हकलाहट – भ्रम और सच्चाई (Myths about Stuttering)

भ्रम: हकलाने वाले व्यक्ति बुद्धिमान नहीं होते?
सच: हकलाहट और बुद्धिमानी के बीच कोई संबंध नहीं है।
भ्रम: घबराहट के कारण हकलाहट होती है।
सच: घबराहट के कारण हकलाहट नहीं होती है। यह नहीं माना जा सकता कि हकलाने वाले व्यक्ति घबराए हुए, डरे हुए, चिंतित या शर्मीले होते हैं। इनमें भी दूसरे लोगों की तरह व्यक्तित्व और गुण होते हैं।

भ्रम: हकलाहट किसी की नकल करने या किसी को हकलाते हुए सनने से होती है?
सच: हम किसी की नकल या किसी को हकलाते हुए सुनकर खुद नहीं हकलाना नहीं सीख सकते। कोई भी हकलाहट का साफ कारण नहीं बता सकता, लेकिन ताजा शोध इस बात की ओर इशारा करते हैं कि पारिवारिक इतिहास यानी अनुवांशिक कारण, बचपन का लालन-पालन, परिवार का वातावरण – ये सब हकलाहट में अहम भूमिका निभाते हैं।

भ्रम: बोलने से पहले गहरी सांस लो या बोलने से पहले सोचो – ऐसे निर्देश देने पर हकलाने वाले लोगों को मदद मिलती है?
सच: इस तरह की सलाह से व्यक्ति संकोची हो जाता है और उसे अधिक हकलाहट होने लगती है। हकलाने वाले व्यक्ति के पक्ष में सकारात्मक योगदान के लिए उसे ध्यान से सुनना, नकल न करना, उसे बोलने के लिए पर्याप्त समय देना और खुद अपनी स्पष्ट आवाज में बोलना जरूरी है।

भ्रम: तनाव के कारण हकलाहट होती है?
सच: जैसा बताया गया है कि हकलाहट के लिए कई जटिल कारण जिम्मेदार होते हैं। तनाव कोई कारण नहीं है, लेकिन यह अवश्य कहा जा सकता है कि तनाव हकलाहट को और अधिक बढ़ाता है।

साभार: द स्टटरिंग फाउन्डेशन, अमेरिका
(मूल इंग्लिश पाठ के लिए इस लिंक पर जाएं ) English Text

Post Author: Harish Usgaonker

2 thoughts on “हकलाहट – भ्रम और सच्चाई (Myths about Stuttering)

    Sachin

    (June 24, 2015 - 11:57 am)

    Good job, Amit…
    A few small typos…

    abhishek

    (June 24, 2015 - 12:39 pm)

    बहुत अच्छा अमितजी। हकलाहट के विषय में उपयोगी पोस्ट

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