my journey -2

हेल्लो दोस्तों , मै अपना कल का अनुभव शेयर करना चाहता हूँ।  कल मै अपने दोस्तों के साथ दंगल मूवी देखने गया।  हमारे व्हाट्सप ग्रुप पर पहले से किसी ने पोस्ट किया था कि दंगल मूवी में हकलाने को लेकर एक सीन है तो मेरा सारा ध्यान उसी सीन पर चला गया।  जब तक वो सीन नहीं आया तो मै चैन से नहीं बैठ सका। सोचता रहा कि पता नहीं क्या होगा उस सीन में।  लेकिन जब वो सीन आया तो मुझे ज्यादा फर्क नही पड़ा। चीजे बहुत छोटी होती है किन्तु हम लोग उसके बारे में सोच सोच कर अपनी हालत खराब कर लेते है।

मूल बात ये है कि समाज तो अपना काम करता रहेगा और आप पुरे समाज को कण्ट्रोल नही कर सकते हो और आप ये नही बोल सकते कि ये सीन आपने क्यों डाला मूवी में / बात ये भी है कि मूवी में कॉमेडी के लिए मूल चीज से थोड़ा हटकर दिखाया जाता है और हम लोग आम तौर पर फिल्मों में ऐसे व्यग्य देखते है। अब हम क्या कर सकते है – हम समाज की सोच में बदलाव ला सकते है – एक पॉजिटिव उदाहरण सेट करके। वैसे हकलाना बुरी बात नही है किन्तु यह थोड़ा भिन्न है जिस पर हम लोग हंसी का पात्र बन सकते है। समाज में  बदलाव धीरे धीरे आता है और शायद इसके लिए हमारी सारी उम्र भी कम पड जाएगी।

                                यहाँ पर स्वीकार्यता काम में आती है –  क्योंकि ये समाज भी हम से ही बना है तो अगर हम अपनी सोच में चेंज लाये तभी समाज की सोच में चेंज आएगा।  अगर हकलाने वाला खुद ही अपने आप को बुरा समझे तो दूसरे तो जरूर उसे बुरा समझेगे। किन्तु अगर हमारे अंदर अपने लिए इज्जत है तो फिर हमे दूसरे से इज्जत की आशा करने की कोई जरूरत नही।  इसी काम में  स्वीकार्यता काम आती है – हमे समझना चाहिए कि हर किसी में कोई न कोई कमी है बस हमे ये लगता है कि  हम ही अभागे है पूरी दुनिया में।  वैसे भी नदी के दूसरी और का घास ज्यादा हरा दिखता है सभी को। जरा सोचो कि आज का नया साल देखने के लिए अगर हम ज़िंदा ही नही रहते तो – अगर हमे कोई और बीमारी हो जाती तो फिर  हम उसका रोना लेकर बैठ जाते क्या ।
                  अब वक्त है फिर से खड़े होने का और हर पल को ऐसे जियो कि वो आपका आखरी पल हो। ये ज़िन्दगी बहुत छोटी है हकलाहट के पीछे गवाने के लिए। हमारे सामने एक चुनोती है कि हमे अच्छा कम्यूनिकेटर बन के दिखाना है – और ये कोई दिखावा नही बल्कि अपने आप को ताकतवर बनाने के लिए है. और इस काम के लिए लगन , मेहनत और सबसे ज्यादा जरूरी धैर्य है क्योंकि रातो रात हम ये काम नही कर सकते। इसके लिए दिल पर पत्थर रख के काम करना है दुनिया की परवाह किये बिना। और ये संभव होने वाला काम है क्योंकि बहुत से लोगों ने ये किया है – इसका सबसे अच्छा उदाहरण सचिन सर है।  अगर वे अपनी हकलाहट से उबरकर एक अच्छा कम्यूनिकेटर नही बनते तो शायद आज ये टीसा ग्रुप भी नही होता जो बहुत से लोगो का सहारा बना है।
                             “ठोकरें खाता हु पर शान से चलता हु
                          खुले आसमान के नीचे सीन तान के चलता हूँ
                                ज़िन्दगी तो साज है मुश्किलो का
                                       आने दो ,आने दो
                        गिरूँगा उठूंगा फिर गिरूँगा और फिर उठूंगा
                                 पर आखिर में जीतूंगा मै ही
                                 ये हमेशा ठान के चलता हू “
    नव वर्ष आपके जीवन में एक नया उत्साह ले कर आये और आपको दुनिया की हर ख़ुशी मिले  ऐसी मेरी कामना है .
रमनदीप सिंह

8285115785

Post Author: Raman Maan

I'm fear killer

1 thought on “my journey -2

    Amitsingh Kushwaha

    (January 1, 2017 - 5:15 pm)

    रमण मान जी, बहुत सुंदर अनुभव हैं आपके. देवानंद साहब की फिल्म का एक गाना है – हर फ़िक्र को धुंए में उड़ाता चला गया… अगर हम हकलाने वाले साथी दुनिया की चिंता छोड़कर सिर्फ अपने कल्याण के लिए समर्पित हो जाएँ हो अच्छा परिणाम मिलेगा.

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