मैं हर साल तीसा द्वारा आयोजित होने वाली नेशनल कान्फ्रेन्स का बड़ी ही बेसब्री से इंतजार करता हूं। इस बार 2020 में भी मुझे उम्मीद थी कि किसी नए शहर में जाने का, नए लोगों से मिलने और हकलाहट के कुछ अनछुए पहलुओं को समझने का मौका मिलेगा। मार्च 2020 में कोरोना महामारी के कारण पूरे भारत में तालाबंदी कर दी गई यानी सबकुछ बंद। फिर भी मुझे उम्मीद थी कि शायद 2-3 महीने में सबकुछ ठीक हो जाएगा और नेशनल कान्फ्रेन्स एक-दो महीने आगे हो सकती है।
धीरे-धीरे कोरोना का विकराल रूप हम सबके सामने आता गया और यह निश्चित हो गया कि अब नेशनल कान्फ्रेन्स कर पाना संभव नहीं हो पाएगा। इसके बाद तीसा की कोर टीम एवं अन्य वरिष्ठ साथियों ने यह निर्णय लिया कि नेशनल कान्फ्रेन्स वर्जुअल मोड पर आयोजित की जाए। तारीख तय की गई 1 से 5 अक्टूबर 2020 की। मैं भी कान्फ्रेन्स की आयोजन समिति का सदस्य रहा।
वैसे तो मैं अपने कार्यक्षेत्र से सम्बंधित वेबिनार में हर दिन सहभागिता करता हूं, लेकिन इस नेशनल कान्फ्रेन्स में मुझे कई बार बोलना भी था। मेरा एक पुराना डर फिर से सामने आने लगा, पता नहीं वीडियो कालिंग में मेरा चेहरा कैसा दिखेगा, लोग क्या सोचेंगे। मेरा चेहरा दूसरे लोगों की तुलना में उतना अच्छा नहीं है, आदि-आदि। कान्फ्रेन्स में बोलने की बात सोचकर ही मैं घबरा जाता था।
तीसा के सभी साथियों की अथक मेहनत के बाद वह दिन आ ही गया। 1 अक्टूबर को भी मैं बहुत चिन्ता में था। मैंने व्हाट्सएप ग्रुप में मैसेज किया कि क्या मैं कान्फ्रेन्स के दौरान अपना वीडियो बन्द करके रख सकता हूं? एक वरिष्ठ साथी का जवाब आया कि हां, आप ऐसा कर सकते हैं। अब मुझे थोड़ा राहत मिली, लेकिन मेरे दिल की धड़कने तेजी से बढ़ती जा रही थीं। नेशनल कान्फ्रेन्स की शुरूआत में हिन्दी में स्वागत भाषण मुझे ही देना था। जैसे-जैसे मेरे बोलने का समय नजदीक आता जा रहा था मेरे दिल की धड़कनें तेजी होती जा रही थीं। आखिर पहले दिन 1 अक्टूबर को प्रातः 9.15 पर मेरा नाम पुकारा गया। मैंने अपना वीडियो बंद करके और अनम्यूट होकर किसी प्रकार अपना स्वागत भाषण पूरा किया।
यह कान्फ्रेन्स प्रातः 7 बजे से रात 9 बजे तक लगातार चलती रही, बीच में दोपहर के भोजन के लिए एक घण्टे का ब्रेक होता था। इस दौरान मुझे अपने आफिस भी जाना पड़ता था इसलिए जब भी समय मिलता मैं कान्फ्रेन्स में शामिल होकर लोगों की बात सुनता था।
अगले दिन 2 अक्टूबर को मैंने हिन्दी में अपना स्वागत भाषण तैयार कर लिया और थोड़ा आत्मविश्वास आ गया था कि अब कुछ बोल सकता हूं। दूसरे दिन भी मैंने स्वागत भाषण दिया, लेकिन आज भी वीडियो बन्द करके। इस दिन तीसा के वरिष्ठ सदस्य श्री मणिमारण जी का परिचय मैंने दिया और उन्हें अगले वक्ता को आमंत्रित करने के लिए अनुरोध किया। उनका साफ कहना था कि हकलाहट आपकी जिन्दगी का एक हिस्सा है और आप इससे नकारकर और दूर भागकर सफल नहीं हो सकते। आप इसे स्वीकार कर अपने जीवन में आगे बढ़ सकते हैं। निश्चित ही उनके विचार और अनुभव हम सबके लिए बहुत ही प्रेरणादायी रहे और तीसा के मूलभूत सिद्धान्तों – स्वीकार्यता, स्वयं सहायता और स्वैच्छिक सेवा, का समर्थन भी करते हुए महसूस हुए।
