अपनी प्रतिभा के बल पर अच्छे मुकाम हासिल करें, हकलाहट कोई बाधा नहीं…

मेरा नाम सद्दाम हुसैन है। मैं मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर में रहता हूं। एक बार मैं हकलाहट के इलाज के बारे में यूट्यूब पर सर्च कर रहा था, तब मुझे तीसा के बारे में सबसे पहले मालूम हुआ। उस समय मैं स्पीच थैरेपी भी ले रहा था, लेकिन जाॅब लगने के कारण बीच में ही छोड़ना पड़ा। फिर मैंने तीसा की वेबसाईट पर इन्दौर स्टेमर के नाम से सर्च किया तो मुझे अमित और प्रमेन्द्र का मोबाइल नम्बर मिला। मैंने दोनों से सम्पर्क किया। लेकिन ये दोनों ही इंदौर में अपनी गतिविधियां बन्द कर चुके थे। अमित सतना में जाॅब पर लग गए थे और प्रमेन्द्र जयपुर जा चुके थे। लेकिन मैं अमित से लगातार सम्पर्क में रहा और मैंने ही उनसे कहा कि जब भी तीसा की वर्कशाॅप या नेशनल कांफ्रेन्स हो तो मुझे जरूर बताएं, मैं भी तीसा से जुड़ना चाहता हूं।

तीसा एक ऐसा मंच है जहां हकलाने वाले व्यक्तियों को खुलकर बोलने की आजादी है। आखिर वह दिन आ ही गया जब मुझे अमित का काॅल आया और उन्होंने मुझे भोपाल में वर्कशाॅप के बारे में बताया। मैंने वर्कशाॅप के लिए पंजीयन करवाया और इंतजार करने लगा कि कब मैं भोपाल जाउं और कब मैं मेरी तरह हकलाने वाले लोगों से खुलकर हकलाकर बिना झिझक और शर्म के बात करूं।

यह मेरी तीसा की पहली वर्कशाॅप थी। मैं सुबह जल्दी ही भोपाल पंहुच चुका था। मैं स्टेशन से लीला लाॅज पहुंचा। वहां दो नए दोस्त मिले जो मेरी तरह हकलाते थे। उनसे मिलकर बड़ी खुशी हुई। हम सुबह 9 बजे स्मृति स्टार होटल के लिए रवाना हुए। हम लोग होटल पर 9.30 बजे पहुंच गए। जब मैं कांफ्रेन्स हाॅल के अन्दर प्रवेश किया तो यह सब मेरे लिए एकदम नया था। वहां मुझे ध्रुव और नूरा दिखे जिनको मैंने पहली बार यूट्यूब पर ही देखा था, लेकिन उस दिन साक्षात् मेरे सामने थे। हाॅल के अन्दर का वातावरण बहुत ही खूबसूरत लगा, मानो मेरा सपना सच हो रहा था। मैं एक ऐसा ही मंच चाहता था जहां मैं खुलकर और बिना किसी डर के लोगों सामने खड़ा होकर बोल सकता था। इससे पहले जब मैं स्कूल या काॅलेज में प्रोजेन्टेशन या अपना परिचय देता था तो मुझे डर और शर्म घेर लेती थी। उस समय मेरी आंखों के सामने अंधेरा सा हो जाता था। मैं कभी भी मंच पर इतने सारे लोगों के सामने बोल नहीं पाता था। इसलिए मैं अपनी हकलाहट की वजह से कुछ ही सेकण्ड बोला पाता था या तो मुझे न बोल पाने के कारण से मंच से उतार दिया जाता था। यही कारण था कि इस तरह की मानसिकता मेरे दिमाग में थी कि मैं कभी भी किसी मंच पर बोल नहीं पाउंगा। और मैं मन ही मन सोचता कि काश, हकलाने वाले लोगों का भी कोई संगठन हो, कोई ग्रुप हो या कोई कम्पनी हो जो केवल हकलाने वाले व्यक्तियों के ही हों। जहां मुझे बोलने का पूरा मौका मिले और यह सपना इस वर्कशाॅप में आकर पूरा हुआ।

वर्कशाॅप में सबसे पहले हम लोगों ने एक-दूसरे को अपना परिचय दिया। फिर विपश्यना के बारे में आए हुए विशेषज्ञों ने जानकारी दी। उनसे हम लोगों ने विपश्यना के बारे में जाना और कुछ देर तक प्रैक्टिस भी किया। इसके बाद कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए बैंगलोर से आए हुए अभिनव सिंह ने हमें एक टास्क दिया। इसमें हमें हमारे ग्रुप के साथी का इंटरव्यू लेना था। यह एक्टिविटी मुझे बहुत पसंद आई। मेरे साथी इंदौर से आए हुए धर्मेन्द्र बने। मैंने उनका इंटरव्यू लिया और हकलाते हुए अपना इंटरव्यू उनको दिया। हाॅल के अन्दर इस तरह का वातावरण देखकर बहुत ही अच्छा लगा रहा था। हमने लंच किया जो कि बहुत ही लजीज और शानदार था। मैं बारी-बारी से वर्कशाॅप में आए सभी साथियों से मिला और बातचीत की। उनके अनुभव को जाना। वहां पर कुछ लोग ऐसे भी थे जिनकी मेरी ही तरह यह पहली वर्कशाॅप थी। सभी से मिलकर मुझे बहुत ही अच्छा लगा।

