हकलाहट के नए आयाम

द इण्डियन स्टैमरिंग एसोसिएशन तीसा से जुड़ने के बाद मैंने एक बहुत बड़ा बदलाव अपने अंदर पाया। अक्सर मैं सोचा करता था- मैं अभागा हूं, जो इतना अधिक हकलाता हूं। शायद ही दुनिया में कोई मेरे जैसा व्यक्ति कोई और होगा। मेरे आसपास कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है, जो मेरी समस्या को समझता हो। इस तरह के विचार लम्बे समय तक मुझे परेशान करते रहे। निराशा में डुबोते रहे।

तीसा द्वारा आयोजित कार्यशालाओं और राष्टीय सम्मेलनों में शमिल होकर मैंने हकलाहट के संबंध में बिल्कुल नए तरह के दृष्टिकोण को विकसित होते हुए पाया। मैं यह दावा नहीं करता कि तीसा में आकर मेरा हकलाना ठीक हो गया है या मैंने धाराप्रवाह बोलना सीख लिया है अथवा अब मेरी हकलाहट क्योर हो गई है। मैं जैसा पहले था, वैसा आज भी हूं। मेरे आसपास जैसा समाज पहले था, वैसा आज भी है। फिर ऐसा कुछ नया मेरे साथ घटित हुआ कि अब मुझे हकलाना सहज, सरल लगने लगा।

स्वीकार्यता- तीसा में आकर इस नई अवधारणा के बारे में मैंने जाना और समझा। मैं तो कई सालों तक यही सोचता रहा कि पहले किसी अच्छे या कहिए महंगे स्पीच थैरेपिस्ट के पास जाकर हकलाहट को क्योर कर लूं, उसके बाद घर से बाहर निकलकर लोगों के सामने धाराप्रवाह बोलूंगा। मेरे अंदर हकलाहट की स्वीकार्यता जितनी गहरी होती गई, संघर्ष खत्म होता गया।

हकलाहट को बाहर लाना- तीसा में हकलाहट को बाहर लाने यानी खुलकर हकलाने पर जोर दिया जाता है। सालों से जिस हकलाहट को छिपाने की कला में माहिर हो जाने के बाद ऐसा करना मुश्किल मालुम होता था। लेकिन जब खुलकर हकलाना शुरू किया तो राह आसान होती चली गई। लोगों को अपनी हकलाहट के विषय में बताना और हकलाहट के बारे में उनकी जानकारी को जानना- इन दोनों बातों ने एक सकारात्मक जीवन को जन्म दिया।

सच का सामना- हकलाना भी बोलने का एक नया तरीका है, यह जानकर बदलाव की शुरूआत हुई। अब मुझे समझ में आ गया था कि धाराप्रवाह बोलने की चाह में भटकना कोई समझदारी भरा कदम नहीं हो सकता। जीवन की इस विविधता को अगर सहजता से स्वीकार कर लिया जाए, तो सभी चीजें बहुत आसान हो जाएंगी।

मेरी हकलाहट का दोषी- हर हकलाने वाले की तरह मैं भी अपने हकलाने के लिए अपने पिता को जिम्मेदार मानता रहा, कई सालों तक। बाद में समझ में आया कि मेरे हकलाने के लिए मेरे पिता जिम्मेदार नहीं थे। साथ ही समाज का कोई भी व्यक्ति मेरे हकलाने के लिए जिम्मेदार नहीं है। और मैं खुद भी अपने हकलाने के लिए उत्तरदायी नहीं हूं। अगर मैं हकलाता भी हूं तो मेरा हकलाना कोई दोष, बीमारी या कमी नहीं है। मेरा हकलाना मेरी जिन्दगी का एक अहम हिस्सा है।

संचार/संप्रेषण के नए आयाम- मैं सोचता था कि धाराप्रवाह बोलना ही कुशल संप्रेषण का गुण है, लेकिन यह सच नहीं था। तीसा में संचार के कई नए आयामों का प्रमाणिक एवं व्यवहारिक अनुभव मिला। जैसे- ध्यान से सुनना, दूसरे व्यक्ति को अपनी बात कहने का मौका देना, किसी को बिना मांगे सलाह नहीं देना और अपनी बारी आने पर ही बोलना आदि। ये संचार के ऐसे गुण हैं, जिन पर धाराप्रवाह बोलने वाले लोग तक ध्यान नहीं देते, लेकिन ये सब कुशल संचार या संवाद के लिए अनिवार्य अंग हैं।

स्वयं सहायता- मुझे समझ में आया कि दुनिया में कोई भी दूसरा ऐसा व्यक्ति नहीं है जो मेरा हकलाना ठीक कर सके, मेरी हकलाहट को क्योर कर सके। अब तो महसूस होता है कि अपनी हकलाहट को क्योर करने की जरूरत भी क्या है। एक मैं ही ऐसा व्यक्ति हूं जो खुद कोशिश करके अपने संचार को बेहतर बना सकता हूं। यानी अपनी सहायता खुद करना।

