Random acts of kindness…

This was a short address in Hindi by sachin to set the tone for the next three days ; an appeal to view stammering – and everything else in life – in a bigger picture – of finding fulfillment by serving others – not as a favor, but as a service to our larger Self. Here is the text.

Dear Friends

For a change – Let me not talk about stammering!

Let us talk about happiness, rather. We all want to be happy. Even fluency is seen as a means to happiness and inner fulfillment. But very few of us really understand how to be truly happy. Quite often, entire lives are spent in that search! I too want to be happy so I have been reading and searching and trying.. all sort of things. Let me share today the big secret- how to be happy?

And the big secret is : Random acts of kindness!

This idea has been attributed to an American writer- Anne Herbert. But I think this idea is much, much older and is found in every culture, every country. We have just forgotten it, I suppose, under the burden of frenetic activity of modern life.

Let us discuss the first aspect: Random. Random means something which is unpredictable, un-calculated. In practical sense, it would mean- you do something RIGHT on the spot, without much pre-meditation or planning, without any cost benefit analysis. What is in it for me? Try and forget that question. If you cant forget, try and push it back for the time being at least..

Let me give you some examples and steps:

Be kind to people around you, people you meet; develop it as an attitude. If you do it, chances are others around you will follow the example, sooner or later. In practice, it means – developing empathy and thoughtfulness. You can smile and give your place to someone else in a cue or in the bus. In traffic, you can wait and let the other vehicle get in to the lane. Before eating, you can offer it to others around you. Use “thank you”, “may I please?” etc. more often and mean it.

Pay genuine compliment to your colleagues, even boss and strangers. Take a little risk, if that is what it takes. Write a hand-written note of appreciation to people who dont expect one! Praise your sub-ordinates and children around you. Used clothes, cookies, food and books can be given to people in need of them. The child in the neighborhood may be thrilled to receive unused toys of your kids. Visit people who stay alone.

Go to old folks home and read a book or just spend some time with people there. Dont agonize about: Will I be able to do it next week too? Volunteer to do marketing for them or do other chores for such people randomly. Take them out for a picnic or to an amusement park. At home, sometime, do the dishes or make the breakfast for a change. Express your gratitude in words and gestures. Dont assume that it is understood. Smile more often. Try and forgive people. Above all expect nothing!

Now, when you meet a stammerer, what can you do? Just listen with respect. Nothing more. When you meet strangers, do you expect to be told: Use this technique, talk like this, breathe like that? So, same here.

This kind of listening requires no training, no gadgets. You dont have to be a ‘Board certified Listening Specialist’! But yes, this kind of listening requires some practice. You have three days ahead to practice, practice and practice.

Finally who could be kind? and to whom? Fingers may appear separate – but they are all united in one hand. We may appear as different individuals but at a deeper level of existence, we are all one. Random acts of kindness ultimately benefit us alone. When we know this- through long mindful practice, we are set free from the burden of egotism: What a great act of kindness, I did! Etc.

THAT is the final state of skillful & liberated action. Let us strive towards that worthy goal, as a community.

I close, with best wishes and deep appreciation for your presence here for the next three days.

Thank you,

sachin 3rd Oct 2014, Pune

प्रिय साथियो

चलें आज हकलाने पे बात करने के बजाय ख़ुशी पर बात कर लें। आखिर हकलाने का क्योर हम क्यों तलाश रहे हैं? इसी आशा में कि इस से हमें जीवन में सफलता और उस से ख़ुशी मिलेगी ? सच तो यह है कि जिन्हे कोई भी तकलीफ नहीं वे भी ख़ुशी की तलाश में भटक रहे हैं। बहुत कम लोग ही इस राज को समझ पाये हैं। नौकरी, रुपया – पैसा, नाते रिश्ते , घर , गाडी , मनाली में छुट्टियाँ : यह सब जरुरी है मगर यह सब मिल जाने के बाद भी आनंद, एक आतंरिक संतुष्टि की तलाश फिर भी जारी रहती है…

आप ही की तरह मेरी भी तलाश पिछले छप्पन सालों से जारी है ; बहुत सी किताबे पढ़ी, बहुत कुछ आजमाया, कई प्रयोग किये और आज मै इन सब का निचोड़ आप के साथ बाँटने जा रहा हूँ : एक बहुत बड़ा राज! क्या आप जानना चाहेन्गे ?

ये है – सेवा और सहानुभूति के अनियोजित काम ; यानी बगैर लम्बी चौड़ी प्लानिंग के, बगैर नफा नुकसान पे माथापच्ची किये कोई भला काम कर डालना : यानि नेकी कर और कुँए में डाल। इसका श्रेय एक अमेरिकन लेखक – एन्न हरबर्ट को दिया जाता है। मेरे ख्याल से यह विचार काफी पुराना है और सभी संस्कृतियों और देशो में पाया जाता है। बस मुश्किल ये है कि आज की भागदौड़ वाली जिंदगी में हम इसे भूल से गए है। इसे फिर से वापस लाने की जरुरत है।

इसमें पहला विचारणीय बिंदु है – रैंडम : यानि बगैर योजना के। योजना बनाते हैं तो हमें बहुत सी मुश्किलें दिखाई देने लगती है – टाइम कहा है ? बजट कहा है ? आदि – और सारा प्रयास ठन्डे बस्ते में डाल दिया जाता है, भुला दिया जाता है। ऐन मौके पे आप जो कर पाये फटाफट, वह तो हो जाता है – अन्यथा नहीं !

