क्या मेरी हकलाहट मेरे लिए अच्छी है या बुरी ?
मैं हमेशा सही बोलने की कोशिश करता हूं , डरता हूँ कि कहीं हकला गया तो क्या होगा !!! अगर मैं अटक गया तो क्या कल के अखबार के पहले पन्ने पे मेरा नाम होगा – हकलाने के जुर्म में एक व्यक्ति को सज़ा 😊😊
तो फिर क्या चीज है जो मुझे रोक रही है
दोस्तो , ये ह मेरा या हमारा अहं – अपने को एक अच्छे स्मार्ट व्यक्ति की तरह पेश करने की इच्छा। As buddha said – desire is the root cause of suffering , हम हकलाने वाले जो रोज बहुत दर्द झेलते है , इसकी एकमात्र वजह है हमारा अपने आप को न स्वीकारना ।
स्वीकारने का अर्थ ये नहीं कि हमने हथियार डाल दिये है परंतु और भी जोर शोर से हकलाहट पे हमला बोला है ।
स्वीकार का सही अर्थ अपने आप को जानना और अपनी हकलाहट को जानना है , दरअसल हम हकलाता हुए देखना ही नही चाहते , हम तो बस जल्दी जल्दी बात पूरी करने में लगे रहते है , अगर हम रुक कर अपने आप को रुकता हुआ देख लें तो हम अपने रुकने को रोक सकते हैं ।
देखे कि कैसे मेरे दिल की धड़कन बड़ गयी , कैसे मेरा सांस रुक गया , कैसे मेरा मुँह खुला ही नहीं, कैसे बोलने से पहले मेरे दिमाग मे आया कि मैं तो पक्का हकलाने वाला हु ….हम अपने दुश्मन को पूरी तरह जान कर ही उसपर जीत हासिल कर सकते हैं
बाकी अगली बार………
1 thought on “My experience #1”
satyendra srivastava
(August 25, 2018 - 12:51 pm)Very good Raman! Here I am offering a Quadratic equation for all of us: We are very intelligent people:
Block^1000 = %*% = Vol Stam ^ = VS
! VS /#/*^ = string “I am so smart” = Block^%^
Accept = Courage = Vol Stam = (1/Block)*(1/Block) = New Self
ha ha ha.. Just joking. But I totally agree with “स्वीकारने का अर्थ ये नहीं कि हमने हथियार डाल दिये है परंतु और भी जोर शोर से हकलाहट पे हमला बोला है “. That is the secret of ANY change.. Be Brave and Confront your fears…