ज़िन्दगी मे कई यादगार दिन आते है, जैसे किसी दिन कुछ ऐसा मिल जाए जिसकी कल्पना हमने सपने में भी ना की हो, या कुछ ऐसा मिल जाए जिसकी कल्पना एक लम्बे समय से की हो, कभी कुछ पा के एक दिन यादगार बन जाता है, तो कभी कुछ खोके एक दिन यादगार बन जाता है. बात है लगभग 3 साल पहले की, गर्मियों का मौसम था शायद, और साथ ही साथ, एक बड़ी बीमारी और उसका एक लम्बा सा इलाज,मेरा इंतज़ार कर रहे थे, शरीर में पहले जैसी ताकत नहीं थी, थोड़ा भी चलता तो थक जाता था, दिन ऐसे ही गुजर रहे थे की, इंटरनेट पर एक वीडियो देखी, कोई कविता थी शायद, मुझे अच्छी लगी, सोचा के, जब ये एक शख्स किसी platform पर कुछ कह सकता है, और बदले में तारीफे और तालिया पा सकता है, तो मैं क्यों नहीं?
एक कविता जो हाल ही में, जो मेरे आस पास हो रहा था, उसी को देख के लिखी थी, सोचा, की प्यार मोहब्त पर तो नहीं है, शायद सब इसे पसंद ना करे, पर कुछ लोगो को तो जरूर अच्छी लगेगी, बारिश में कुछ घंटे भीगने को ना मिले, ना सही, पर हाँ, कुछ मिनट तो भीग ही लूंगा, भीगना ज्यादा महत्वपूर्ण है, तो इस सिलसिले में , एक Poetry House को संपर्क किया गया, और जैसा जैसा उन्होंने बताया, वैसा वैसा किया मैनें, कुछ दिनों बाद, एक email आया जिसमे लिखा था, की आप इस दिन आ सकते है, पढ़ के काफी अच्छा लगा, थोड़ी देर तक खुश रहा, पर अचानक एक बात याद आई , रवि निगम तू कविता तो बोल लेगा, लेकिन शुरुआत मे जो बोलना होता है, वो कैसे बोलेगा, हकला गया तो, 100 लोगो के सामने तेरा मजाक बन जाएगा.
एक मन हुआ के, छोड़ दे इसे, बाद में देखा जाएगा, फिर दूसरा मन हुआ के, तू जा रवि, जो होगा देखा जाएगा, कुछ दिनों तक “मन” इसी खींचा तानी मे लगा रहा, तारीख एक दम नजदीक आ गयी थी, जाने का पूरा इरादा तो नहीं बन पाया, पर हाँ ,अपनी कविता को रोजाना कई कई बार दोहराने से, उसकी लय, मैंने अच्छी तरह अपने हिसाब से पकड़ ली थी,आख़िरकार वो दिन आ ही गया,सुबह उठने की कोशिश की तो,आँखे खोल ना सका, थोड़ी देर बाद एहसास हुआ के बुखार है और झुकाम भी, बीमारी धीरे धीरे अपना काम बड़ी ईमानदारी से कर रही थी, उसी का असर था, शायद थोड़ा बहोत डर भी था, कमजोरी शरीर के साथ साथ, मन की भी थी, बिस्तर पर लेटे लेटे काफी देर बीत गयी, फिर एक बात मन मे आई, के जाके तो देख, बेसक से चुपके से खिसक जाना, बहाना बना देना, मेरी तबियत ख़राब है, चाहो तो छू के देख लो.
बिस्तर छोड़ा, तैआर हुआ और निकल पड़ा, फिर रास्ते में जाते जाते खुद से फैसला कर लिया, सुनाऊंगा जरूर ,चाहे कुछ मिले या ना मिले, वहा पहुचते ही अच्छा लगने लगा, एक के बाद एक सब आ रहे थे, गजब गजब performances दे रहे थे, उनका हौसला बढ़ाते बढ़ाते कब मेरा हौसला बढ़ गया पता नहीं चला, शो को होस्ट करने वाले ने मेरा नाम पुकारा, एक ख्याल प्रकाश की गति से भी तेज़ मेरे जहन में आया, रवि तेरा टॉपिक तो प्यार पे, या फैमिली पे है नहीं, क्योकि ज्यादातर लोगो ने इन्ही पे बोला था ,तो कैसे होगा फिर, उसी ख्याल को, एक और ख्याल ने पीछे धकलते हुए बोला, अरे भाई, सुबह तू उठ भी नहीं रहा था, और अभी भी तप रहा है, फिर भी आ गया ना, चल मुस्कुरा और बोल दे, झूट नहीं बोलूंगा, थोड़ा हकलाया था, पर जैसे जैसे बोलता गया तालिया बजती गयी, और मैं उस महफ़िल का बेस्ट परफॉर्मर बन गया, शो के आखिर में, लोगो ने काफी सारी बाते छोटी छोटी पर्ची पे लिख के दी थी ,कहा के इन्हे घर खोलना, जो बातें मैं सोच के भी नहीं गया था. वो बाते लिखी उन्होंने। बाद में कुछ दिनों बाद मुझे tuberculous हुआ,जिसका इलाज़ थोड़ा सा लम्बा चला,और मैं ठीक भी हुआ,लेकिन उस दिन मुझे क्या मिला और क्या नहीं ये साफ़ साफ़ तो नहीं पता, पर शायद मुझे लगता है की, मैंने उस दिन थोड़ा डर खोया और थोड़ा आत्मविशास पाया।।।।।। तो ऐसे यह दिन मेरे “Memorable real life experiences” मे से एक बना ////////////////
1 thought on ““कुछ खोया कुछ पाया””
Satyendra Srivastava
(January 2, 2022 - 6:19 pm)Beautiful incident! Courage is the only difference between success and failure.. And btw, you do recite poems very well…