अब बारी आती है 3 अक्टूबर भी। मेरा स्वागत भाषण तैयार था। मैं अपने भाषणों में तीसा के द्वारा पूर्व में आयोजित नेशनल कान्फ्रेन्स का जिक्र भी करता था और तीसा की मूलभूत भावना से नए सदस्यों को परिचित कराने का प्रयास भी। पहले सत्र में मेरा नाम फिर से पुकारा गया। मैं जैसे ही बोलने के लिए तैयार हुआ एक साथी ने कहा कि कृपया अपना वीडियो चालू करिए ताकि हम लोग भी आपको देख पाएं। मैंने कुछ सोचा नहीं और अपना वीडियो ऑन कर दिया। आज की स्पीच में थोड़ा आत्मविश्वास के साथ दे पाया, और यह महसूस हुआ कि मेरा चेहरा इतना डरावना नहीं है कि मुझे अपना वीडियो बन्द करके कान्फ्रेन्स में शामिल होना पड़े, जब आवश्यकता हो तब वीडियो चालू करने में कोई बुराई नहीं है। अपने स्वागत भाषण के तुरंत बाद मैं अपने आफिस चला गया, जो कि मेरे घर से 30 किलोमीटर दूर है और मैं यह सफर बस से करता हूं।
आफिस में कुछ जरूरी काम निपटाने के बाद तीसा के वरिष्ठ सदस्य और मेरे अभिन्न मित्र श्री प्रमेन्द्र सिंह बुन्देला से व्हाट्सएप पर इस कान्फ्रेन्स के बारे में चर्चा चल रही थी। इस दौरान उन्होंने कहा कि क्या हम वीडियो काॅल पर आ सकते हैं? मैंने कहा- बिल्कुल। इसके बाद हमने वीडियो काॅल पर लगभग 30 मिनट तक बात की। प्रमेन्द्र इस समय फ्रांस में निवासरत हैं। उन्होंने फ्रांस की जीवनशैली के बारे में बताया और वीडियो काॅल पर अपना घर और विशेषकर किचन दिखाया, उन्होंने बताया कि कैसे वे भोजन पकाते हैं। साथ ही प्रमेन्द्र ने बताया कि आजकल वे फ्रेन्च भाषा सीख रहे हैं, क्योंकि वहां इंग्लिश में बहुत कम लोग ही बात करते हैं, फ्रेन्च भाषा का चलन है और फ्रांस में रहकर नौकरी करने के लिए फ्रेन्च आना बहुत जरूरी है। यह एक सुखद वीडियो काॅल रही और मेरा एक डर खत्म हो गया कि पता नहीं मैं वीडियो काॅल में कैसा दिखाई देता हूं, लोग क्या सोचेंगे मुझे देखकर?
इसके बाद दोपहर 2 से 4 बजे तक स्वयं सहायता समूह के अपने अनुभव साझा करने के लिए एक सत्र रखा गया था। इस सत्र में मानसी सक्सेना, जितेन्द्रर गुप्ता, जस्सी जी और मुझे यानी हम चार लोगों को अपने विचार रखने थे। मैंने अपनी स्पीच के लिए थोड़ा तैयारी कर ली थी। पेपर में कुछ बिन्दु नोट कर लिए थे। अब मैं आफिस में किसी ऐसी जगह की तलाश में था जहां पर मैं एकान्त में बैठकर इस ऑनलाइन सत्र में भाग ले पाऊं और बिना किसी व्यवधान के बोल सकूँ।
2 बजे सत्र की शुरूआत होने पर मानसी सक्सेना ने अपने अनुभव साझा किए। बहुत ही प्रेरणादायक स्पीच थी उनकी। इसके बाद मेरी बारी आई। मैंने भी शुरूआत की और वीडियो चालू करके, क्योंकि अब आत्मविश्वास आ गया था कि वीडियो चालू करने में कोई बुराई नहीं है। मैंने अपने अनुभव साझा किए और हकलाहट को लेकर मेरी जिन्दगी में अब तक के संघर्ष और उससे बाहर आने के लिए किए गए उपाय और तीसा के स्वयं सहायता सहायता समूह ने मेरी इस यात्रा में कैसे मदद की, उन सब पर मैंने विस्तार से चर्चा की।
