रूकावट के लिए खेद नहीं है!


आपको किसी से किसी भी प्रकार की प्रतिस्पर्धा की आवश्यकता नहीं है। आप स्वयं जैसे हैं, बिल्कुल सही हैं। बस खुद को स्वीकार करना चाहिए। – ओशो

प्रसिद्ध दार्शनिक ओशो के ये विचार आज भी हम सबके लिए प्रासंगिक और प्रेरणादायी हैं। गुजरे जमाने में टीवी चैनल दूरदर्शन पर कभी-कभार यह संदेश प्रसारित होता था- “रूकावट के लिए खेद है।” समय के साथ-साथ नई तकनीक का विकास होता गया, और आज दूरदर्शन से यह संदेश गायब हो गया है।

अगर हम बात हकलाने की करें तो जीवन के कई वर्ष इसी उधेड़बुन में बिता देते हैं- लोग क्या कहेंगे? लोग क्या सोचेंगे? पता नहीं जब मैं हकालाउंगा तो लोगों की प्रतिक्रिया क्या होगी? दुनियाभर की चिंता करते हुए हकलाने वाला व्यक्ति खुद को भुला देता है। वह खुद को जैसा है, उसी रूप में स्वीकार ही नहीं कर पाता।

सौभाग्य से स्वीकार्यता ने मुझ जैसे कई हकलाने वाले साथियों के जीवन में उजाला किया है। एक नई दिशा दी है। हकलाहट पर काम करने और सालों तक धाराप्रवाह बोलने की चाह में इधर-उधर भटकने के बाद समझ में आया कि हकलाहट का इलाज तो खुद हम ही कर सकते हैं। सच कहें तो हकलाहट से छुटकारा पाने की बजाय अगर हम हकलाहट से दोस्ती कर लें तो राह बहुत आसान हो जाएगी। आज जितना जल्दी हकलाहट को दिल से स्वीकार करना शुरू करेंगे, मुश्किलें खुद ब खुद हल होती दिखाई देंगीं।

स्वीकार्यता के मामले में सबसे बड़ी बाधा है- हकलाहट का डर, शर्मिदंगी और बोलने की झिझक। इन सबका एक ही हल है- हकलाहट को लेकर मन में बैठी अपराधबोध की भावना को बाहर निकालना। हकलाना कोई जुर्म नहीं और अपनी रूकावट पर हमें किसी से खेद व्यक्त करने की जरूरत नहीं।

जिस प्रकार लोगों को धाराप्रवाह बोलने का अधिकार है, ठीक उसी तरह हमें खुलकर हकलाकर बोलने का। याद रखिए, आपको, आपके बोलने के अधिकार से कोई वंचित नहीं कर सकता। बस थोड़ा हिम्मत जुटानी होती। लोगों के सामने खुलकर हकलाहट को स्वीकार करने और बोलने के लिए सामने आना होगा। फिर आप खुद महसूस करेंगे कि यह सब करना बहुत आसान था।

सम्पर्क: 09300939758

Post Author: Amitsingh Kushwaha

2 thoughts on “रूकावट के लिए खेद नहीं है!

    Sachin

    (January 27, 2017 - 7:27 pm)

    बहुत सही ! संविधान हमें सैकड़ों अधिकार देता है – क्या उसमे हकलाने का अधिकार शामिल नहीं? क्या हकलाना कोई अनैतिक या असामाजिक क्रिया है ?
    बस हमें ये सुनिश्चित करना है की सामने वाला हमारी बात भली प्रकार समझ जाए.. यानी हमें फ़िक्र “संचार” की होनी चाहिए – ना कि हकलाने की.. ठीक है ना, पंचों ?

    akshay rawal

    (January 27, 2017 - 7:49 pm)

    सचिन सर हंड्रेड परसेंट एग्री विथ उ सर।।लाइफ में बहुत कुछ है।हकलाना तो सिर्फ एक इततु सा हिस्सा है बस

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