसी स्थिति में विवाद उत्पन्न हो जाता है। घर में कई बार ऐसी स्थिति आती है जब हम जो खाना चाहते हैं, वह दूसरे सदस्य को पसंद नहीं।
वास्तव में हमें जीवन में दूसरों की भावनाओं, विचारों, रूचियों, मत, राय को सुनना, समझना और उन्हें महत्व देना सीखना चाहिए। आप करैला नहीं खाते, और एक दिन आपके घर में करैला ही बना। तो इस पर विवाद करने, गुस्सा करने से कहीं ज्यादा बेहतर है कि एक बार आप भी करैला खाकर देखिए। हो सकता है कि आपको भी करैला में कुछ गुण नजर आ जाएं, आपको भी शायद उसका स्वाद अच्छा लगे।
अगर आप बेहतर संचारकर्ता बनना चाहते हैं, तो इन बातों पर अमल कर सकते हैं:-
1. हमेशा दूसरे व्यक्ति को बोलने का पूरा अवसर दें।
2. जब कोई व्यक्ति बोल रहा हो, तो उसकी बात बीच में न कांटें।
3. अगर सामने वाला व्यक्ति कोई ऐसी बात बोल रहा है, जिससे आप सहमत नहीं हैं, तो भी उसे बोलने दें और उसके बोलने के बाद अपनी बात कहें।
4. यदि ऐसी कोई बात कही जा रही है जिससे आप सहमत नहीं हों, तब भी उस पर चिंतन-मनन, सोच-विचार करें। हो सकता है कि आपकी सोच गलत हो, और सामने वाला व्यक्ति सही कह रहा है।
5. आपके मन के विपरीत बातचीत होने पर भी अभद्र भाषा का इस्तेमाल नहीं करें, आक्रामक नहीं हों, गुस्सा न करें, बल्कि शालीनता से बात को सुनें और मौका आने पर शालीनता से अपनी बात कहें।
6. जब आप किसी से बात कर रहे हों तो बीच-बीच में उसका नाम लेकर बोलते रहें। इससे अच्छा प्रभाव पड़ता है। ऐसा इसलिए कि अपना नाम सुनना हर किसी को अच्छा लगता है। free adult movies
यदि आप इन छोटी बातों को अपने दैनिक जीवन में उतारना शुरू करेंगे तो आपका संचार/संवाद बहुत बेहतर होता जाएगा।
– अमितसिंह कुशवाह,
सतना, मध्यप्रदेश।
09300939758
2 thoughts on “सब बोलना चाहते हैं, कोई किसी की सुनना नहीं चाहता!”
Sachin
(March 28, 2014 - 9:59 am)अमित , सच तो यह है कि आजकल चुनावी बहस टी वी पर बेहद मनोरंजक हो गयी है – ऐक्शन फिल्मो से भी ज्यादा ! कुछ कुछ कार्टून शो जैसा..
असली बात तो यह है की ज्यादातर लोग संवाद करने नहीं, सिर्फ खुद को और अपनी पार्टी को सही साबित करने के लिए ही जी जान लगा देते है टी वी पर ! यह सब देख कर समझ आता है की वस्तुतः संवाद कौशल धाराप्रवाह बोलने से कही ज्यादा महत्त्वपूर्ण है ..
धन्यवाद , इस प्रासंगिक. लेख के. लिए…
abhishek
(March 28, 2014 - 10:44 am)Very good article Amitji.
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