ओशो ध्यान शिविर: आनन्द का उत्सव

तीसा के साथियों उमेश रावत और राकेश जायसवाल की प्रेरणा से मैं भी ओशों की ओर अग्रसर हुआ। हालांकि मैं ओशो के फेसबुक ग्रुप से काफी समय पहले ही जुड़ा हुआ था और ओशो की एक किताब भी पढ़ा था, लेकिन उस समय कोई खास ध्यान नहीं गया। लगातार 4 महीने तक ओशो के आॅडियो सुनता और कई  वीडियो भी देखा। इसी दौरान मेरे गृह जिला सतना के प्रसिद्ध तीर्थस्थल चित्राकूट में ओशो के 4 दिवसीय ध्यान शिविर के जानकारी मुझे राकेश जायसवाल के माध्यम से मिली। मैंने फटाफट पंजीयन कराया। आखिर 5 अप्रैल 2018 को मैं ओशो अंतर्यात्रा आश्रम चित्राकूट पहुंचा। पहले सोचा था कि कोई बहुत बड़ा और सर्वसुविधायुक्त आश्रम होगा, लेकिन ऐसा नहीं था। यह एक साधारण आश्रम था। पहले दिन शाम को 6.30 बजे ओशो संध्या दर्शन कार्यक्रम हुआ। इस कार्यक्रम के मुखिया स्वामी अशोक भारती जी थे। मुझे मालूम हुआ कि स्वामी अशोक भारती जी ने ओशो के सानिध्य में रहकर कई वर्षों तक कार्य किया। उनके चेहरे के ओज और वाणी से वाकई ओशो की झलक दिखाई दे रही थी। इस शिविर में कई तरह के ध्यान करवाए गए और बीच-बीच में नृत्य भी होता था। खुलकर सबको संगीत की धुन पर नृत्य करने की आजादी थी। सारे गम, सारी चिंताएं भुलाकर सब लोग परमात्मा से साक्षात्कार करने के लिए आए हुए थे। यह एक ऐसा शिविर था जिसमें मुझे खुद को जानने का मौका मिला। अक्सर लोग डांस करने में झिझक महसूस करते हैं, लेकिन यहां हर उम्र के महिला और पुरूष खुलकर डांस कर रहे थे। सभी लोग इन सुंदर पलों को जी लेना चाहते थे। ध्यान शिविर की शुरूआत रोज सुबह 7 बजे से होती थी और रात 8.30 बजे तक विभिन्न गतिविधियां चलती रहती थीं। इसमें ध्यान, डांस, प्रवचन और ओशो के आॅडियो प्रवचन शामिल थे। एक खास बात यहां पर थी। सभी लोग एक-दूसरे को स्वामी जी कहकर पुकारते थे। शिविर में कहा गया था कि आप लोग आपस में बातचीत कम से कम करें और भोजन भी थोड़ा कम ग्रहण करें। यह शिविर आनन्द का एक ऐसा उत्सव था जिसमें लोग खुलकर भागीदारी कर रहे थे। बहुत ही सहजता और आत्मीयता से सभी लोग एक-दूसरे से मिलते थे। आश्रम के पीछे ही प्रसिद्ध मंदाकिनी नदी बहती रहती। 24 घंटे पानी के बहने की मनोहारी छल-छल की आवाज सुनाई देती।शिविर में बताया गया कि आप लोग व्यर्थ समय गंवाने की बजाए अपने आप को विकसित करने में व्यस्त रहें। यानी व्यस्त रहें, मस्त रहें। यहां आकर मैंने जाना कि ओशों के बारे में लोगों का दृष्टिकोण भ्रमपूर्ण है। अक्सर लोग यही मानते हैं कि ओशो यौन स्वतंत्रातता के हिमायती हैं जबकि सच तो यह है कि ओशो प्रेम स्वतंत्रातता के पक्षधर हैं। पता नहीं हम क्यों बिना किसी के बारे में ठीक तरह से जाने अपनी राय बना लेते हैं। ओशो का यह ध्यान शिविर हमें खुद को पहचानने और खुद को सार्थक करने की सीख दे गया।
– अमित 9300939758

Post Author: Amitsingh Kushwaha

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