हेलो साथियों , यहाँ मैं अपना अनुभव शेयर करने जा रहा हु की कैसे मैं इंट्रोवर्ट हकलाने वाले बच्चे से एक्सट्रोवर्ट बनता जा रहा हूँ
ये घटना मेरी 12th क्लास के बाद की है – मैं 12th से पहले कभी बस में अकेला नहीं गया था और 12th के बाद मुझे एक फॉर्म लेने पास के शहर जाना था , मुझे आज वो घटना याद करके हंसी आ रही है , मैं बस स्टॉप पे गया और बस चलने वाली थी की मैं वापिस आ गया – सिर्फ इस डर से की मैं अकेला इतने बड़े सहर मैं कैसे जाऊंगा और टिकट कैसे लूंगा और वहां लोगों से एड्रेस कैसे पूछूंगा – इस घटना के लगभग 6 साल बीत चुके है और आज मैं जब अपने आप को देखता हु तो मुझे लगता है की मैंने बहुत प्रगति की है – मैंने अच्छे कॉलेज से इंजीनियरिंग की है , मैं अकेला कहीं भी घूम सकता हूँ – अब फ़ोन कॉल से मुझे डर नहीं लगता है ( एक बार मैंने फ़ोन की वायर काट दी थी , न फ़ोन आएगा न मुझे उठाना पड़ेगा .. हाहा ) और अभी मुझे और भी बहुत कुछ करना है – इन 6 सालों में मैं एक बच्चे से आदमी बना महसूस करता हूँ – खास करके मानसिक सत्तर पर –
मेरी एक ही सिख रही है की बस चलते रहो और मंज़िल पे ध्यान रखते हुए रास्तों से जुड़े रहो -एक न एक दिन जरूर तुम्हारा दिन आएगा और अपने आप को किसी सीमा में मत बांधो की मैं ये नहीं कर सकता हूँ – अगर आपने दिमाग में सोच लिया की मुझे ये करना है तो जरूर करोगे पर समय और धैर्य चाहिए क्यूंकि दोस्तों गांधीजी को पचास साल लग गए थे आज की आज़ादी को हासिल करने में , मंडेला सताइस साल जेल में रहे और आपको तो सिर्फ 1 – 2 साल चाहिए अपनी सोच को बदलने के लिए – रातों रात कोई ताजमहल नहीं खड़ा होता – बस लगे रहो – हकलाहट से आज़ादी जरूर मिलेगी – किन्तु हमारा लक्ष्य एक बेहतर संचारकर्ता बनना है – न की सिर्फ फ़्लूएंट बनना –
सोच बदलो तभी समय बदलेगा
रमन मान
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