हकलाने का डर

हकलाने ने हम में से बहुतो को  लंम्बे समय तक परेशान किया है या अब भी कर रहा है | हम में से कुछ लोगोँ को ये कभी कभी तथा कुछ को निरंतर तकलीफ देता रहता है | TISA (The Indian Stammering Association ) के साथ मेरे पिछले तीन सालोँ में अब मैं यह देख पा रहा हूँ की कम से कम मेरे लिये तो वास्तव में हकलाना नहीं बल्कि हकलाने का डर बड़ी समस्या था | हकलाने के षण तो  तभी थे जब मैं कुछ बोलता था पर हकलाने का डर मुझे हमेसा परेशान करता रहता था | बस मुझे मालूम चला की नेक्स्ट सेमेस्टर में एक नये  अध्यापक आने वाले हें तो मैं पूरे सेमेस्टर और सारी छुटीओं में दिन, रात, खाते, पीते, चलते बैठते बस अपने दिमाग में खोया रहता की हाय आब क्या होगा ? मैं कैसे बोलूँगा ? अगर मैं छुटी मार लूँगा तो मेरी क्लास मिस हो जाएगी | अगर  छुटी मार भी ली तो क्या घर में झूट बोलूँगा ? और विचरोँ की ये आंधी मेरे सारे जीवन को निगल जाती और मुझे पता भी नहीं चलता की दिन और  महीने कैसे बीत गए | जबकि मैं  अपने दीमाग में  बहुत ही बीजी रहता, पर वास्तव में मैं कुछ भी नहीं कर पा रहा  था | न तो मैं पढाई मैं ध्यान दे पाता, न खेल कूद में | दोस्तोँ के साथ हँसी मजाक या बहार जाना तो दूर की बात थी |
अगर मैं अपने हकलाने के डर से आजाद हो जाऊं तो हकलाना मुझे तभी परेशान करेगा जब की मैं बोलूँगा और बाकी समय में चैन
से रह पायूँगा | पर बड़ा सवाल यह है की क्या यह संभव है ? मेरे अनुभव से तो ये संभव है और काफी लोगोँ ने यह किया है, अगर पूरी तरह से नहीं तो कम से कम शुरुआत तो की है | ये कैसे किया जा सकता है ? जवाब है : जान बुझ कर ह -ह- हकला कर | हाँ, आपने सही सुना – जान बुझ कर हहहहकला कर | जब आप थोडा सा खुद से हकलाते हैं तो हकलाना एक अनजान प्रेत की बजाय एक जाना पहचाना दोस्त में तब्दील होने लगता है | यह आपके दोस्त के पालतू  कुत्ते के जैसे बन जाता है जोकी शुरुआत में आप पे भौन्कता है पर जैसे आप अपने दोस्त के घर बार बार जाते हैं तो धीरे धीरे आप और वो पालतू कुता एक दुसरे को पहचाने लग जाते हैं और दोस्त बन जाते हैं | पर हम में से कुछ को अपने दोस्त का सहारा चाईये जो की पहेले अपने पालतू कुते पे हाथ फेर के दिखता है की वास्तव में आप भी कुते को सहला सकते हैं | ऐसे ही हम में से बहुत से लोगोँ को एक ऐसे दोस्त की जरूरत है जो की पहले हमे हकला कर बार बार दिखाए जब तक की हमें विसवास न हो जाये की हकलाना हमें नहीं काटेगा और अगर हम ना भी कर पाए तो भी हमें पूरण रूप से स्वीकार करे |
 क्या आप जान बुझ के हकलाने का जोखिम उठाने की कोशिश कर सकते हैं ? और अगर नहीं, तो क्या आप एक ऐसा दोस्त धुंद सकते हैं जो की आप को ये तब तक कर के दिखाये जब की आप तैयार ना होँ | TISA में ऐसे बहुत से लोग हैं जो की आप के वो दोस्त हो सकते हैं | जरुरत है तो सिर्फ आवाज़ लगाने की | आप हमें email कर सकतें हैं info “at” stammer.in पे |
P.S. : I have tried hard to correct the spelling mistakes but that’s the best I could do with google transliterate. This article was written for and appeared in the latest(April 2012) issue of Samvad

Post Author: Harish Usgaonker

3 thoughts on “हकलाने का डर

    Sachin

    (May 5, 2012 - 2:11 pm)

    Well done JP. If we can accept stammering, we can accept a few spelling mistakes too- and just FOCUS at the message, which is truly relevant in your write up.
    BTW, were you referring to my Kaali and Bhuri, by any chance? They will be thrilled!

    lashdinesh

    (May 5, 2012 - 4:03 pm)

    Kya baat kahi JP,
    Hum toh sun ke ho gaye Happy !! 🙂

    Great post brother..

    Dinesh.

    admin

    (May 5, 2012 - 7:18 pm)

    Bilkul sahi kaha Jp sir aapne, hum jab tak apne andar ke hakle ko dost nahi banaenge, tab tak hum kabhi nahi tikh honge.
    Jaisa ki scince me -ve aur -ve repel karta hai waisa hai stuttering stuttering ko hi maar sakta hai.
    Ye bohut mushkil hai, par impossible nahi.
    Inspiring Post

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