4 अक्टूबर को मैं और भी अधिक आत्मविश्वास महसूस कर रहा था। वीडियो चालू करके अपना स्वागत भाषण दिया। अब मैं जब भी मुझे जरूरत महसूस होती अपना वीडियो आन कर देता था। इस दिन शाम को 7 से 9 बजे के सत्र में टेलेन्ट शो का आयोजन किया गया था। इसमें शामिल होकर मैंने अपनी स्वचरित एक कहानी “बदलाव” सुनाई। यह काल्पनिक कहानी कालेज में पढ़ने वाली एक लड़की के हकलाहट के संघर्ष और सही दिशा में आगे बढ़ने की उसकी कोशिशों पर आधारित थी। अपने जीवन में पहली बार मैंने किसी को कहानी सुनाया था। अब तक तो मैं यही मानता था कि मैं हकलाता हूं, लिख तो सकता हूं, लेकिन बोलकर सुनाना मेरे बस की बात नहीं है। इस सत्र ने मेरे इस मिथक (गहरा विश्वास या आम धारणा) तोड़ दिया, कि मैं कविता या कहानी का वाचन नहीं कर सकता। मैं कर सकता हूं और बार-बार कर सकता हूं। हमेशा कर सकता हूं।
आखिरी दिन 5 अक्टूबर को तीसा के नेशनल कोआर्डिनेटर श्री हरीश उसगांवकर और मुझे एक साझा सत्र में ‘‘डाक्यूमेंटिंग योरसेल्फ – व्हाई’’ (अपने बारे में क्यों लिखें?) विषय पर अपने अनुभव शेयर करने थे। अब तक तो मैं बोलने के लिए पूरी तरह आत्मविश्वास में आ गया था। मेरा नाम पुकारा गया तो मैंने मुस्कुराकर और हाथ जोड़कर सभी साथियों का अभिवादन किया। इसके बाद मैंने बताया कि तीसा में जुड़ने के बाद लगातार 10 वर्षों से मैं अपने विचार खुलकर लिख रहा हूं और ब्लाग पर साझा कर रहा हूं। इस दौरान मैंने अपने जीवन के कठिन और चुनौतीपूर्ण समय और लेखन ने मेरी इससे बाहर में बहुत मदद की, इस पर अपने अनुभव साझा किए। इस सत्र में मैंने 40 मिनट तक अपनी स्पीच दी। इसके बाद हरीश जी ने अपने अनुभव साझा किए।
इस तरह यह 5 दिन की नेशनल कान्फ्रेन्स बहुत ही शानदार अनुभवों के साथ सम्पन्न हुई। कान्फ्रेन्स के लिए कठिन परिश्रम करने वाले साथी साथियों को धन्यवाद और आभार।
कोरोना काल के दौरान किसी ने कहा था- “आपदा को अवसर में बदलो।” तीसा ने इस नेशनल कान्फ्रेन्स के माध्यम से यही किया है। इस दसवीं नेशनल कान्फ्रेन्स ने स्वयं सहायता को एक क्रांतिकारी माडल के रूप में प्रस्तुत किया है। नेशनल कान्फ्रेन्स एक ऐसा मंच है जो हकलाहट की विविधता को खुले मन से स्वीकार करने और कुशल संचारकर्ता की ओर आगे बढ़ने के लिए किए जा रहे उपायों को बढ़ावा देता है। तीसा के कार्यक्रमों में जुड़ने के बाद हकलाने वाले साथी यही संदेश दे रहे हैं कि हकलाना एक बाधा या जीवन के लिए रूकावट नहीं है। अब हकलाना हमारे लिए नई संभावनाओं के द्वार खोलता है और समाज में मजबूती के साथ खड़ा होने की ताकत देता है।
~ अमित सिंह कुशवाहा,
सतना, मध्यप्रदेश
9300939758
5 thoughts on “NC 2020 : मिथक को तोड़ते स्वयं सहायता के प्रयोग”
Vikash jha
(October 6, 2020 - 9:27 am)आपका अनुभव पढ़ कर काफी सकारात्मकता महसूस हुई , आपने अपने नेशनल कांफ्रेंस का अनुभव काफी अच्छा साझा किया,,, thank u sharing your experience
Dr Satyendra
(October 6, 2020 - 1:35 pm)Congrats! Bahut khub!
Nikhil
(October 10, 2020 - 12:10 am)Amazing.. bhot hi badiya dhang se apne anubhav ko aapne.. shabdo me utaara hai.. Great blog !!
Naresh Parihar
(October 11, 2020 - 2:38 pm)Excellent wrote up!
Sourab saini
(April 29, 2021 - 11:31 am)Sir muja stammering ki bahut problem hai