कार्यक्षमता महत्वपूर्ण है- अपने जीवन में कई छोटी-बड़ी नौकरियां करने पर मैंने पाया कि एम्पलाॅयर के लिए हमारा हकलाना महत्वपूर्ण नहीं है। एम्पलाॅयर/कम्पनी के लिए हम कार्य कितना अधिक दक्षता के साथ कर सकते हैं, हम उनके लिए कितना उपयोगी साबित हो सकते हैं, यह अधिक महत्वपूर्ण है। हालांकि शुरूआत में एम्पलाॅयर हकलाने वाले लोगों को जाॅब देने में थोड़ा संकोच करते हैं, लेकिन बाद में हकलाने वाले कर्मचारी अपनी योग्यता के बल पर विश्वासपात्र साबित हो जाते हैं। कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां ऐसे ही कर्मचारियों को सौंपी जाती हैं, हर क्षेत्र में।

लोग सहयोगी हैं- जब मैंने लोगों से हकलाहट के बारे में बातचीत करना शुरू किया, लोगों को बताया कि मैं हकलाता हूं, तो लोगों की प्रतिक्रिया बहुत ही सकारात्मक एवं सहयोगपूर्ण थी। इसने मेरे मन की इस गलत धारणा को समाप्त कर दिया कि लोग हकलाने वालों को हतोत्साहित करते हैं, उनका मजाक उड़ाते हैं। तीसा की कार्यशालाओं में अनजान लोगों का साक्षात्कार लेने की गतिविधि में जिन-जिन साथियों ने सहभागिता की है, सभी ने यह पाया कि समाज भी हकलाने वाले लोगों की सहायता करना चाहता है, लेकिन इसके लिए उन्हें कम से कम यह तो पता होना चाहिए कि सामने वाला व्यक्ति हकलाता है। इसके लिए हकलाने वाले व्यक्ति को खुलकर सामने आने की जरूरत होती है।

धाराप्रवाहिता बनाम हकलाहट- अब मैंने जाना कि कुशल संचार के लिए धाराप्रवाह बोलना कतई आवश्यक नहीं है। हम सब हकलाते हुए भी एक कुशल संचारक बन सकते हैं। सिर्फ धाराप्रवाह बोलना ही संचार के लिए काफी नहीं है। अक्सर कई लोग धाराप्रवाह बोलकर भी सही या सफल संचार नहीं कर पाते हैं। इसलिए धाराप्रवाह बोलने की चाह में खुद को कष्ट पहुंचाना, अपना समय या धन बर्बाद करना समझदारी नहीं है। सबसे आसान रास्ता है- इस विविधिता को सहजता से स्वीकार करना।

पारिवारिक रिश्ते- कुछ हकलाने वाले साथियों के जीवन में पारिवारिक उथल-पुथल या तनाव को निश्चित ही स्वीकार किया जाना चाहिए। लेकिन इसका एक मात्र कारण हकलाना ही नहीं है। इन उलझने का मुख्य कारण मानव जीवन की विसंगतियां हैं, जिन्हे समय पर पहचान कर दूर किया जाना चाहिए। मेरा मानना है कि शादी से पहले अपने हकलाने के बारे में सभी को खुलकर और बार-बार बता देना चाहिए।

जीवन का आनन्द- मैं अक्सर यही सोचता था कि हकलाने के कारण मुझसे लोग दोस्ती नहीं करते, मैं अंतर्मुखी हो गया हूं। पर सच तो यह है कि हर हकलाने वाले को भी जीवन में हर तरह की खुशियां पाने का पूरा अधिकार है, ऐसा वो जब चाहे कर सकता है। चाहे किसी की शादी में डांस करना हो, दोस्त बनाना, रेस्तरां में जाकर भोजन करना, महिला या पुरूष मित्र बनाना, शादी करना या संतान पैदा करना हो- हकलाने वाले को पूरी आजादी है, हर कार्य करने की, जिससे वह जिन्दगी का आनन्द उठा सके।

हकलाना सिर्फ एक पहलू है- हकलाना हमारे जीवन का सिर्फ एक छोटा सा हिस्सा है, इसके अलावा भी बहुत सारे कार्य व जिम्मेदारियां है, जिन्हें समय पर निभाना आवश्यक है। अच्छी पढ़ाई, अच्छे जाॅब के लिए प्रयास करना, माता-पिता की देखभाल और अपना सामाजिक दायरा बढ़ाना आदि शामिल हैं। अपने जीवन के सभी कार्यों को हमें बखूबी करना चाहिए, हकलाहट का बहाना बनाकर लम्बे समय तक टालते रहना ठीक नहीं है।

खुद पर हंसना- अब तक लोग मेरी हकलाहट पर हंसते रहे, लेकिन अब मुझे यह मौका मिला की मैं खुद अपनी हकलाहट पर हंस सकूं। यकीन मानिए यह एक ऐसा सुखद मौका था जब मैं अपनी हकलाहट को बहुत ही सहजता से स्वीकार कर पाया। जब आप खुद अपनी हकलाहट पर हंसते हैं, तब दूसरे लोगों के लिए आपका हकलाना मजाक का विषय नहीं रह जाता, वे लोग भी आपकी हकलाहट को सजहता से स्वीकार कर लेते हैं।

Amit 09300939758

Post Author: Amitsingh Kushwaha

1 thought on “हकलाहट के नए आयाम

    Naresh

    (April 29, 2018 - 5:23 pm)

    My self naresh Parihar from pali-jodhpur Rajasthan.
    I am sever stammer with highly blocks and dismal, deaspair,etc worse characters had in me, but after Tisa blog reading and attend some real activities of Tisa, I fill comfort because I am in a community of stammering ,my aloof of stammering has cleared.
    So thanks

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