अब ऐसे कौन से काम है जो किये जा सकते है ? “बड़ा हाथ” मारने के बजाय छोटे छोटे बहुत से अर्थपूर्ण काम है जो हम आसानी से कर सकते है – बगैर बहुत ज्यादा संसाधन जुटाये :

क्या हम थोड़ा और स्नेह और प्रेम से पेश आ सकते हैं ? और सहानुभूति और विवेक शीलता के साथ ? क्या थोड़े प्रयास से इस शैली को हम अपना स्थायी भाव बना सकते हैं ? सहकर्मी, परिवार, आस पास बच्चे, यहाँ तक कि अजनबी भी इस बदलाव का अंग बन सकते है और इसे आगे बढ़ा सकते हैं। जैसे बस की लाइन में मुस्करा कर आप अपनी जगह दुसरो को दे सकते हैं। शायद वह व्यक्ति इस विनम्रता को और आगे “पास” कर दे। इसी तरह ट्रैफिक में भी थोड़ी सी विनम्रता और धैर्य आपका और दुसरो का पूरा दिन सुन्दर बना सकते हैं। इसी तरह ऑफिस में शिष्टाचार – धन्यवाद आदि की एक बड़ी भूमिका है। मगर अंदर से इसे महसूस करना भी जरुरी है।

सहकर्मियों को साधुवाद दे – ईमानदारी से ; उनके छोटे से छोटे काम को सराहे और उन्हें बताएं – धन्यवाद की दो लाइने किसी सहकर्मी की पुरे दिन की थकान को मिटा सकती हैं। छोटी सी भेंट या हाथ से लिखे सराहना के पत्र या नोट इस दिशा में बहुत कारगर होते हैं . कपडे, किताबे , पुराना फर्नीचर दुसरो को दें। आपके बच्चों के पुराने खिलोने पड़ोस में बच्चों को मुमकिन है बेहद ख़ुशी दें।

जो लोग अकेले या वृद्ध आश्रम में रहते है, कभी कभी उन्हें मिलने जाए, उनके साथ वक्त बिताएं या उनके लिए बाजार से खरीदारी कर दें। यह चिंता न करें कि अगले महीने ये काम कौन करेगा। ऐसे लोगो को साथ कभी पिकनिक आदि के लिए ले जाएं।

घर पर कभी बर्तन साफ़ करने, नास्ता चाय आदि बनाने में मदद करें। लोगो को माफ़ करना सीखे। यह मत सोचें कि अपनों को धन्यवाद की क्या जरुरत ? उन्हें तो मेरी भावनाओं का पता ही होगा। नहीं। फिर भी उन्हें बताएं, सराहें।

और सबसे बड़ी बात यह कि – इन सब के बदले में कुछ भी मिलने की आशा कदापि न करें।

इसी तरह – विशेष क्षमता वाले लोगो से मिलने पर कुछ बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए : उनकी क्या जरुरत है ? कुछ विशेष प्रोटोकॉल्स है जिन्हे आप इंटरनेट पर पढ़ सकते है।जैसे अगर आपके समूह मे कोइ द्रिषटीहीन व्यक्ति है तो उसकी मौजूदगी में क्या करें, क्या ना करें?

हकलाने वाले व्यक्ति के साथ क्या करना है ? बहुत आसान : पुरे सम्मान और धैर्य से उनकी बात सुनें। उन्हें विभिन्न सुझाव न दें। इस तरह किसी को सुनना मुश्किल नहीं है मगर इसके लिए थोड़ा अभ्यास चाहिए। ये तीन दिन इस अभ्यास के लिए बेहद सुनहरा अवसर है।

आखिर में – उंगलिया दिखने में भले फर्क हों मगर वे एक हाथ से ही जुडी हैं। “दूसरे” की सेवा वास्तव में अपनी ही सेवा है। निरंतर अभ्यास से जब हम इस सच्चाई को समझ लेते है तो हमारे कर्म न तो हमें बांधते है और न ही अहंकार को बढ़ाते हैं :योगः कर्मसु कौशलम। याानि कर्म मे कुशलता – सही सोच- ही योग है..

मेरी ईश्वर से प्रार्थना है कि हमारा यह स्वयं सहायता समुदाय ऐसी सेवा और उसमे कुशलता की तरफ एक साथ बढ़ें।

सप्रेम धन्यवाद

सचिन

Post Author: Sachin

6 thoughts on “Random acts of kindness…

    abhishek

    (October 4, 2014 - 3:03 pm)

    great message 🙂

    Sanjib Kumar Talukdar

    (October 4, 2014 - 4:06 pm)

    very nice post!!

    admin

    (October 9, 2014 - 4:14 am)

    It's great to hear you talk Sachin Sir. Please start a video blog.

    Sachin

    (October 9, 2014 - 4:27 pm)

    Tanveer – I find face to face meeting, like the one we had, so much more fun..that the idea of video blogging does not appeal much.. God willing, we will keep meeting like this…

    admin

    (October 9, 2014 - 6:10 pm)

    @ Sachin Sir
    This is one of the best message I ever got.
    Thank you

    Trikle Trade

    (June 7, 2016 - 10:42 am)

    Thanks for sharing information . Your blog has always been a source of great tips Random Acts of Kindness Ideas

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