शाम का वक्त हुआ और हम लोग एक नई रोचक गतिविधि के लिए बाहर निकल पड़े। हमें अनजान लोगों से बात करनी थी। हमें लोगों से होली के बारे में कुछ सवाल पूछने थे और अंत में हकलाहट के बारे में कुछ सामान्य सवाल पूछने थे। इस गतिविधि के लिए मेरे साथी अमित और हर्ष थे। हम बोर्ड आॅफिस चैराहा पर गए और अनजान लोगों से बातचीत की। हकलाहट के बारे में उनकी क्या मानसिकता है, इसके बारे में जाना। सभी का यही कहना था कि हकलाहट एक बीमारी है, जो बच्चों को बचपन में या कभी कभार जन्मजात भी हो सकती है। जो व्यक्ति इस पर हंसता है वह सबसे बड़ा मूर्ख है। इसके बाद हम अपने गतव्य स्थान के लिए बस पर बैठकर निकल पड़े। मैं रात में डिनर करके सो गया।

अगले दिन सुबह जल्दी उठकर हम तीनों राकेश, वरूण और मैं बड़ा तालाब पहुंचे। वहां पर घूमकर वापस स्मृति स्टार होटल गए। वहां पर अब मुझे कोई नया नहीं लग रहा था, क्योंकि मैं सभी से पहले दिन ही परिचित हो चुका था। अभिनव सिंह ने एक बार फिर वर्कशाॅप कुछ स्पीच तकनीक के बारे में बताया, जो संचार करने में बहुत ही लाभदायक साबित होती हैं। मैंने इसका अभ्यास किया और मुझे इसको दैनिक जीवन में अभ्यास करने से लाभ हो रहा है। इसके बाद अमित ने स्वीकार्यता के बारे में बताया कि हम जितना जल्दी हकलाहट को स्वीकार करेंगे उतना ही हमारा संचार करने का नजरिया बदलेगा। हम बिना शर्म और डर के हकलाएंगे तो हम अपनी हकलाहट को सुधार सकते हैं और अपनी बात ठीक ढंग से लोगों तक पहुंचा सकते हैं। साथ ही बोलना ही सबकुछ नहीं होता है, सुनना भी महत्वपूर्ण है। सामने वाले व्यक्ति को हम अगर ठीक ढंग से अपनी समझा नहीं सकते तो हमारा बोलना बेकार है। जीवन में हकलाहट इतना बड़ा मुद्दा नहीं है। कई हकलाने वाले व्यक्ति भी अच्छी नौकरी कर रहे हैं। तो कोई बिजनेस कर रहा है। महत्वपूर्ण हमारा संचार होता है, जो हमें आगे तक लेकर जाता है।

हमने कई एक्टिविटी की इस वर्कशाॅप में। शैलेन्द्र द्वारा डाइंग शीट पर बनाया गया इंद्रधनुष भी मुझे बड़ा अच्छा लगा। एक सेशन ऐसा भी था जिसमें हमें हमारे साथी को फोन लगाकर 15 मिनट तक बात करनी थी। ऐसा इसलिए किया गया ताकि यह जान सकें कि हकलाते हुए हमारे हाव-भाव कैसे रहते हैं। जैसे हमारी आंखें बन्द होती हैं या हमारे हाथ-पैर अचानक ही हिलते-डुलते हैं या हम एकाएक पास में रखी चीजों को उठाने लगते हैं। इस एक्टिविटी में मेरे साथी ध्रुव बने। यह मेरे लिए बड़ी खुशी कि बात थी कि मेरे साथी इतने अनुभवी व्यक्ति बने। ध्रुव ने मेरे सेकेण्डरी सिम्टम्स के बारे में बताकर मुझे सही मार्गदर्शन और सलाह दी। यह पल मेरे लिए प्रेरणादायक था। इसके बाद ग्रुप फोटो हुई और सभी को वर्कशाॅप का सर्टिफिकेट भी वितरित किया गया। लौटने के लिए मेरी ट्रेन  भोपाल स्टेशन से थी इसलिए वर्कशाॅप खत्म होने से थोड़ा पहले ही मुझे वहां से निकलना पड़ा। आखिर में मैं यही कहना चाहूंगा कि हम अपनी हकलाहट को इतना बड़ा हौवा न बनाएं। इससे बेहतर है कि हम अपनी प्रतिभा के बल पर हकलाते हुए आगे बड़ें और अच्छे/बड़े मुकाम हासिल करें।

– सद्दाम हुसैन, उज्जैन, मध्यप्रदेश।
08602567062

Post Author: Amitsingh Kushwaha

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