आज 3 दिसम्बर विश्व विकलांग दिवस के अवसर पर विकलांगजनों की तरफ से मेरे द्वारा लिखी गई एक कविता –
विकलांग नहीं हूं मैं …
कहने को विकलांग हूं मैं
सबकी नजरों में बेचारा और असहाय!
किसी ने पूर्व जन्म का पाप बताया
तो किसी ने प्रकृति को दोषी बनाया!
मेरी बुद्धि को दूसरों से कमतर आंका गया,
नेत्र में ज्योति न होने पर हुआ उपाहित!
खामोशी बन गई लाचारी
शरीर की बनावट को असामान्य कहा गया!
मेरा मान बढ़ाने के लिए
रचे गए ढेरों शब्द
लेकिन न मैं अशक्त हूं,
न ही निःशक्त!
दिव्यांग नहीं सामान्य हूं मैं
मुझे नहीं चाहिए सुविधा और सहायता
दया और सहानुभति भी नहीं
मैं चाहता हूं कि
मुझे सिर्फ एक इंसान समझा जाए
और खुले आसमान में उड़ने की आजादी,
क्योंकि विकलांग नहीं हूं मैं!
– अमित सिंह कुशवाह