बैंगलोर स्वयं सहायता समूह की एक रोचक बैठक

तीसा के बैंगलोर स्वयं सहायता समूह की एक बैठक का आयोजन किया गया। बैठक में मानसी, भरत, प्रमोद, राजकुमार, तरूणीधर और अनिमेष शामिल हुए। बैठक सुबह 8.15 बजे शुरू हुई। शुरूआत में 3 अभ्यास किए गए, जो हर बैठक में किए जाते हैं।

1. हल्की शुरूआती कसरत- हम सभी सदस्यों ने कुछ छोटे शारीरिक अभ्यास किए, जिससे शरीर को अन्य गतिविधियों के लिए तैयार किया जा सके। इन अभ्यासों के द्वारा शरीर के अंगों और जोड़ों को सक्रिय बनाए रखने में मदद मिलती है। व्यस्त दिनचर्या में पैदा हुई थकावट को दूर करने का यह एक छोटा सा प्रयास होता है। योग प्रशिक्षक तरूणीधर हर बार इस तरह के व्यायाम करने में हमारी सहायता करते हैं। एक अभिनेता के लिए स्वस्थ और स्फूर्तिदायक शरीर बहुत महत्वपूर्ण है। यदि शरीर पूरी तरह से तैयार या सक्रिय नहीं होगा, तो इसका नकारात्मक प्रभाव अभिनय पर पड़ेगा।

2. ध्वनि अभ्यास- आज हमने यह जानने की कोशिश किया कि डायफ्राम (छाती के नीचे वाला भाग) से किस प्रकार सांस ली जाती है। सांस कैसे अंदर और बाहर होती है। सभी ने इस अभ्यास को करने का प्रयास किया। कुछ लोगों के लिए यह एकदम नया अनुभव था, तो कुछ साथी इस अभ्यास को पहले से जानते थे। अभ्यास में सांस बाहर निकालते समय hhhh की ध्वनि बाहर आती है। साथ ही hhh की ध्वनि के साथ स्वर का उच्चारण करना शुरू किया। जो इस तरह था- “hhhhaaaaaaaaaaaaaa”, “hhhheeeeeeeee”… इस प्रकार 4 बार यह अभ्यास दोहराया गया।

3. खेल- हम लोगों ने एक खेल भी खेला। खेल का नाम है- जिप, जेप, जोप्प। खेल के बारे में अधिक जानने के लिए आप इंटरनेट पर खोज सकते हैं। यह मजेदार खेल है। मैं पहला व्यक्ति था जिसने खेल के दौरान अपना ध्यान खो दिया और खेल से बाहर होना पड़ा। इस खेल का अनुभव हम सबके लिए बहुत अच्छा रहा।

अब हम सबने कल सौंपे गए कार्य पर गतिविधि करने का फैसला किया। सभी लोगों से यह कार्य पूर्ण करके आने लिए कहा गया था-

1. लघुकथा यायती पढ़कर आना।
2. अभिनय करने के लिए कुछ पंक्तियां याद करके आना। यायती (सभी लड़के) और शर्मिष्ठा (मानसी के द्वारा)
3. याद की गई पंक्तियां सुनाना, लेकिन कोई अर्थपूर्ण और काल्पनिक परिस्थिति निर्मित करके।
सभी की सुविधा के लिए हम फिर से यायती की कहानी पर वापस लौटे। ययाती

साथ ही, किसी को भी यहां साफतौर पर नहीं समझ में आ रहा था कि वास्तव में करना क्या है? इसलिए अपनी पंक्तियों को दोहराने और याद करने के लिए सभी को 5 मिनट का समय दिया गया। इसके बाद सदस्यों ने आकर अर्थपूर्ण और काल्पनिक हालातों का निर्माण करके नाटक खेला। जिन साथियों ने यह प्रयास किया उनकी प्रतिक्रिया काफी अच्छी थी, उन्होंने कुछ सीखा। वहीं कुछ लोगों ने इस गतिविधि में भाग नहीं लिया। उन्हें तैयारी करने के लिए अगले हफ्ते तक समय की जरूरत थी। कुल मिलाकर मुझे यकीन है कि यह एक अच्छा अनुभव रहा। अगर सही तरह से इस गतिविधि का अभ्यास किया तो नाटक के मूलपाठ और मूलभावना को समझने में मदद मिलेगी। यह अभ्यास अगली बैठक में फिर से दोहराया जाएगा।

इसके बाद हमने दोहराने का अभ्यास किया। “दोहराव” एक ऐसा अभ्यास है जो एक अभिनेता को अंदर से संवेदनशील बनाता है, जिससे वह अपने अभिनय को अंदर से महसूस करते हुए बेहतर तरीके से अभिनय कर पाता है। अच्छा और सच्चा अभिनय कर पाने में समर्थ होता है। यह अभ्यास बहुत आसान है। यहां हमें उस वाक्य को दोहराना होता है, जो सामने वाले व्यक्ति बोलता है। मैं यह अभ्यास सबके साथ करता हूं। हर बार मैं किसी व्यक्ति के बारे में कोई राय व्यक्त करता हूं और वह व्यक्ति उसे दोहराता है, लेकिन एक सच के साथ। जैसे-

मैंने कहा- मुझे तुम्हारी टी-शर्ट अच्छी लगी।
तरूण ने कहा- तुम्हें मेरी टी शर्ट अच्छी लगी।

तो यह अभ्यास तब तक हम कर सकते हैं, जब तक हमारे पास बोलने के लिए पर्याप्त जानकारी एकत्रित हो। यानी कहने के लिए कुछ न कुछ हो। हम सभी ने एक-दूसरे के साथ इसका अभ्यास किया।

बैठक समाप्त होने से पहलीे हमने एक और रोचक गतिविधि की। अस्पष्ट उच्चारण या अटकने पर अपनी भाव भंगिमा को समझने का प्रयास। अस्पष्ट उच्चारण का यह अभ्यास अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने में मदद करता है। ना कि वाक्य या शब्द की ओर ध्यान देने पर। यह अभ्यास भी बहुत अच्छी तरह से हुआ। लेकिन सभी को थोड़ा और खुलने की जरूरत महसूस हुई। हममें से कुछ लोग शर्मीले स्वभाव के होते हैं, जो अपनी मानसिक कैद से बाहर नहीं आ पाते। उन्हें इसके लिए कुछ समय और अभ्यास की जरूरत होती है।
इस प्रकार यह रोचक और आनन्दपूर्ण बैठक सम्पन्न हुई।

– अनिमेष, बैंगलोर

मूल इंग्लिश पाठ

Post Author: Amitsingh Kushwaha

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