“जिन्हें
राजनीति करना नहीं आता … अक्सर वही सबसे बड़े राजनीतिज्ञ निकलते हैं
… कम बोलने वाला या न बोलने वाला मनुष्य सबसे अधिक खतरनाक होता है …
अधिक बोलने वाले मनुष्य की कहीं कोई कद्र नहीं होती , अधिक बोलने वाला
मनुष्य अधिकांशत: असत्य बोलता है एवं मिथ्या प्रलाप करता है।
राजनीति करना नहीं आता … अक्सर वही सबसे बड़े राजनीतिज्ञ निकलते हैं
… कम बोलने वाला या न बोलने वाला मनुष्य सबसे अधिक खतरनाक होता है …
अधिक बोलने वाले मनुष्य की कहीं कोई कद्र नहीं होती , अधिक बोलने वाला
मनुष्य अधिकांशत: असत्य बोलता है एवं मिथ्या प्रलाप करता है।
इसकी वजह यह
है कि हर मनुष्य के पास सत्य का या असल बात का एक निश्चित व सीमित भंडार या
कोटा होता है और यह कोटा बोलते बोलते एक निश्चित समय में समाप्त हो जाता
है और उसके पास उसके बाद बोलने के लिये सत्य का अंशमात्र भी शेष नहीं बचता
… लेकिन फिर भी जो बोलता रहता है …
है कि हर मनुष्य के पास सत्य का या असल बात का एक निश्चित व सीमित भंडार या
कोटा होता है और यह कोटा बोलते बोलते एक निश्चित समय में समाप्त हो जाता
है और उसके पास उसके बाद बोलने के लिये सत्य का अंशमात्र भी शेष नहीं बचता
… लेकिन फिर भी जो बोलता रहता है …
फिर वह केवल काल्पनिक, मनगढ़ंत एवं
असत्य बोलता है बस मिथ्या प्रलाप करता है … भारत में आजकल के राजनेताओं
को यही अधिक बोलने की बहुत बीमारी है , जिसके कारण वे निरंतर असत्य व
मिथ्या बोलते हैं … और बड़ बड़ बड़ बड़ बड़ … बोलते बकते ही चले जाते
हैं … क्या बोल रहे हैं … क्या बोलना है … इसका उन्हें खुद ही ख्याल
नहीं रहता … ऐसे नेता अधिक हैं … (उनके नामों का खुद
अंदाजा लगा लीजिये )”
असत्य बोलता है बस मिथ्या प्रलाप करता है … भारत में आजकल के राजनेताओं
को यही अधिक बोलने की बहुत बीमारी है , जिसके कारण वे निरंतर असत्य व
मिथ्या बोलते हैं … और बड़ बड़ बड़ बड़ बड़ … बोलते बकते ही चले जाते
हैं … क्या बोल रहे हैं … क्या बोलना है … इसका उन्हें खुद ही ख्याल
नहीं रहता … ऐसे नेता अधिक हैं … (उनके नामों का खुद
अंदाजा लगा लीजिये )”
ये विचार मेरे एक मित्र नरेन्द्रसिंह तोमर के हैं। सच में हम भारतीय हमेशा कुछ न कुछ बोलते रहने को ही अपनी सबसे बड़ी योग्यता समझने की भूल करते हैं।
जब दो लोग ट्रेन पर सफर कर रहे हों तो एक व्यक्ति खिड़की के बाहर देखकर बोलेगा- क्या अच्छा दृश्य है? कितने सुन्दर पेड़ लगे हैं? यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि दूसरा व्यक्ति भी अपनी आंखों से वही सब देख रहा है जो आप देख रहे हैं, फिर आप क्यों जबरदस्ती बोलकर आसपास अशांति फैला रहे हैं!इस तरह के कुछ उदाहरण हमें मिलते हैं, जब हम बिना किसी कारण के सिर्फ बोलने के लिए बोलते हैं। वास्तव में यह स्थिति चिन्ताजनक है और दुर्भागयपूर्ण भी। हमें इन फालतू बातों से बचना चाहिए, और जब जरूरत हो तभी बोलना चाहिए। अपनी वाणी का सदुपयोग करना चाहिए।
—
– अमितसिंह कुशवाह,
सतना, मध्य प्रदेश।
093000939758
4 thoughts on “अधिक बोलने वाले मनुष्य की कद्र नहीं होती . . . !”
admin
(June 5, 2013 - 4:01 pm)जी हा, सही कहे आपने, अमितजी, अति सर्वत्र वर्जयते|
Sachin
(June 5, 2013 - 4:09 pm)I hope politicians will learn something from us, who stammer..!!
admin
(June 5, 2013 - 5:09 pm)yes, absolutely right. even swami avdeshanand giri tells- silence give more impact on human mind then speaking. just listen discourse of swami avadheshanand giri
http://www.youtube.com/watch?v=x1lLAnFEDCE
admin
(June 6, 2013 - 5:04 am)Bilkul sahi, jayda bolna hamesha hi hanikarak hota hai….. but people who speak more are like addict of speaking they feel urge to speak they don't have control over their habit , we can compare this with other habit like over eating etc.
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